UP News: धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ भगवान राम (Lord Ram) का प्राकट्य स्थल माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के बस्ती (Basti) का सियासी मिजाज रामनगरी अयोध्या (Ayodhya) से मिलता-जुलता है. पौराणिक महत्व वाले इस जिले में सियासी समीकरण जिसका गड़बड़ाया वो कभी चुनाव नहीं जीत पाता. कभी रघुकुल की नीति पर चलने वाले बस्ती में जातीय समीकरणों पर राजनीति का रण लड़ा जाता था. मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले बस्ती पर बीजेपी (BJP) के भगवा रंग का असर हमेशा से दिखता रहा है.


बस्ती संसदीय क्षेत्र की जनता ने पांच बार बीजेपी के प्रत्याशी को चुनकर लोकसभा भेजा है. हालांकि, साल 2009 में लागू नए परिसीमन से बस्ती का राजनीतिक समीकरण गड़बड़ाया, लेकिन 2014 की मोदी लहर में फिर बीजेपी जीती. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बस्ती संसदीय क्षेत्र की सभी पांच सीटों पर कमल खिला.


साल 2014 के चुनाव में बीजेपी को मिल थे 34.11% वोट


बीजेपी के मौजूदा सांसद हरीश द्विवेदी की मुश्किलें समाजवादी पार्टी और बीएसपी के जातीय समीकरणों सहित वोटों के बिखराव से बढ़ सकती हैं. आंकडे़ बताते हैं कि साल 2014 के चुनाव में बीजेपी को 34.11 प्रतिशत मत प्राप्त हुए जबकि सपा-बसपा को मिले कुल वोट 57 फीसद से अधिक थे. इसके बावजूद बीजेपी के लोगों को भरोसा है कि मोदी लहर का अंडर करंट इस बार भी कुछ गुल खिलाएगा.


बीजेपी के वरिष्ठ नेता और जानकर मानते हैं कि वर्तमान सांसद हरीश द्विवेदी से इन दिनों ब्राह्मण वर्ग खासा नाराज है, जिन्हें खुश करने के लिए बीजेपी ने एक तीर से दो निशाना साधा है. ब्राह्मण जिला अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद शुक्रवार को उन्हें हटाकर सांसद के करीबी रहे शिक्षक नेता और बीजेपी कार्यकर्ता विवेकानंद मिश्रा को नया जिला अध्यक्ष चुना गया है. इससे सांसद को लेकर ब्राह्मणों में जो नाराजगी है वह कम हो सके और आने वाले चुनाव में बीजेपी को इसका सीधा लाभ भी मिले.


चुनाव में किंग मेकर की भूमिका निभाते हैं ब्राह्मण वोटर


गौरतलब है कि बस्ती जिले में ब्राह्मण वोटरों की अच्छी खासी तादाद है. करीब 5 लाख ब्राह्मण वोटर लोकसभा चुनाव में किंग मेकर की भूमिका निभाते हैं. ऐसे में सांसद हरीश द्विवेदी के लिए ब्राह्मणों को मनाना बड़ी चुनौती है. पार्टी के इस घोषणा के बाद एक बात तो साफ है ब्राह्मण वर्ग काफी हद तक जुड़ेगा और उनकी नाराजगी कम होगी. सांसद हरीश द्विवेदी ब्राह्मण वर्ग के बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं और जब ब्राह्मण ही उनसे नाराज रहेगा तो चुनाव में उन्हें नुकसान उठाना लाजमी है.


वैसे तमाम अटकलों के बाद बस्ती में बीजेपी को शुक्रवार को नया जिला अध्यक्ष मिल गया. इस बार बीजेपी हाईकमान ने एक युवा नेता पर भरोसा जताया है जो जिले में पार्टी की नींव को और मजबूत करेगा. आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए बेहतर प्रदर्शन करके दिखाएगा. बीजेपी के कर्मठी कार्यकर्ता और फिर नेता बने विवेकानंद मिश्रा को जिला अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है.


बस्ती में बीजेपी विवेकानंद मिश्रा पर जताया भरोसा 


बस्ती समेत प्रदेश के 44 जिलों में बीजेपी जिलाध्यक्षों की घोषणा को लेकर लगाई जा रही तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने जिलों में संगठन के नए मुखिया के नामों की घोषणा शुक्रवार को दिन में 12 बजे कर दी. बस्ती में प्रदेश बीजेपी संगठन ने विवेकानंद मिश्रा पर भरोसा जताया है.


बस्ती के गोटवा तिलकपुर के रहने वाले विवेकानंद मिश्रा के पिता सेवानिवृत्त शिक्षा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित थे. एमए, बीएड, नेट पास आउट गोटवा इंटर कॉलेज में प्रवक्ता हैं. 1998 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संपर्क में आने के बाद 1999 से 2000 तक प्रयागराज में विश्वविद्यालय इकाई प्रमुख रहे. 2001 से 2002 तक महानगर सहमंत्री, 2002 से 2003 तक महानगर मंत्री, 2006 से 2010 तक बस्ती में जिला प्रमुख रहे.


विवेकानंद मिश्रा रह चुके हैं जिला उपाध्यक्ष


2010 से 2012 तक बीजेपी युवा मोर्चा में बस्ती, सिद्धार्थनगर और संतकबीर नगर के विभाग संयोजक के साथ ही सिद्धार्थनगर के जिला प्रभारी भी रहे. 2012 में बीजेपी के जिला सदस्यता प्रमुख बनाए गए. 2013 से 2016 तक जिला उपाध्यक्ष और 2016 से अब तक 2 बार बीजेपी के जिला महामंत्री रहे. विवेकानंद बीजेपी के पुराने और जमीनी कार्यकर्ता हैं. चुनाव में नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बनाने में कुशल माने जाने वाले विवेकानंद को अध्यक्ष बनाए जाने से उन पुराने कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार हुआ है.


विवेकानंद मिश्रा ने कहा नए और पुराने कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने का रास्ता और बेहतर समन्वय स्थापित कर पार्टी को सफलताएं दिलाऊंगा. बस्ती बीजेपी का जिलाध्यक्ष बनने की दौड़ में कई चेहरे शुरुआती दौर से ही शामिल थे. हालांकि, बाद में नाम शार्ट लिस्ट होते गए और दावेदारों की संख्या भी घट गई लेकिन एक वक्त ऐसा दौर भी आया जब इस प्रतिष्ठा पूर्ण पद के लिए घमासान इस कदर हुआ कि बस्ती पर फैसला ही रोकना पड़ गया. बस्ती में जब जिलाध्यक्षी की दावेदारी शुरू हुई तो महेश शुक्ला, विवेकानंद मिश्रा, अभय पाल, प्रमोद पांडेय, दिवाकर मिश्रा, राजेश पाल चौधरी और अमृत कुमार वर्मा के नामों पर चर्चा तेज थी.


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