Karhal Bypoll Election 2024: उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर उपचुनाव का ऐलान हो गया है. भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर लोकसभा चुनाव में मिली हार का बदला लेना चाहती है. लेकिन करहल विधानसभा सीट बीजेपी के लिए अब भी चुनौती बनी है. सपा के इस किले को भेदने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत लगाई हुई है. पार्टी का दावा है कि इस बार करहल के किले पर बीजेपी पर कब्जा होगा. 


मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी के सबसे मजबूत गढ़ों में से एक है. इस सीट से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव विधायक थे. कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद ये सीट खाली हो गई है और अब यहां उपचुनाव हो रहा है. अखिलेश यादव ने इस सीट से भतीजे तेज प्रताप यादव पर दांव लगाया है. बीजेपी भी इस सीट पर महीनों से पसीना बहा रही है लेकिन अब तक उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है. 


सपा किला भेद पाएगी बीजेपी?
करहल विधानसभा सीट पर साल 1993 से लगातार सपा का ही कब्जा रहा है. यहां से दो बार सपा के बाबू राम यादव, चार बार सोबरन सिंह यादव और एक बार खुद अखिलेश यादव विधायक रहे हैं. इस सीट का जातीय और सियासी समीकरण भी ऐसा है जो सपा को यहां सबसे मज़बूत बनाता है. इटावा, एटा और फ़िरोज़ाबाद जैसे जिलों से घिरी करहल सीट सैफई के बेहद नज़दीक है. इस पूरे इलाके में यादव परिवार का प्रभाव हैं. 


बीते कुछ सालों में बीजेपी ने भी यहां अपने संगठन का विस्तार किया है. पिछले दो बार के चुनाव में भाजपा ने सपा को सीधी टक्कर दी और दूसरे नंबर पर रही. बीजेपी ने यहां हर बूथ पर कमेटी बनाई है. इस बार भी पार्टी ने पूरी ताकत लगाई है और ऐसे फॉर्मूले की तलाश में है जिससे सपा के गढ़ को ढहाया जा सके. इस सीट पर बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल की बेटी सलोनी बघेल और पूर्व सांसद संघमित्रा मौर्य का नाम आगे चल रहा है. 


करहल का जातीय समीकरण
करहल सीट की बात करें तो यहां यादव वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ करहल में कुल वोटरों की संख्या 3,75,000 है. इनमें 1,30,000 यादव, 60,000 अनुसूचित जाति, 50,000 शाक्य, 30,000 ठाकुर, 30,000 बघेल, 25,000 मुस्लिम, 20,000 लोधी, 20,000 ब्राह्मण और 15,000 वैश्य वोटर हैं.


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