उत्तर प्रदेश में 4 मई और 11 मई को यूपी निकाय चुनाव के लिए दो चरणों में वोटिंग होगी और 13 मई को नतीजे जारी कर दिए जाएंगे. इस चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर सपा और आरएलडी के गठबंधन में दरार पड़ती नजर आ रही थी. लेकिन अब दोनों दलों ने ऐलान कर दिया है कि वो एक साथ है और पार्टी का गठबंधन मजबूत है.
अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (सपा) और जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने आने वाले निकाय चुनाव में गठबंधन को जारी रखने का फैसला किया है.
क्या थी नाराजगी की वजह
समाजवादी पार्टी और आरएलडी के नेताओं ने कई सार्वजनिक मंच पर कहा था कि वह आने वाले निकाय चुनाव में एक दूसरे का समर्थन करेंगे. लेकिन जब सपा ने प्रत्याशियों के नाम ऐलान किया तो दोनों दलों के बीच दूरी बढ़ गई. आरएलडी ने पश्चिमी यूपी में जिन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे उनमें से कुछ सीटों पर अखिलेश यादव भी अपने प्रत्याशी उतार दिए और जयंत चौधरी को सीधी चुनौती दे डाली.
खासतौर से मेरठ मेयर सीट. इस सीट पर आरएलडी अपना प्रत्याशी चाहती थी, लेकिन वहां से भी अखिलेश यादव ने सपा विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को मैदान में उतार दिया.
सपा और आरएलडी के बीच सीटों के बंटवारे पर खींचतान तब सार्वजनिक मंच पर आ गया जब दोनों सहयोगियों ने पश्चिम यूपी की कई सीटों के लिए अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा की.
मेरठ की मवाना नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद के चुनाव में सपा ने दीपक गिरी को अपना उम्मीदवार घोषित किया, जबकि रालोद ने अय्यूब कालिया को अपना उम्मीदवार घोषित किया. इसी तरह बागपत की खेखड़ा नगर पालिका में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए सपा ने संगीता धामा को प्रत्याशी बनाया तो वही रालोद ने रजनी धामा को इस सीट से टिकट दिया.
इन सीटों पर सपा के प्रत्याशी उतारे जाने का सीधा नुकसान रालोद को होता और इस तरह रालोद-सपा गठबंधन में दरार आने की चर्चाएं भी शुरू हो गई थीं, लेकिन मंगलवार को सपा के अधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट करके कहा था कि बड़ौत व बागपत में सपा स्थानीय नगर निकाय चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव नहीं लड़ेगी.
सपा ने लिया यूटर्न, अब सब ठीक है
दरअसल अब सपा ने यूटर्न लेते हुए बीते मंगलवार यानी 18 अप्रैल को ट्वीट कर कहा, 'उनकी पार्टी बड़ौत और बागपत में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव नहीं लड़ेगी. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इन सीटों पर रालोद को समर्थन देगी.' सपा सूत्रों ने कहा कि मवाना नगर पालिका के अध्यक्ष पद को लेकर दोनों सहयोगियों के बीच के मुद्दों को भी सुलझा लिया जाएगा.
बड़ौत और बागपत में भले ही सपा अध्यक्ष पद पर चुनाव नहीं लड़ेगी. लेकिन पार्टी ने बड़ौत व बागपत के वार्डों में सभासद के लिए अपने प्रत्याशी उतारने शुरू कर दिए हैं. एक तरफ जहां इन्ही सीटों के अध्यक्ष पद पर सपा रालोद का समर्थन करने की बात कर रही है वहीं दूसरी तरफ सभासद के लिए प्रत्याशी उतार दिए.
समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष रविंद्र यादव ने पार्टी के इस फैसले पर कहा कि सपा और रालोद के बीच सभासद को लेकर कोई गठबंधन नहीं है. इसलिए ही हमने सभासद के लिए प्रत्याशी उतारे हैं और अभी 12 को चुनाव चिन्ह दिया गया है. यह प्रक्रिया अभी चल रही है और सभी जगह प्रत्याशी उतारे जाएंगे.
गठबंधन बरकरार लेकिन फैसले से खुश नहीं आरएलडी
सपा के यूटर्न के बाद आरएलडी ने भी साफ कर दिया कि दोनों पार्टी के बीच गठबंधन रहेगा. निकाय चुनाव में दोनों दल कुछ सीटों पर एक दूसरे के आमने-सामने हैं लेकिन उससे गठबंधन पर फर्क नहीं पड़ेगा.
वहीं दोनों पार्टी के बीच सीटों को लेकर हुई खींचतान पर सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी ने कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव में ये मतभेद सामान्य हैं. उन्होंने कहा, "ये मुद्दे स्थानीय चुनावों में हो सकते हैं, लेकिन हमारा गठबंधन प्रभावित नहीं होगा."
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार समाजवादी पार्टी के और एक नेता ने कहा कि निकाय चुनावों में इस तरह के मुद्दे उठना बहुत आम है क्योंकि इन चुनावों में स्थानीय नेताओं को टिकट देने से मना करना बहुत मुश्किल हो जाता है, क्योंकि वह काफी पहले से चुनाव की तैयारी शुरू कर देते हैं.
रालोद के एक नेता ने कहा कि अगर सपा को धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ बीजेपी से लड़ना है तो उसे अपने सहयोगियों के साथ समझौता करना होगा. उन्होंने कहा, 'सपा गठबंधन में बड़ी सहयोगी है, लेकिन उसे याद रखना चाहिए कि हम साथ मिलकर बीजेपी का मुकाबला कर रहे हैं. अन्य सभी सहयोगी जिन्हें सपा ने पहले छोड़ दिया था और आज भाजपा की गोद में बैठे हैं. उन्हें समझना चाहिए कि लड़ाई वैचारिक है और इसके लिए उन्हें समझौता करना पड़ सकता है. हम भी समझौता करेंगे लेकिन यह एकतरफा नहीं हो सकता.
आर पार की लड़ाई के मूड में आरएलडी
बागपत और बड़ौत नगर पालिका पर आरएलडी के समर्थन की बात कहकर भले ही अखिलेश यादव ने डैमेज कंट्रोल कर लिया है. लेकिन अब आरएलडी आर पार की लड़ाई के मूड में नजर आ रही है. जयंत के फैसले पर अखिलेश का फैसला आरएलडी नेताओं को ज्यादा नागवार गुजर रहा है. अब आरएलडी अगर मेरठ या अन्य सीटों पर अपने भी प्रत्याशी उतारेगी तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है. हालांकि सपा नेताओं का कहना है कि बातचीत से मामला हल हो जाएगा.
गठबंधन बच गया लेकिन प्यार का धागा टूट गया
सपा-रालोद के गठबंधन वाले बयान से ये तो साफ है कि दोनों के गठबंधन को लेकर फिलहाल कोई खतरा नहीं है. लेकिन एक दूसरे के आमने सामने प्रत्याशी उतारे जाने के बाद अखिलेश और जयंत चौधरी के बीच का प्यार का धागा टूट चुका ये भी एकदम साफ-साफ नजर आ रहा है.
अगर निकाय चुनाव के परिणाम उनके पक्ष में नहीं आए तो आने वाले समय में सपा और रालोद के बीच एक-दूसरे पर भी आरोप-प्रत्यारोप देखने को मिल सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो 2024 में होनें वाले लोकसभा चुनाव में दोनों दलों की राहें अलग हो सकती हैं.
बीजेपी को होगा बंपर फायदा?
वहीं राज्य की दो मजबूत पार्टियां सपा और रालोद के इस तकरार का सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को ही होगा क्योंकि जिन सीटों पर सपा-रालोद दोनों एक दूसरे के आमने सामने होंगे उस सीट पर एक-दूसरे के कटेंगे और फायदा सीधा बीजेपी को होगा. क्योंकि दोनों पार्टियों का वोट बैंक फिलहाल एक ही माना जा रहा है.
यूपी निकाय चुनाव के लिए दो चरणों में होगी वोटिंग
बता दें कि यूपी निकाय चुनाव के लिए दो चरणों में वोटिंग होगी, इसके लिए पहले चरण में 4 मई और दूसरे चरण के लिए 11 मई को मतदान होना है. वहीं इस चुनाव के नतीजे 13 मई को जारी किए जाएंगे.
आरएलडी-सपा का गठबंधन
2019 के लोकसभा चुनावों में हाथ मिलाने के बाद से एसपी-आरएलडी गठबंधन को कई बार उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ा है, लेकिन दोनों पार्टियां अब तक अपने मतभेदों को दूर करने में कामयाब रही हैं. सपा ने साल 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए कई छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाया था. उन दलों में रालोद एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने अभी भी सपा के साथ अपना गठबंधन नहीं तोड़ा है, भले ही उनका गठबंधन सफल नहीं हो सका. इसके अन्य सहयोगी जैसे ओम प्रकाश राजभर की SBSP और केशव देव मौर्य की महान दल ने चुनाव के तुरंत बाद SP से नाता तोड़ लिया.
2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और आरएलडी ने मिलकर मैदान में उतरी थी. हालांकि इस गठबंधन से आरएलडी-समाजवादी पार्टी को बहुत लाभ नहीं मिला था, लेकिन खतौली उपचुनाव में जिस तरह से आरएलडी ने चुनाव जीता है, उसके बाद से जयंत चौधरी के हौसले बुलंद हैं.
ऐसे में जहां एक तरफ आरएलडी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक आधार को पहले की तरह ही मजबूत रखना चाहती है. वहीं दूसरी तरफ सपा जयंत चौधरी के पिछलग्गू बनकर नहीं चलना चाहती है. यही कारण है कि समाजवादी पार्टी और आरएलडी दोनों की पार्टियों ने निकाय चुनाव में अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं.