UP Election 2022: बीजेपी-सपा समेत सभी दलों का पूर्वांचल पर फोकस, जानें- यूपी की सत्ता तक पहुंचने के लिए ये कितना जरूरी
UP Elections: बीजेपी के लिए पूर्वांचल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सीएम योगी आदित्यनाथ का गृहजनपद गोरखपुर और प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी इसी में शामिल है.
UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सत्ता संग्राम की शुरूआत हो चुकी है. सत्तारूढ़ दल बीजेपी, सपा, बसपा कांग्रेस सभी का फोकस इन दिनों पूर्वांचल (Purvanchal) पर ही है. हर कोई सत्ता पाने के लिए चुनावी समर में अपने तरकश के तीर चलाने में जुट चुका है. सभी दलों को लगता है कि यहां की 164 सीटों पर विजय मिल जाए तो सत्ता पाने में आसानी रहेगी. इसी कारण सभी राजनीतिक दल इन दिनों पूर्वांचल को ही अपना सियासी आखाड़ा बनाए हुए हैं. बीजेपी के लिए पूर्वांचल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृहजनपद गोरखपुर और प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी इसी में शामिल है. 2014 का लोकसभा हो, या फिर 2017 का विधानसभा चुनाव, फिर 2019 चुनाव में भी यहां बीजेपी को अच्छी सफलता मिली है. उसी जीत को बरकार रखने के लिए बीजेपी का यहां पर ज्यादा जोर है.
इसी वजह से खुद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह ने यहां की कमान अपने हाथों में सभाल रखी है. 2022 चुनाव को देखते प्रधानमंत्री मोदी ने कुशीनगर, सिद्धार्थ नगर, वाराणसी का दौरा कर कई सौगात दे चुके हैं. अब उनका दौरा 16 नवम्बर को पूर्वांचल एक्प्रेस वे का उद्घाटन भी करेंगे. गृहमंत्री अमित शाह 12 नवम्बर को वाराणसी, 13 को आजमगढ़, बस्ती में शाह अलग-अलग पदाधिकारियों के साथ बैठक करके जीत का मंत्री देंगे. अपने जीत के क्रम को बरकार रखने के लिए बीजेपी ने 2022 में संजय निषाद की निषाद पार्टी और अनुप्रिया पटेल की अपना दल से समझौता कर रखा है.
पूर्वांचल में ये 28 जिले आते हैं
पूर्वांचल में करीब 28 जिले आते हैं, जो राजनीति की दशा-दिशा बदलने में सहायक होते हैं. इनमें वाराणसी, जौनपुर, भदोही, मिजार्पुर, सोनभद्र, प्रयागराज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, कौशांबी और अंबेडकरनगर जिले शामिल हैं.
BJP को 2017 में तकरीबन 115 सीटें मिली थी
भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 2017 में तकरीबन 115 सीटें मिली थी, जिसकी दम पर वह सत्ता पर काबिज हुए थे. सपा को 17 सीटें हासिल हुई थी. बसपा के खाते पर भी 14 सीटे आई थी. कांग्रेस को 2 जबकि अन्य के खाते में 16 सीटें मिली थी. 2012 में जब सपा सत्ता में आयी थी, तो पूर्वांचल का रोल बहुत अहम था.
इसी कारण समजावादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी पूर्वांचल में बीजेपी का किला ढहाने के लिए ओमप्रकाश राजभर से हाथ मिलाया है. उन्होंने उनके साथ मंच पर एक रैली भी की है. इसके बाद अखिलेश यादव ने बसपा के मजबूत किले अम्बेडकर नगर के दो मजबूत नेता लालजी वर्मा और रामअचल राजभर को शामिल कराकर बड़ा संदेश दिया है. इसके अलावा सपा की रथ यात्रा का अगला पड़ाव 13 नवंबर पूर्वांचल के गोरखपुर और कुशीनगर में होगा. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपना पूर्वांचल गढ़ बचाने के लिए लगातार प्रयास में लगी है. इसी कारण प्रबुद्ध सम्मेलनों में यहां के जिलों पर विशेष फोकस रहा है. अभी वाराणसी में 14 नवम्बर महिला सम्मेलन होने जा रहा है. जिसकी कमान सतीश मिश्रा की पत्नी के हाथों में है. इसके अलावा युवा सम्मेलन भी पूर्वांचल के जिलों में होंगे.
प्रियंका गांधी वाराणसी और गोरखपुर में दो बड़ी रैली कर चुकी हैं
कांग्रेस पार्टी भी पूर्वांचल की ओर अपना रूख कर चुकी है. कई छोटी-छोटी बैठकों के अलावा पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाराणसी और गोरखपुर में दो बड़ी रैली कर चुकी हैं. उनका फोकस भी अभी पूर्वांचल की ओर ही है. कांग्रेस के पास पूर्वांचल में महज दो सीटे मिली थी, उन्हें अपनी सीटें बढ़ानी हैं.
पूर्वांचल में जातीय समीकरण बहुत लचीला है
पूर्वांचल की राजनीति पर दशकों ने नजर रखने वाले वारिष्ठ पत्रकार राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि पूर्वांचल में जातीय समीकरण बहुत लचीला है. जाट, और गुर्जर को छोड़ दें तो यहां लगभग सभी प्रकार की जातियों का प्रतिनिधत्व देखने को मिलता है. यहां पिछड़ों और अगड़े की सभी जातियां है. यूपी के चुनाव लाख विकास की बात करें लेकिन अन्त तक जातीय और धार्मिक मुद्दों में होते हैं. अखिलेश यादव का जबसे राजभर से गठबंधन हुआ है, तो उन्हें लगता है राजभर, यादव और मुस्लिम का गठजोड़ हो जाएगा तो उनकी सीटें बढ़ जाएंगी.
इसी प्रकार कांग्रेस भी दो सीटों से अपनी सीटों को बढ़ा चाहती है. उन्होंने बताया कि बीजेपी को यहां कई चुनौती है. इसीलिए उसने निषाद पार्टी और अनुप्रिया की पार्टी से गठबंधन कर रखा है. पूर्वी यूपी चुनावी और जातीय दृष्टि से थोड़ा लचीला है. इस कारण सभी पार्टियों को जगह बनाने में आसानी होती है.
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