UP Politics: उत्तर प्रदेश में जातीय जनगणना का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी को भारी पड़ गया. विपक्ष ने जिस मुखरता से इस मुद्दे को जनता के बीच उठाया उसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा है. ऐसे में अब बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दोनों इस मुद्दे पर अपनी रणनीति में बदलते करते हुए दिखाई दे रहे हैं. केरल में आरएसएस की समन्वय बैठक में जातीय जनगणना की तरफदारी की गई, जिसे डैमेज कंट्रोल के तौर पर देखा जा रहा है. 


केरल की बैठक में आरएसएस नेता सुनील आंबेकर ने जातीय जनगणना को देख की एकता और अखंडता के लिए जरूरी बताया और कहा कि इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. संघ के इस बयान को पिछड़ों को फिर से अपने साथ लाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है. संघ और बीजेपी दोनों इस मुद्दे पर कोई जोखिम लेना नहीं चाहते हैं. 


उपचुनाव से पहले संघ ने बदली रणनीति 
संघ हमेशा बीजेपी के सियासी एजेंडे को सेट करता आ रहा है. जातीय जनगणना के मुद्दे पर जो बीजेपी अब तक कुछ भी बोलने से बचती रही है. वो अब संघ के बयान के बाद इसे लेकर फ्रंटफुट पर खेलने की तैयारी में जुट गई है. संघ नहीं चाहता कि उसकी छवि आरक्षण और जातीय जनगणना विरोधी बने. इसका समर्थन करके संघ अब निचले तबके के लोगों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश में है.


हालांकि बीजेपी अब तक इस मुद्दे पर अकेले ही पड़ते दिखाई दे रही थी. जातीय जनगणना की मांग सिर्फ इंडिया गठबंधन ही नहीं बल्कि एनडीए की कई सहयोगी दल भी इसके समर्थन में हैं. ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद भी जातीय जनगणना कराए जाने की मांग के समर्थन में हैं. 


जातीय जनगणना को लेकर फ्रंटफुट पर खेलेगी BJP
दरअसल लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने जातीय जनगणना के मुद्दे को ज़ोरदार तरीके से उठाया था और दावा किया कि अगर उनकी सरकार आई तो जातीय जनगणना कराई जाएगी. विपक्ष को इसका जबरदस्त फायदा हुआ और बड़ी संख्या में पिछड़े व दलित मतदाताओं ने इंडिया गठबंधन के पक्ष में एकजुट होकर वोट किया. जो बीजेपी के सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा. बीजेपी नहीं चाहती कि पिछड़ा वर्ग पर पार्टी की पकड़ कमजोर हो.


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संघ ने भले ही जातीय जनगणना के मुद्दे पर राय साफ करके बीजेपी की राह आसान करने की कोशिश की हो लेकिन इससे बीजेपी की दुविधा कम नहीं हुई है. बीजेपी को लगता है कि जातीय जनगणना के बाद संख्या के आधार पर नौकरियों और आरक्षण की हिस्सेदारी की मांग भी उठेगी. इससे भाजपा के सवर्ण वोटर्स नाराज हो सकते हैं.