UP By-Election 2022: रामपुर (Rampur) विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और आजम खान (Azam Khan) का गढ़ रही है. इस बार भी बीजेपी के खिलाफ सपा के टिकट पर आजम खान के करीबी आसिम रजा (Asim Raza) मैदान में हैं. वहीं दूसरी ओर बीजेपी (BJP) के आकाश सक्सेना (Akash Saxena) उनको कड़ी चुनौती दे रहे हैं. लेकिन लोकसभा उपचुनाव के नतीजों पर गौर करें तो कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि सपा यहां पहले से अब कमजोर हुई है. 


लेकिन अगर इन कयासों के बीच रामपुर विधानसभा सीट पर सपा की हार होती है तो इसके अलग राजनीतिक मायने होंगे. वहीं आजम खान के पॉलिटिकल करियर पर कई चर्चाएं चलेंगी. दरअसल, योगी सरकार के दौरान आजम खान लगातार मुश्किलों में घिरे रहे हैं. इस दौरान करीब 90 मुकदमें उनके खिलाफ दर्ज किए गए हैं. इसके अलावा सपा नेता करीब 27 महीनों तक जेल में भी रहे. सुप्रीम कोर्ट से अग्रिम जमानत मिलने के बाद रिहा हुए. 


उपचुनाव में हार के बाद टूटा है गढ़
बता यहीं खत्म नहीं होती, विधानसभा चुनाव में आजम खान ने विधायक बनने के बाद लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया. जब आजम खान जेल से बाहर आ गए हैं, तभी रामपुर में लोकसभा का उपचुनाव हो रहा था. तब भी आसिम रजा को सपा ने उम्मीदवार बनाया था. लेकिन आसिम रजा चुनाव हार गए. इस हार को सपा के गढ़ और आजम खान के घर में बीजेपी की बड़ी सेंधमारी के तौर पर देखा गया. राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी माना कि आजम खान अपने गढ़ में कमजोर पड़ गए हैं.


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दूसरी ओर आजम खान जब जेल से बाहर आए तो अखिलेश यादव के साथ उनकी नाराजगी की खबरें भी काफी चर्चा में रही. कई बार मीडिया से बात करते हुए आजम खान का दर्द भी छलका. हालांकि इस डैमेज को जल्द कंट्रोल कर लिया गया. तब दिल्ली में आजम खान अस्पताल में भर्ती थे तो अखिलेश यादव मिलने भी गए थे. जिसके बाद नाराजगी की खबरों पर ब्रेक लगा. लेकिन इसी बीच फिर जौहर यूनिवर्सिटी के मामलों को लेकर आजम परिवार घिरा हुआ नजर आ रहा है. 


इन मुद्दों ने बढ़ाई है मुश्किलें
इन सभी मुद्दों के साथ आजम खान का स्वास्थ्य भी लगातार गिर रहा है. जेल से बाहर आने के बाद उन्हें तबीयत खराब होने के बाद दो बार दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया. वहीं जब नेताजी का देहांत हुआ तो तबीयत खराब होने के बाद भी आजम खान पहुंचे. इस दौरान आजम खान की तस्वीरों ने उनके स्वास्थ्य की पूरी कहानी भी बयां कर दी. 




रामपुर के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो उपचुनाव में बीते 45 सालों के बाद पहली बार आजम खान का परिवार नहीं लड़ रहा है. ऐसे में गिरते स्वास्थ्य, गढ़ में हार, मुकदमों से बढ़ी मुश्किलें, जौहर यूनिवर्सिटी पर प्रशासन का कसता शिकंजा और फिर चुनावों से परिवार की दूरी ने आजम खान के करियर पर असर डाला है. अब अगर रामपुर उपचुनाव में सपा की हार होती है तो आजम खान को 74 साल की उम्र में अब पॉलिटिकल करियर को बचाने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.