Manikpur Assembly constituency: भारत निर्वाचन आयोग ने 5 राज्यों में चुनाव की तिथियों की घोषणा कर दी है. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में चुनाव की तिथियों की घोषणा होते ही सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने तौर तरीके से चुनावी गेम साधने में जुट गई हैं. सियासी दल जनता को चुनावी मुद्दे बताकर उनके बीच पकड़ बनाने का प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में हाल ही में भाजपा (BJP) छोड़कर सपा में जाने वाले नेताओं को देखकर समाजवादी पार्टी ये दावा कर रही है कि प्रदेश में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की लहर है और विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में सपा की सरकार बनेगी. तो चलिए हम आपको यूपी की ऐसी विधानसभा सीट के बारे में बताते जहां समाजवादी पार्टी आज तक अपना खाता ही नहीं खोल पाई है. 


मूलभूत सुविधाओं की है कमी 
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ये विधानसभा क्षेत्र 227 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां आज तक समाजवादी पार्टी अपनी मजबूती नहीं बना पाई है. ये विधानसभा कभी देश विदेश में डकैतों के आतंक के नाम पर फेमस हुई थी और इस क्षेत्र को डकैतों के गढ़ के नाम से भी जाने जाना लगा था, जिसके कारण आज तक इस क्षेत्र में विकास की गंगा नहीं बह पाई है. यहां आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद करते नजर आ रहे हैं. ये बात है मानिकपुर विधानसभा 237 की जिसके अंदर दो तहसील आती हैं, कुछ भाग राजापुर तहसील में भी आता है. क्षेत्रफल की दृष्टि से जिले की ये सबसे बड़ी विधानसभा है. मानिकपुर विधानसभा के पाठा क्षेत्र में खूबसूरत प्राकृतिक नजारे देखने के लिए यहां सैलानियों की आवाजाही लगी रहती है. चित्रकूट की मानिकपुर विधानसभा सीट का पठारी भाग डकैतों के पनपने, पुलिस से बचने की जगह मानी जाती है और अपराध करने के बाद सीमावर्ती मध्य प्रदेश में चले जाने के लिए चर्चित रहा है. 


डकैतों से मुक्त हो चुका है इलाका 
डकैत गया प्रसाद से लेकर साढ़े सात लाख के इनामी दस्यु सरगना शिव कुमार उर्फ ददुआ, अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया जैसे दुर्दांत डकैत मानिकपुर के जंगलों में रहकर अपराध की दुनिया में सक्रिय रहे. साल 1965 में दस्यु गया प्रसाद ने अपना आतंक फैलाने के लिए यहां के जंगलों में शरण ली लेकिन कभी राजनीति में नहीं आया. साल 1980 से दस्यु गया प्रसाद के शिष्य दस्यु सम्राट ददुआ ने दस्यु गया प्रसाद की विरासत संभाली थी. दस्यु सम्राट ददुआ ने जुर्म की दुनिया में अपना नाम इतना फैला दिया कि इस क्षेत्र में दस्यु सम्राट ददुआ के इशारे पर यहां जन प्रतिनिधि चुने जाने लगे थे. ददुआ ने खुद अपने भाई और बेटे को जन प्रतिनिधि तक बनवाया था. इसी प्रकार दस्यु सम्राट ददुआ के खात्मे के बाद ठोकिया, बलखड़िया, बबली कोल और गौरी यादव इसी राह पर चले और इनके खात्मे के बाद बदले हालात में ये इलाका अब डकैतों से मुक्त हो चुका है.


ये है इतिहास 
मानिकपुर विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो ये सीट पहले चुनाव से लेकर सन 2007 तक अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित रही. इस सीट के चुनावी अतीत की बात करें तो साल 1952 में कांग्रेस के दर्शन राम इस सीट से पहले विधायक निर्वाचित हुए. 1957, 1962 और 1969 में कांग्रेस की सिया दुलारी, 1967 में जनसंघ के इन्द्र पाल कोल, 1974 में भारतीय जनसंघ के लक्ष्मी प्रसाद वर्मा, 1977 में जनसंघ के रमेश चंद्र कुरील, 1980 और 1985 में कांग्रेस के शिरोमणि भाई इस सीट से विधायक निर्वाचित हुए. मानिकपुर विधानसभा सीट से 1989 और 1993 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मन्नू लाल कुरील विधानसभा पहुंचे तो 1996, 2002 और 2007 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के दद्दू प्रसाद विधायक बने. 2008 के परिसीमन में ये सीट सामान्य हो गई. मानिकपुर सीट के सामान्य होने के बाद 2012 में हुए पहले चुनाव में बसपा ने चंद्रभान सिंह को उम्मीदवार बनाया और वो जीतकर विधानसभा पहुंचने में भी सफल रहे.


बीजेपी की रही है पकड़ 
मानिकपुर विधानसभा सीट से साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आरके पटेल को उम्मीदवार बनाया. चित्रकूट सदर विधानसभा सीट से बसपा के पूर्व विधायक आरके पटेल बीजेपी के टिकट पर मानिकपुर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने आरके पटेल को उम्मीदवार बनाया और वो जीतकर संसद में पहुंच गए. आरके पटेल के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव हुए. उपचुनाव में बीजेपी ने आनंद शुक्ल को उम्मीदवार बनाया और सपा ने निर्भय सिंह पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन भाजपा से आनंद शुक्ला जीतने में सफल रहे लेकिन दूसरे नंबर पर सपा से निर्भय सिंह पटेल रहे. 


बढ़ा है सपा का ग्राफ
इस सीट पर कहीं ना कहीं समाजवादी पार्टी का ग्राफ उठता हुआ नजर आ रहा है. मानिकपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल करीब साढ़े तीन लाख मतदाता हैं. इस सीट के सामाजिक ताने-बाने की बात की जाए तो ये क्षेत्र अनुसूचित जाति और जनजाति बाहुल्य है. आदिवासी समुदाय के कोल बिरादरी के मतदाताओं की संख्या यहां अधिक है. ब्राह्मण, यादव, पटेल, पाल और निषाद बिरादरी के वोटर भी इस सीट का परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. अब देखना होगा कि डकैत मुक्त इस विधानसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी अपना झंडा लहरा पाती है कि नहीं. 


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