उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए बिसात बिछाई जा रही है. उत्तर प्रदेश की विधानसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 86 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से 84 सीटों एससी और 2 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. हर राजनीतिक दल इन सीटों के लिए अलग से रणनीति बनाता है. क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य की सत्ता पाने के लिए ये 86 सीटें बहुत जरूरी हैं. आइए देखते हैं कि पिछले 3 चुनाव में इन सीटों पर कैसा रहा है गणित.
क्या है रिजर्व सीटों का गणित
बात करते हैं 2007 के विधानसभा चुनाव की. उस समय विधानसभा में एससी के लिए 89 सीटें रिजर्व थीं. उस साल के चुनाव में बसपा ने 61 रिजर्व सीटों पर जीत दर्ज की थी. सपा ने 13, बीजेपी ने 7, कांग्रेस ने 5, आरएलडी ने 1, राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी ने 1 और निर्दलीय ने 1 सीट पर जीत दर्ज की थी. बसपा ने 69 फीसदी रिजर्व सीटों पर जीत दर्ज की थी.
वहीं अगर बात करें 2012 के चुनाव की तो, उस समय विधानसभा में 85 सीटें रिजर्व थीं. उस चुनाव में सपा ने इनमें से 58, बसपा ने 15, कांग्रेस ने 4, बीजेपी ने 3, आरएलडी ने 3 और निर्दलियों ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी. सपा ने इस चुनाव में रिजर्व कैटेगरी की 68 फीसदी सीटों पर जीत दर्ज कर प्रदेश में अपने दम पर बहुमत लाकर पहली बार सरकार बनाई थी.
आदिवासियों के लिए आरक्षित की गईं दो सीटें
वहीं 2017 के चुनाव में विधानसभा में रिजर्व सीटों की संख्या 86 हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूपी में पहली बार दो सीटें एसटी के लिए आरक्षित की गई थीं. दोनों सीटें सोनभद्र जिले में हैं. बीजेपी ने इनमें से 70 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उसने एससी वर्ग की 69 और एसटी वर्ग की 1 सीट जीती थी. वहीं सपा ने 7, बसपा ने 2 और 1 सीट निर्दलीय ने जीती थी. अपना दल ने 3 सीटें जीती थीं. इनमें से 2 एससी और 1 एसटी वर्ग के लिए आरक्षित सीट थी. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अपना दल और एसबीएसपी ने बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. इस तरह बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने 88 फीसदी सीटों पर जीत दर्ज की थी.
इन तीनों चुनाव के नतीजों को देखने से पता चलता है कि रिजर्व कैटेगरी की 65 फीसदी से अधिक सीटें जीतने वाली पार्टी ही उत्तर प्रदेश में सरकार बनाती है.