UP Assembly Election 2022: यूपी में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी को एक बार फ़िर से भगवान राम की याद आई है. मझधार में फंसी चुनावी नैया को पार लगाने के लिए बीजेपी ने यहां राम को सियासी मुद्दा बनाते हुए उनके नाम पर खुलकर वोट मांगना शुरू कर दिया है. पार्टी अयोध्या में रामलला के निर्माणाधीन मंदिर का श्रेय लेते हुए जगह-जगह इसकी होर्डिंग्स लगवाकर लोगों से बीजेपी के पक्ष में वोट देने की अपील कर रही है. संगम नगरी प्रयागराज में बीजेपी की तरफ से लगाई गई राम मंदिर की तस्वीरों वाली इन होर्डिंग्स पर सियासी कोहराम मच गया है. विपक्षी पार्टियों का साफ़ आरोप है कि विकास और बुनियादी मुद्दों पर फेल बीजेपी अब वोटरों के बीच साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कराने के लिए जान बूझकर भगवान राम के नाम का सहारा ले रही है.


यूपी की सियासी महाभारत में भगवान राम पिछले तीन दशकों से बड़ा मुद्दा बने रहते हैं. उम्मीद थी कि विकास और सुशासन के बड़े-बड़े दावों के बीच अपने मंदिर का वनवास ख़त्म होने के बाद भगवान राम को इस बार सियासत की शतरंजी बिसात पर इस्तेमाल होने से बचने का मौका मिल जाएगा, लेकिन ये कयास गलत साबित हुए और चुनाव की घोषणा से तकरीबन महीने भर पहले ही ज़ोरदार तरीके से उनकी एंट्री हो गई है. राम के नाम की इस बार एंट्री ही नहीं हुई, बल्कि खुलकर उनके नाम पर वोट भी मांगे जा रहे हैं. अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण भले ही देश की सबसे बड़ी अदालत से आए फैसले की वजह से हो रहा है, लेकिन राम के नाम अक्सर हो वोट मांगने वाली बीजेपी इसका श्रेय खुद ले रही है. वह भी चोरी-छिपे नहीं, बल्कि शहरों में बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगवाकर, खुलेआम डंके की चोट पर. सूबे के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के शहर संगम नगरी प्रयागराज में तो बीजेपी की तरफ से तमाम जगहों पर लगाई गई होर्डिंग्स ने यह साफ़ कर दिया है कि विकास और सुशासन अपनी जगह है, लेकिन वोट तो भगवान राम और उनके मंदिर के नाम पर ही मांगना है.


अवधेश गुप्ता ने कही ये बड़ी बात


प्रयागराज में जो होर्डिंग्स लगवाई गई हैं, उनमे रामलला की दो तस्वीरें भी प्रिंट हैं. पहली तस्वीर में टेंट में बारिश में भीगते हुए रामलला की तस्वीर है तो दूसरे हिस्से में अयोध्या में निर्माणाधीन मंदिर के भव्य मॉडल की. होर्डिंग्स में सबसे ऊपर लिखा हुआ है- फ़र्क साफ़ है. तब रामलला थे टेंट में और अब हो रहा भव्य राम मंदिर का निर्माण. सबसे नीचे बीचों-बीच बीजेपी का चुनाव निशान कमल का फ़ूल बना हुआ है. इसके बाईं तरफ लिखा हुआ है- सोच ईमानदार, काम दमदार. जबकि, दाहिनी तरफ लिखा हुआ है- फिर एक बार बीजेपी सरकार. इन होर्डिंग्स को लेकर बीजेपी कतई बैकफुट पर नहीं है. पार्टी के काशी प्रांत के उपाध्यक्ष अवधेश गुप्ता का साफ़ तौर पर कहना है कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. उनके मुताबिक़ बीजेपी राम को चुनावी मुद्दा कतई नहीं बना रही है, लेकिन भगवान और उनके मंदिर के लिए पार्टी ने जो कुछ किया, उसकी जानकारी लोगों तक पहुंचनी ही चाहिए. अवधेश गुप्ता का कहना है कि राम ने हमेशा बीजेपी की नैया को पार लगाया है तो इस बार भी उनका आशीर्वाद लेने पर मचा सियासी कोहराम कतई ठीक नहीं है. बाकी पार्टियों को भी बताना चाहिए कि उन्होंने भगवान राम और उनके मंदिर के निर्माण में किस तरह से रुकावटें पैदा की हैं.


विपक्ष ने मौजूदा सरकार पर जमकर साधा निशाना


राम मंदिर निर्माण का क्रेडिट लेते हुए इसके नाम पर वोट मांगने बीजेपी की इन होर्डिंग्स को लेकर सियासी पारा गरम हो गया है. विपक्षी पार्टियां इन होर्डिंग्स के ज़रिये बीजेपी पर निशाना साध रही हैं. विपक्ष का कहना है कि मौजूदा सरकार के विकास और सुशासन के झूठे दावों की हवा निकल चुकी है, इसी वजह राम मंदिर के भावनात्मक मुद्दे के बहाने साम्प्रदायिकता फैलाने और वोटों का ध्रुवीकरण कराने की कोशिश की जा रही है. समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद नागेंद्र सिंह पटेल का कहना है कि बीजेपी को अपनी हार का एहसास हो गया है और इसी वजह से वह वोटरों को बरगलाने की फिराक में हैं. उनके मुताबिक़ इसके बावजूद बीजेपी को कोई फायदा नहीं होने वाला, क्योंकि लोग उसकी असलियत को समझ चुके हैं. कांग्रेस पार्टी के नेता और किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष सुशील तिवारी ने इन होर्डिंग्स को लेकर बीजेपी और योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि राम का नाम बदनाम करने वालों को इससे कोई फायदा नहीं होगा. उन्होंने दावा किया कि राम मंदिर के निर्माण का रास्ता तो राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस की पूर्व सरकार में साफ़ हुआ था.


बीजेपी की इन होर्डिंग्स से साफ़ है कि यूपी विधानसभा चुनाव में बुनियादी और ज़रूरी मुद्दों के बजाय वोटों का ध्रुवीकरण कराने वाले भावनात्मक मुद्दे ही हावी रहेंगे. बीजेपी एक बार फ़िर राम के नाम का सहारा तो लिया है, लेकिन राम नाम के सहारे उसे नया जीवनदान मिलेगा और उसकी चुनावी नैया पार होगी या फ़िर इस बार उसे निराश होना पड़ेगा, इसका फैसला तो वक़्त करेगा.


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