UP Politics: मायावती को सता रहा कोर वोटबैंक खोने के डर, बदली रणनीति, इन बयानों से मिल रहे संकेत
UP Politics: लोकसभा चुनाव में हार के बाद मायावती की राजनीति में बदलाव आया है. अब वो सर्वजन की बजाय बहुजन समाज की बातें कर रही है और ये दिखाने की कोशिश में है कि पार्टी अब भी लड़ाई कर रही है.
UP Politics: उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार बनाने वाली बहुजन समाज पार्टी इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. एक वक्त था जब मायावती की सोशल इंजीनियरिंग ने यूपी में कमाल कर दिया था. जिसके दम पर 2007 में बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. सभी जाति-धर्मों के लोगों ने उन्हें समर्थन दिया. लेकिन, अब उनका अपना कोर वोटर ही हाथ से फिसलता दिख रहा है. ऐसे में मायावती अब अपनी रणनीति में बड़े स्तर पर बदलाव करते दिख रही है.
बसपा सुप्रीमो मायावती सर्वजन हिताय की बातें कर सत्ता की लड़ाई में टिकने की कोशिश कर रही थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने सर्वजन हिताय.. सर्वजन सुखाय का नारा दिया पर उसका कोई असर नहीं दिखा. हर चुनाव के साथ बसपा जमीन पर और कमजोर होते दिख रही है. जिसके बाद उनकी चिंता अब उनके मुद्दों में भी दिख रही है.
पुरानी रणनीति पर बढ़ीं मायावती
यूपी में दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं. बसपा ने इस चुनाव में पूरी ताकत से उतरने की तैयारी की है तो वहीं मायावती भी पूरे एक्शन में नजर आ रही है. पिछले कुछ समय में उनके बयानों पर ध्यान दिया जाए तो वो एक बार फिर से अपने कोर वोटर से जुड़े मुद्दों पर मुखर होकर बोल रही है. चाहे सुप्रीम कोर्ट में एससी एसटी रिज़र्वेशन की बात हो या संविधान और दलितों पर हो रहे अत्याचार तमाम मुद्दों को वो पूरे जोर शोर से उठा रही है. यही नहीं वो जातीय जनगणना और आरक्षण जैसे मुद्दों पर सपा-कांग्रेस को भी पुरजोर तरीके से आईना दिखा रही है.
पिछले कुछ समय में मायावती की राजनीति में बदलाव देखने को मिला है. अब वो सर्वजन की बजाय बहुजन समाज की बातें कर रही है. उनके मुद्दों पर बात कर अपने वोटरों में ये संदेश देने की कोशिश कर रही है कि भले ही बसपा चुनाव हार गई हो लेकिन वो जमीन पर लगातार उनके मुद्दों के लिए संघर्ष कर रही है. उनकी लड़ाई खत्म नहीं हुई है.
सपा-कांग्रेस पर भी जमकर हमले
लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस ने बड़े स्तर पर बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाबी हासिल की है. जिसकी वह से सपा ने इस बार अब तक का सबसे मजबूत प्रदर्शन कर 37 सीटों पर कब्जा कर लिया तो वहीं कांग्रेस की सीटें भी बढ़कर 6 तक पहुंच गईं. मायावती जानती है कि पार्टी को मज़बूत करने के लिए सबसे पहले उन्हें अपने कोर वोटरों को वापस जोड़ना होगा. इसलिए वो जहां बीजेपी की नीतियों पर सवाल करती हैं तो वहीं जातीय जनगणना, संविधान और आरक्षण जैसे मुद्दों पर सपा-कांग्रेस को भी आड़े हाथों लेती हैं.
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