UP By Election 2024 News: अलीगढ़ के विधानसभा खैर में उपचुनाव से पहले ही आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के बयान के बाद सियासत तेज हो गई है. वजह है आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरफ से खैर विधानभसा पर बयान देते हुए दलित मुस्लिम गठजोड़ को देखते हुए खैर सीट पर हर हालत जीत की बात कही थी.
उन्होंने कहा खैर सीट पर हर हालात में जीत हासिल करनी है, जिस तरह से नगीना में लोगों ने अपना समर्थन दिया ठीक उसी तरह से खैर विधानसभा में जीत दर्ज कराने के लिए सभी को संविधान की तरफ देखना होगा. अगर संविधान को बचाना है तो खैर सीट पर बीजेपी को पटखनी देनी पड़ेगी.
बीते दिनों दिए गए बयानों में उनकी तरफ से दलित और मुस्लिमों की हत्या की ओर भी इशारा किया था, जिसके बाद अब इस विधानसभा पर चुनाव और भी ज्यादा दिलचस्प हो गया है. वहीं, अलीगढ़ के विधानसभा खैर से विधायक और राजस्व मंत्री को हाथरस से चुनाव जीतने के बाद अब विधानसभा खैर में उपचुनाव होना है, जिसको लेकर अब दावेदारों के नाम सामने आ रहे हैं.
खैर विधानसभा से इस नेता को बीजेपी दे सकती है टिकट
विधानसभा खैर की अगर बात कही जाए तो विधानसभा खैर में सुरक्षित सीट होने के कारण इस सीट पर चुनाव दिलचस्प हो जाता है. लोकसभा खैर को लेकर अब दावेदारों के नाम भी सामने आ रहे हैं, जिसमें सबसे पहला नाम बीजेपी के लोकसभा हाथरस के सांसद राजवीर दिलेर के पुत्र सुरेंद्र दिलेर का आ रहा है.
वहीं दूसरी ओर लोकसभा हाथरस में बीजेपी के सांसद रह चुके स्वर्गीय राजवीर दिलेर का अच्छा दबदबा रहा है. उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में दमदारी के साथ चुनाव लड़कर हाथरस लोकसभा में अच्छे खासे वोटों से जीत हासिल की थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने के कारण वह सदमे में थे और हृदय गति रुकने से उनकी मौत हुई थी.
बीजेपी सुरेंद्र दिलेर को टिकट देकर दिलेर परिवार की सिंपैथी ले सकती है. उसकी वजह है दिलेर परिवार में कई वर्षों तक सांसदी और कई वर्षों तक विधायकी रही है, जिसके चलते होने वाले उपचुनाव में सुरेंद्र दिलेर को खैर विधानसभा का टिकट मिलने के लोग कयास लगा रहे हैं.
राष्ट्रीय लोकदल भी कर रही तैयारी
राष्ट्रीय लोकदल की कही जाए तो राष्ट्रीय लोकदल की तरफ से भी कैंपिंग शुरू कर दी गई है और विधानसभा खेर की तैयारी की जा रही है. चुनाव के दौरान एनडीए का हिस्सा राष्ट्रीय लोकदल बीजेपी में से किस प्रत्याशी को टिकट मिलेगी यह तो पार्टी ही फैसला करेंगे, लेकिन बीजेपी और राष्ट्रीय लोकदल दोनों के ही प्रत्याशी अपनी तैयारी में जुटे हुए हैं.
विधानसभा खैर का क्या है इतिहास
इस विधानसभा में सीट सुरक्षित होने के बावजूद भी यहां जाट वोट निर्णायक भूमिका में रहते हैं.मौजूदा समय में बीजेपी ने रालोद का किला ढहाकर यह सीट छीनी है. इस सीट पर कांग्रेस, बीजेपी और लोकदल तीन-तीन बार, दो बार जनता दल और एक बार बसपा प्रत्याशी को जीत मिली है, लेकिन फिर भी सीट पर जाटों के वोट एकतरफा पड़ते है तो ये सीट किसी भी पार्टी के खाते में पहुंच सकती है.
कुल मतदाता की अगर बात कही जाये तो पिछले चुनावों में 378196 मतदाता थे जिनमें पुरुष मतदाता 204583 और महिला मतदाता 173613 के साथ जातिगत आकंड़ों के हिसाब से यहां आंकड़े ये कहते हैं.
जाति मतदाता
जाट 1.10 लाख
ब्राह्मण 50 हजार
दलित 40 हजार
मुस्लिम 30 हजार
वैश्य 25 हजार
अन्य 25 हजार है जो कि अपना विधायक चुनते हैं.
1957 में अस्तित्व में आई
विधानसभा खैर की अगर बात की जाए तो आजादी के बाद 1957 में अस्तित्व में आई टप्पल और अब खैर विधानसभा सीट पर जाट बहुल होने के कारण चौधरियों का कब्जा रहा है. इसी वजह से इसे जिले का दूसरा जाटलैंड भी कहा जाता है, लेकिन बसपा के सोशल और इंजीनियरिंग फार्मूले ने चौधराहट की राजनीति पर ब्रेक लगाया और 2002 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े ब्राह्मण नेता प्रमोद गौड़ ने जीत दर्ज की.
हालांकि, 2007 में रालोद के चौ. सत्यपाल सिंह के सामने वे चुनाव हार गए. अनुसूचित जाति के लिए सीट आरक्षित होने के बाद से दो बार से अनुसूचित जाति के विधायक जीतकर विधानसभा पहुंच चुके हैं. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मोहनलाल गौतम यहां से विधायक थे.
1957 में इसे अलग टप्पल सीट का दर्जा मिला और टप्पल क्षेत्र के गांव मालव के रहने वाले कांग्रेस नेता के चौ. देवदत्त सिंह विधायक बने. अगले चुनाव में उन्हें क्षेत्र के गांव खेड़ा किशनगढ़ के दूसरे जाट नेता चौ. महेंद्र सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़कर हरा दिया. इसके बाद इस सीट पर चौ. महेंद्र सिंह और स्यारौल के जाट नेता चौ. प्यारेलाल में वर्चस्व की जंग होती रही. 1967 में प्यारेलाल कांग्रेस से, 1969 में महेंद्र सिंह बीकेडी से, फिर 1974 में प्यारेलाल कांग्रेस से और अगली बार जेएनपी से चुनाव जीते.
प्यारेलाल के पार्टी छोड़ जाने के कारण 1980 में कांग्रेस ने शिवराज सिंह को टिकट दिया और वे चुनाव जीते. 1985 में चौ.चरण सिंह ने इलाके के उभरते नेता जगवीर सिंह को लोकदल से चुनाव लड़ाया और उन्होंने जीत दर्ज की. दूसरी बार वह जनता दल से चुनाव जीते. इसके बाद बीजेपी से महेंद्र सिंह ने 1991 में पहली बार जीत दर्ज की.
लेकिन 1993 में जगवीर सिंह ने जनता दल से सीट कब्जाई. 1996 में बीजेपी ने चौ.चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती को चुनाव लड़ाया और वे जीतीं. इसके बाद बसपा से प्रमोद गौड़, फिर रालोद से सत्यपाल सिंह, उसके बाद भगवती प्रसाद सूर्यवंशी और अब अनूप प्रधान बीजेपी से विधायक हैं.
जांनिये कौन कब कब रहा है इस सीट पर विधायक
1952 में कांग्रेस से मोहनलाल गौतम (टप्पल, खैर, चंडौस, जवां संयुक्त विधानसभा क्षेत्र)
1957 में कांग्रेस से चौ. देवदत्त सिंह (टप्पल विधानसभा क्षेत्र बना)
1962 में निर्दल चौ. महेंद्र सिंह
1967 में कांग्रेस से चौ. प्यारेलाल (खैर विधानसभा क्षेत्र बना)
1969 में भारतीय क्रांति दल से चौ. महेंद्र सिंह
1974 में कांग्रेस से चौ. प्यारेलाल
1977 में जेएनपी से चौ. प्यारेलाल
1980 में कांग्रेस से चौ. शिवराज सिंह
1985 में लोकदल से चौ. जगवीर सिंह
1989 में जनता दल से चौ. जगवीर सिंह
1991 में बीजेपी से चौ. महेंद्र सिंह
1993 में जनता दल से चौ. जगवीर सिंह
1996 में भाजपा से ज्ञानवती सिंह पुत्री चौ. चरण सिंह
2002 में बसपा से प्रमोद गौड़
2007 में रालोद से चौ. सत्यपाल सिंह
2012 में रालोद से भगवती प्रसाद सूर्यवंशी
2017 में बीजेपी से अनूप प्रधान मौजूदा विधायक और राजस्व मंत्री हैं, लेकिन अब लोकसभा हाथरस के सांसद बनने के बाद विधानसभा खेर में चुनाव होने हैं. बीजेपी हाईकमान किसको टिकट देगा या देखना अभी बाकी है लेकिन वहीं दूसरी ओर आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरफ से दिए गए बयान के बाद अब इस सीट को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा हो गई है. वजह है आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का बयान जिसमें उनके द्वारा खैर विधानसभा पर हर हाल में सीट अपनी झोली में लाने की बात कही है.
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