Khair ByPolls 2024: अलीगढ़ जिले की खैर विधानसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में सियासी घमासान चरम पर है. भारतीय जनता पार्टी (BJP), समाजवादी पार्टी (SP), बहुजन समाज पार्टी (BSP) और आजाद समाज पार्टी (ASP) जैसे बड़े राजनीतिक दल अपने-अपने दांव लगा रहे हैं. इस उपचुनाव में जाट समुदाय का वोट बैंक एक अहम मुद्दा उभर कर सामने आया है. सवाल ये है कि इस निर्णायक वोट बैंक का झुकाव किस ओर होगा और इसका लाभ किस पार्टी को मिलेगा. सभी दल जाट वोट को साधने के लिए रणनीतियां बना रहे हैं.
खैर विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी ने आरएलडी के साथ गठबंधन किया है, जिसका मकसद साफ है- जाट वोट बैंक को अपने पक्ष में करना. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय का असर काफी मजबूत है और भाजपा इस समुदाय को अपने पाले में करना चाहती है. आरएलडी का नेतृत्व जाट नेता जयंत चौधरी कर रहे हैं, जो इस क्षेत्र में लोकप्रिय हैं. लेकिन जाट समुदाय का एक बड़ा हिस्सा अब भी केंद्र सरकार की नीतियों और कुछ मुद्दों, खासकर किसान आंदोलन को लेकर नाराज है. इस नाराजगी का फायदा सपा और अन्य विपक्षी दल उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
सपा का दांव: जाट पहचान और पारिवारिक समर्थन
खैर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने एक ऐसी रणनीति अपनाई है, जिससे वो जाट वोट बैंक पर पकड़ बना सके. सपा प्रत्याशी के पति खुद जाट समुदाय से आते हैं और उनके ससुर तेजवीर सिंह गुड्डू जाट समाज में एक मजबूत नेता के रूप में पहचाने जाते हैं. तेजवीर सिंह की जाट समाज में पहचान और प्रभाव के कारण सपा को उम्मीद है कि जाट समुदाय के वोट उनकी ओर आकर्षित होंगे. सपा ने जाट उम्मीदवार को सामने रखकर जाट समुदाय की सहानुभूति को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है.
इसके अतिरिक्त, सपा का समर्थन करने वाले अन्य जाट नेता भी इस उपचुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. जाट समुदाय के मुद्दों पर सपा की पक्षधरता, किसानों के समर्थन में लिए गए सपा के स्टैंड, और अन्य स्थानीय मुद्दों पर सपा का रुख, जाट वोट बैंक को सपा की ओर आकर्षित कर सकता है.
बसपा और जाट वोट बैंक की ओर आकांक्षाएं
बहुजन समाज पार्टी (BSP) भी खैर उपचुनाव में अपने लिए एक मौका देख रही है. बसपा की कोशिश है कि वो जाट वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करे, क्योंकि यह समुदाय चुनाव परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकता है. हालांकि, बसपा का जाट समुदाय में प्रभाव थोड़ा कम माना जाता है, लेकिन पार्टी ने कुछ जाट नेताओं को शामिल कर इस कमी को पूरा करने का प्रयास किया है. बसपा ने चुनावी रणनीति में जाट समुदाय के मुद्दों पर फोकस किया है और उन्हें भरोसा दिलाने का प्रयास किया है कि बसपा उनकी समस्याओं को हल करने के लिए समर्पित है.
आजाद समाज पार्टी, जो चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में चल रही है, आसपा ने भी इस उपचुनाव में अपने लिए संभावनाएं तलाशी हैं. चंद्रशेखर आजाद ने जाट समुदाय के कुछ प्रमुख नेताओं का समर्थन हासिल किया है, जिससे इस पार्टी का प्रभाव भी चुनाव में बढ़ा है. आजाद समाज पार्टी का कहना है कि वह जाट और दलित समुदाय के मुद्दों को सशक्त तरीके से उठाएगी.
जाट समुदाय के सामने चुनौतियां और संभावनाएं
जाट समुदाय इस उपचुनाव में एक अहम भूमिका निभाने जा रहा है, क्योंकि यह वोट बैंक निर्णायक साबित हो सकता है. जाट समुदाय में सबसे प्रमुख मुद्दे किसान संकट, रोजगार, और शिक्षा से जुड़े हुए हैं. इसके साथ ही, केंद्र सरकार की नीतियों से असंतोष, विशेषकर किसान आंदोलन से जुड़ी बातों पर जाट समुदाय के बीच नाराजगी भी है.
पार्टी चाहे कोई भी हो, जाट समुदाय से जुड़े मुद्दे चुनावी एजेंडे का अहम हिस्सा बने हुए हैं. यह समुदाय देख रहा है कि कौन सी पार्टी उनके मुद्दों को सबसे बेहतर तरीके से हल कर सकती है और किसके साथ उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा. इसी वजह से इस बार जाट वोट बैंक का झुकाव अनिश्चित है, और यह विभिन्न पार्टियों के लिए चुनौती बन गया है.
राजनीति का जमीनी प्रभाव और संभावित परिणाम
खैर उपचुनाव में जाट वोट बैंक का असर किस तरह से पड़ सकता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर पार्टी अपने-अपने उम्मीदवार के पक्ष में जाट नेताओं और जाट वोट बैंक को साधने में लगी हुई है. भाजपा और आरएलडी का गठबंधन उन्हें एक मजबूत स्थिति में लाता है, लेकिन सपा के जाट समुदाय के प्रति विशेष संबंध, बसपा की रणनीति, और आजाद समाज पार्टी की नई उम्मीदें, इस चुनाव को दिलचस्प बना रही हैं.
अभी तक खैर विधानसभा का कोई स्पष्ट विजेता नहीं उभर कर आया है. भाजपा को आरएलडी के साथ होने के बावजूद जाट वोट बैंक की पूरी गारंटी नहीं है, जबकि सपा का भी इस पर दावा मजबूत माना जा रहा है. बसपा और आजाद समाज पार्टी ने भी अपनी-अपनी रणनीति बनाई है और कोशिश कर रहे हैं कि जाट वोट उनके पक्ष में जाए.
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