UP Assembly Election 2022: यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं वैसे वैसे अब उत्तर प्रदेश में होने वाले सियासी गठबंधनों की तस्वीर भी कुछ साफ होती दिख रही है. आज जिस तरीके से पूर्व कैबिनेट मंत्री और सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने संकेत दिए हैं कि वह बीजेपी के साथ 2022 का चुनाव लड़ सकते हैं, उससे अब भागीदारी संकल्प मोर्चा को लेकर जो कयास लगाए जा रहे थे वह तस्वीर साफ होती दिख रही है.
दरअसल, ओमप्रकाश राजभर ने 2022 विधानसभा चुनाव के लिए भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठन किया था जिसमें उनकी पार्टी समेत कुल 11 छोटे दल शामिल थे. इसमें ओमप्रकाश राजभर अपने साथ असदुद्दीन ओवैसी को भी लाने में कामयाब हुए थे. हालांकि कुछ समय पहले दोनों के संबंधों में दरार तब देखने को मिली जब ओवैसी की पार्टी ने 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार लड़ाने की बात कही थी, लेकिन आज जिस तरीके से ओमप्रकाश राजभर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस बात के संकेत दिए हैं कि वह बीजेपी के साथ भी जा सकते हैं, इस बयान के आने के बाद अब एआईएमआईएम के नेता कह रहे हैं कि उनकी पार्टी AIMIM का बीजेपी के साथ जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता. भले उन्हें यह गठबंधन ही क्यों ना छोड़ना पड़े.
ओमप्रकाश राजभर 27 अक्टूबर को मऊ में अपनी पार्टी के 19 वें स्थापना दिवस पर वंचित पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक महापंचायत करने वाले हैं और उसी दिन वह गठबंधन का भी एलान करेंगे. सूत्रों की मानें तो उस दिन उनके मंच पर बीजेपी के बड़े नेता भी मौजूद रहेंगे जहां गठबंधन का ऐलान होगा. ऐसे में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के नेता कह रहे हैं कि उनके भागीदारी संकल्प मोर्चे में कुल 11 छोटे दल शामिल थे और अगर ओवैसी और बाबू सिंह कुशवाहा इन दो नेताओं को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी नौ छोटे दल ओमप्रकाश राजभर के साथ रहेंगे इस बात की उन्हें उम्मीद है.
राजभर बीजेपी के लिए जरूरी या मजबूरी?
अब आइए आपको बताते हैं कि आखिर ओमप्रकाश राजभर बीजेपी के लिए जरूरी या मजबूरी क्यों हैं. दरअसल पूर्वांचल कि लगभग 146 सीटों पर राजभर वोट बैंक काफी संख्या में है, जिसमें 29 जिले आते हैं. ऐसे में बीजेपी किसी भी कीमत पर चुनाव में कोई भी रिस्क नहीं उठाना चाहती इसीलिए लगातार बीजेपी ओमप्रकाश राजभर के संपर्क में रही. जिससे कि 2022 के विधानसभा चुनाव में राजभर को साथ लाए जा सके और अब उसे कामयाबी मिलती दिख रही है. ओमप्रकाश राजभर अगर बीजेपी के साथ जाते हैं और असदुद्दीन ओवैसी अकेले चुनाव लड़ते हैं तो इसका असर कहीं ना कहीं उन पार्टियों पर पड़ेगा जिन्हें अल्पसंख्यक वोट देते हैं, क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का फोकस ऐसी 100 सीटों पर है जहां मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं.
दरअसल, ओमप्रकाश राजभर के साथ ओवैसी के जाने पर कहीं ना कहीं दोनों पार्टियों को फायदा होता क्योंकि इन 146 सीटों में मुस्लिम वोट बैंक की अगर बात करें तो वह 9 से 12 फीसदी हैं और अगर इसमें राजभर वोट जुड़ता तो कहीं ना कहीं चुनाव में दूसरे उम्मीदवारों को वो कड़ी टक्कर देते. लेकिन अब जब समीकरण बदल रहे हैं तब इसका फायदा उसे मिलेगा जिसके साथ ओमप्रकाश राजभर का गठबंधन होगा और दूसरे दलों को इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है.
ओमप्रकाश राजभर की पार्टी ने हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भी अपनी ताकत दिखाई थी, जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में राजभर की पार्टी से जुड़े 117 सदस्य जीते थे, 2700 ग्राम प्रधान चुने गए और 1800 बीडीसी बीडीसी सदस्य जीते. बलिया आजमगढ़ में बीजेपी को जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हराने में राजभर ने बड़ी भूमिका भी निभाई. लेकिन अब एक बार फिर राजभर बीजेपी के साथ जाते दिख रहे हैं, वो दावा के रहे हैं कि जिसके साथ जाएंगे उसकी सरकार ही 2022 में बनेगी. ये दावे हकीकत में बदलेंगे या नहीं ये फैसला तो जनता करेगी.
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