Ayodhya News: अयोध्या (Ayodhya) में बन रहे भगवान राम के मंदिर में रामलला के बाल स्वरूप की मूर्ति जिस पत्थर से बनाई जाएगी वो कोई आम पत्थर नहीं है. बल्कि उसका ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है. नेपाल (Nepal) के म्याग्दी जिले के बेनी से पूरे विधि विधान और हजारों लोगों की श्रद्धा के बीच उस पवित्र पत्थर को अयोध्या ले जाया जा रहा है. पत्थर लाने से पहले म्याग्दी में शास्त्र सम्मत क्षमा पूजा की गई. फिर जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल विशेषज्ञों की रेखदेख में पत्थर की खुदाई की गई. अब उसे बडे ट्रक में लाद कर पूरे राजकीय सम्मान के साथ ले जाया जा रहा है. जहां जहां से यह शिला यात्रा गुजर रही है. वहां पूरे रास्ते भर में भक्तजन और श्रद्धालु इसके दर्शन और पूजन कर रहे हैं.
करीब सात महीने पहले नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बिमलेन्द्र निधि ने राम मंदिर निर्माण ट्रष्ट के समक्ष पत्थर भेजने का ये प्रस्ताव रखा था. उसी समय से इसकी तैयारी शुरू कर दी गई थी. निधि जानकी यानी सीता की नगरी जनकपुरधाम के सांसद भी हैं. उन्होंने ट्रष्ट के सामने यह प्रस्ताव रखा कि जब अयोध्या धाम में भगवान श्रीराम के इतने भव्य मंदिर का निर्माण हो ही रहा है, तो जनकपुर और नेपाल की तरफ से इसमें कुछ ना कुछ योगदान होना चाहिए.
भारत सरकार और राम मंदिर ट्रष्ट के तरफ से मिली हरी झंडी
मिथिला में बेटियों की शादी में ही कुछ देने की परम्परा नहीं है. बल्कि शादी के बाद भी अगर बेटी के घर में कोई शुभ कार्य हो रहा हो या कोई त्यौहार मनाया जा रहा हो तो आज भी मायके कुछ ना कुछ संदेश किसी ना किसी रूप में दिया जाता है. इसी परंपरा के तहत बिमलेन्द्र निधि ने ट्रष्ट और उत्तर प्रदेश सरकार के साथ ही भारत सरकार के समक्ष भी ये इच्छा जताई और अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर में जनकपुर का और नेपाल का कोई अंश रहे इसके लिए प्रयास किए. इसके बाद भारत सरकार और राम मंदिर ट्रष्ट के तरफ से हरी झंडी मिलते ही हिन्दू स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद ने नेपाल के साथ समन्वय करते हुए ये तय किया गया कि चूंकि अयोध्या में मंदिर का निर्माण दो हजार वर्षों के लिए किया जा रहा है. इसलिए इसमें लगने वाली मूर्ति में उस तरह का पत्थर लगाया जाए जो इतने समय तक चल सके.
जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल सर्वे की टीम ने किया पत्थरों का चयन
साथ ही उन पत्थरों को अयोध्या भेजा जाए जिसका धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व हो. इसके लिए नेपाल सरकार ने कैबिनेट बैठक में काली गंडकी नदी के किनारे रहे शालीग्राम के पत्थरों को अयोध्या भेजने के लिए अपनी सहमति दे दी. इसके बाद इस तरह के पत्थर को ढूंढने के लिए नेपाल सरकार ने जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल समेत वाटर कल्चर को जानने समझने वाले विशेषज्ञों की एक टीम बनाई और भेजी. इसके बाद इस टीम ने पत्थरों का चयन किया. अयोध्या के लिए जिस पत्थर को भेजा जा रहा है वो साढ़े छह करोड़ साल पुराना है. इसकी आयु अभी भी एक लाख वर्ष तक रहने की बात बताई गई है.
जिस काली गंडकी नदी के किनारे से ये पत्थर लिया गया है. वो नेपाल की पवित्र नदी है. ये दामोदर कुंड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है. इस नदी किनारे रहे शालीग्राम के पत्थर पाए जाते हैं. इनकी आयु करोड़ों साल की होती है. ये सिर्फ यहीं पाए जाते हैं. इतना ही नहीं भगवान विष्णु के रूप में शालीग्राम पत्थरों की पूजा की जाती है. इस कारण से इसे देवशिला भी कहा जाता है. इस पत्थर को यहां से उठाने से पहले विधि विधान के हिसाब से क्षमा पूजा की गई. फिर क्रेन के सहारे पत्थर को ट्रक पर लादा गया. इस एक पत्थर का वजन २७ टन बताया गया है. जबकि दूसरे पत्थर का वजन १४ टन है.
गंडकी प्रदेश के संस्कृति मंत्री पंचराम तमु ने क्या कहा
पोखरा में गंडकी प्रदेश सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री खगराज अधिकारी ने इसे जनकपुरधाम के जानकी मंदिर के महन्थ को विधिपूर्वक हस्तांतरित किया है. हस्तांतरण करने से पहले मुख्यमंत्री और प्रदेश के अन्य मंत्रियों ने इस शालीग्राम पत्थर का जलाभिषेक किया. वहीं नेपाल के तरफ से अयोध्या के राम मंदिर को यह पत्थर समर्पित किए जाने पर सभी काफी उत्साहित दिखे. वहीं गंडकी प्रदेश के संस्कृति मंत्री पंचराम तमु ने कहा कि भारत और नेपाल हिन्दुत्व के नाते से भी जुडा है. ये भगवान के नाते से भी जुडा है और हम अपना समझकर इसे भेज रहे हैं. भारत के साथ हमारा जो आत्मीय संबंध है, भगवान राम के साथ जो आत्मीय संबंध है वो कभी नहीं टूटे. इसी विश्वास के साथ इसे भगवान राम के मंदिर के लिए समर्पित किया जा रहा है.
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