UP Assembly Election 2022: यूपी में 2022 विधानसभा चुनाव में अब काफी कम दिन बचे हैं. ऐसे में तमाम सियासी दल अपनी रणनीति तैयार करने में जुटे हैं. कोई गठबंधन का ऐलान कर रहा है तो कोई नया सियासी साथी खोज रहा है. हालांकि उत्तर प्रदेश की सियासत में बीते 3 वर्षों से कई चुनाव साथ लड़ने वाले आरएलडी और सपा के बीच लगता है कि तालमेल नहीं बन पा रहा है, तभी तो आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी ये तो कहते हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन का कोई सवाल नहीं है, लेकिन सपा के साथ जाने के सवाल पर वह कहते हैं कि 2022 की बात 2022 में करेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जयंत चौधरी के मन में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर कोई सन्देह है, या फिर गठबंधन में अपनी सीटें बढ़वाने की उनके अपनी कोई स्ट्रेटेजी है.


साल 2018 में उत्तर प्रदेश में जब लोकसभा की सीटों पर उपचुनाव हो रहे थे तब समाजवादी पार्टी और आरएलडी के गठबंधन ने कमाल किया और कैराना सीट पर आरएलडी की तबस्सुम हसन उपचुनाव जीत गई. उसके बाद तो समाजवादी पार्टी और आरएलडी का गठबंधन इतना मजबूत हुआ कि 2019 में बसपा के साथ गठबंधन करने के बावजूद भी समाजवादी पार्टी ने 3 सीटें आरएलडी को दी थी और फिर यही साथ पंचायत चुनाव के दौरान भी देखने को मिला. लेकिन 2022 के चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और आरएलडी के बीच गठबंधन पर कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है. 


सीटों पर अभी बातचीत होनी है- अनिल दुबे


आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी कई बार यह कह चुके हैं कि 2022 की बात 2022 में करेंगे जबकि इससे पहले जितने भी चुनाव हुए उसमें दोनों ही पार्टियों ने साथ आने का ऐलान काफी पहले ही कर दिया. ऐसे में एक सवाल ये उठ रहा है कि क्या किसान आंदोलन के चलते जयंत चौधरी के मन में समाजवादी पार्टी के साथ जाने को लेकर कुछ शक सुबा है. हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अनिल दुबे साफ तौर पर कह रहे हैं कि समाजवादी पार्टी के साथ आरएलडी का वैचारिक गठबंधन है. वैचारिक रूप से दोनों पार्टियां साथ हैं. वो ये भी कहते हैं कि जयंत चौधरी और अखिलेश यादव में अच्छी अंडरस्टैंडिंग है, और 2022 के लिए गठबंधन पर सैद्धान्तिक सहमति भी है, हालांकि सीटों पर अभी बातचीत होनी है.


वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शायद जयंत चौधरी इस बार समाजवादी पार्टी से गठबंधन में ज्यादा सीटें चाहते हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि इस बार किसान आरएलडी का साथ देगा. जिस तरीके से लगातार किसान आंदोलन में, किसान महापंचायतों में जयंत चौधरी शामिल हुए हैं उससे उन्हें उम्मीद है कि किसान इस बार आरएलडी का बेड़ा पार करेंगे और इसीलिए वह शायद समाजवादी पार्टी से ज्यादा सीटें चाहते हैं, इसी लिए वो अभी गठबंधन पर कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहे हैं.


अखिलेश-जयंत विरासत की सियासत करते हैं- बीजेपी


वहीं बीजेपी साफ तौर पर कह रही है कि चाहे अखिलेश यादव हो चाहे जयंत चौधरी हो दोनों नेता विरासत की सियासत करते हैं. दोनों ही नेताओं ने अपने-अपने पार्टियों को पतन के कगार पर ले जाकर खड़ा कर दिया है. ये चाहे साथ साथ लड़ें या अलग-अलग इनकी पराजय इस बार भी साफ दिखाई दे रही है.


प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में अब बहुत कम दिन बचे हैं ऐसे में सियासी दल भले ही अपने पत्ते नहीं खोल रहे हो, लेकिन कई बार जनता के बीच देर से संदेश जाना भी नुकसानदायक साबित होता है.


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