UP Assembly Monsoon Session: उत्तर प्रदेश विधानमंडल का मानसून सत्र 29 जुलाई से शुरू हो रहा है. लेकिन, इस बार सदन में योगी सरकार की राह उतनी आसान होने वाली नहीं है. जहां एक तरफ लोकसभा चुनाव में जीत के बाद समाजवादी पार्टी और विपक्ष के हौसले बुलंद हैं तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के सहयोगी दलों भी सबकी नजरें टिकी है जो चुनाव के बाद से ही प्रदेश सरकार पर हमलावर दिखाई दे रहे हैं. 


यूपी में बीजेपी की आपसी कलह के बीच अपना दल सोनेलाल, निषाद पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल भी अलग-अलग मुद्दों को लेकर बीजेपी और प्रदेश सरकार को घेरने में पीछे नहीं है. ऐसे में सियासी जानकार यूपी विधानसभा के सत्र की ओर देख रहे हैं कि क्या इनके तेवर सदन में भी ऐसे ही दिखाई देंगे या नहीं. इस बार विपक्ष के साथ सहयोगी दलों पर भी अपने पक्ष को रखने का दबाव होगा. अगर वो अपने मुद्दे मजबूती से नहीं रखते हैं तो इसका असर उनके वोटबैंक पर पड़ेगा. लेकिन, अगर वो सरकार को घेरेंगे तो गठबंधन का तालमेल बिगड़ता दिखाई दे सकता है. 


सहयोगी दलों पर टिकी नजर
लोकसभा चुनाव में हार के बाद सबसे पहले अपना दल सोनेलाल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने योगी सरकार को घेरते हुए सरकारी नौकरियों में भेदभाव करने का आरोप लगाया था. उन्होंने चिट्ठी लिखते हुए दावा किया कि पिछड़े और दलित वर्ग के युवाओं को नॉट सूटबेल कहकर भेदभाव किया जा रहा है जिससे उन्हें नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पर रहा है. अपना दल इस मुद्दे को लेकर अपने स्टेंड पर कायम हैं. 


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वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की दूसरी सहयोगी निषाद पार्टी और कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने भी बुलडोजर को लेकर सरकार पर सवाल उठाते हुए घेरने की कोशिश की. उनका आरोप है कि अधिकारी इतने बेलगाम हो गए हैं कि वो मंत्रियों की भी नहीं सुनते हैं. उन्होंने कहा कि जब वो ऐसा करते हैं तो इसका असर चुनावों पर पड़ता है. इसके चलते कार्यकर्ताओं में नाराजगी रहती है. इधर जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल भी कांवड़ मार्ग पर दुकानों के सामने नाम लिखने के फैसले पर अपनी आपत्ति दर्ज करा चुकी है. 


ऐसे में जब सदन में ये मुद्दे उठेंगे तो बीजेपी के सहयोगी दल क्या रुख रखेंगे ये बेहद अहम होगा.