UP Bypoll Results: आजमगढ़ (Azamgarh) और रामपुर (Rampur) में सपा की करारी हार के बाद हर तरफ उसके कारणों पर भी चर्चा हो रही है. सपा की शिकस्त के पीछे कहीं ना कहीं वो फैसले बड़ी वजह बने जो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने लिए. आजमगढ़ की बात करें तो मुकाबला त्रिकोणीय था, सपा की हार की बड़ी वजह बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली (BSP Candidate Guddu Jamali) को भी माना जा रहा है. यहां आंकड़ों से ये समझना जरूरी है कि आखिर अखिलेश ने गलती कहां कर दी और कैसे बसपा उम्मीदवार गुड्डू जमाली के मैदान में आने से बीजेपी (BJP) ने बाजी मार ली.

 

आजमगढ़ में बसपा बनी हार की वजह
आजमगढ़ में बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ ने 3,12,768 वोट हासिल कर जीत दर्ज की. वहीं दूसरे नंबर पर सपा प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव को 3,04,089 वोट मिले. यानि जीत हार का अंतर सिर्फ 8,679 वोट का रहा. बात बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली की करें तो 2,66,210 वोट के साथ वो तीसरे नंबर पर रहे. माना जा रहा है कि बड़ी संख्या ने मुस्लिम वोटर सपा को छोड़ बसपा के गुड्डू जमाली साथ चला गया जिसका खामियाजा हार के रूप ने सपा को भुगतना पड़ा.

 

अखिलेश यादव के गलत फैसले पड़े भारी

अब बात करते हैं उस फैसले की जो कहीं न कहीं सपा को भारी पड़ गया. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले जब बसपा ने गुड्डू जमाली को पार्टी से निकाला तो वो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने पहुंचे, जहां उन्होंने टिकट का भरोसा देकर उन्हें क्षेत्र में काम करने को कहा लेकिन उम्मीदवारों की सूची से उनका नाम गायब था. चुनाव बाद गुड्डू जमाली की बसपा में वापसी हुई और वो इस चुनाव में सपा की हार की वजह बन गए. आज़मगढ़ के वोटर्स के जातीय समीकरण को देखें तो 24 फीसदी से अधिक मुस्लिम हैं. बावजूद इसके उनका भरोसा जीतने के लिए सपा ने आज तक यहां से मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा. उन्हें शायद यादव वोटर से खिसकने का डर रहा.

 

उम्मीदवार के नाम का एलान करने में देरी

अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव के नतीजों से भी सबक नहीं लिया. विधानसभा चुनाव में हार के कारणों का मंथन करने के लिए सपा अध्यक्ष ने जो बैठक बुलाई थी, उसमें एक ये भी मुद्दा सामने आया था कि उम्मीदवारों के नाम का एलान करने में देरी हुई जो हार की वजह बनी. अखिलेश ने इससे सबक नहीं लिया और उम्मीदवार के नाम का एलान करने में देरी की. उन्होंने पहले आजमगढ़ में दलित चेहरे के रूप में सुशील आनंद को टिकट का भरोसा दिया, जिसके बाद चर्चा हुई कि अखिलेश दलित वोटर से जोड़कर संदेश देना चाहते हैं कि सपा भी सर्व समाज की पार्टी है लेकिन नामांकन के 2 दिन पहले तकनीकी वजह बताकर ये नाम वापस हो गया और धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बना दिया. इस फैसले से जहां दलित वोटरों में गलत संदेश गया तो वहीं बीजेपी को परिवारवाद का आरोप लगाने का मौका मिल गया. 


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हार के बावजूद खामियों को छुपाने की कोशिश
लगातार चुनाव में मिल रही शिकस्त के बावजूद अखिलेश यादव गलतियों में सुधार की जगह आरोप लगाकर अपनी खामियों को छुपाते नजर आ रहे हैं. उपचुनाव में भी उन्होंने हार की वजह धांधली और लोकतंत्र का गला घोटने जैसे बातें कही हैं. विधानसभा चुनाव के बाद सपा ने हार के कारणों पर मंथन करने के लिए बैठक बुलाई थी माना जा रहा है कि उसी तरह इस हार को लेकर भी पार्टी मंथन कर सकती है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि उस मंथन में जो कारण निकाल कर आएंगे क्या उनमें सुधार किया जाएगा? खुद सपा के सहयोगी दल सुभासपा के अध्यक्ष ओपी राजभर कह चुके हैं कि अखिलेश यादव को एसी कमरे से निकलकर जमीन पर काम कर संगठन को मजबूत करना होगा. 

 

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