जैसे-जैसे यूपी विधानसभा चुनाव के दिन करीब आ रहे हैं, वैसे-वैसे सोशल मीडिया से लेकर अवाम की जुबान पर एक ही सवाल गर्दिश कर रहा है कि आखिर यूपी विधानसभा चुनाव-2022 का विजेता कौन होगा, किस पार्टी की जीत होगी, कौन रेस में पिछड़ जाएगा, किस नेता के सिर पर सजेगा ताज और किसे करना पड़ेगा जीत के लिए इंतेजार? जनता की जुबान पर बने इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल भी नहीं है. आइए यूपी विधानसभा चुनाव-2022 को समझते हैं.
उत्तर प्रदेश में कुछ मुद्दे हैं जो इस वक्त सबसे अहम हैं. हालांकि, चुनाव में जीत-हार से जुड़ी दिक्कत ये है जैसे-जैसे चुनाव के दिन करीब होते जाते हैं मुद्दे बदल भी जाते हैं और कभी-कभी तो अचानक ऐसे गर्म मुद्दे की दस्तक हो जाती है कि सभी पुराने गिले शिकवे दूर हो जाते हैं और किसी एक पार्टी के हक में हवा बन जाती है और उसका जीतना तय हो जाता है. अभी क्या मुद्दे हैं? इस वक्त राज्य में किसान आंदोलन, बेरोज़गागी, महंगाई, कोराना की दूसरी लहर की बदइंतजामी, राम मंदिर और मुसलमानों की सरकार से नाराज़गी बड़े मुद्दे हैं.
फैक्टर क्या है?
जनता के मुद्दे और चुनावी फैक्टर में कुछ फर्क होता है. लंबे समय से देश में किसान आंदोलन जारी है, पेट्रोल, डीजल और एलपीजी के दाम चरम पर हैं, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकार की नाकामी से भी गुस्सा है लेकिन चुनाव में वोटिंग सिर्फ इन्हीं मुद्दों पर नहीं होती. बल्कि सामाजिक और धार्मिक फैक्टर का बड़ा दखल होता है. यही वजह है कि सूबे में अलग-अलग जातियों को लुभाने के लिए सभी पार्टियां अपनी अपनी कोशिश में लगी हुई हैं. सांप्रदायिक और धार्मिक मुद्दों को भी उछाला जा रहा है. ऐसे में चुनाव मुद्दों के बजाय फैक्टर के सहारे जीत-हार के गणित में बदल जाता है.
किस पार्टी को जीत मिलेगी?
ये बड़ा सवाल है. लेकिन मजाक के तौर पर इसका जवाब भी बहुत ही आसान है. जनता जिसे पसंद करेगी, वो पार्टी जीतेगी. अब सवाल है कि जनता किसे पसंद करेगी. इसे समझने के लिए ये याद रखना होगा कि इस वक्त हवा के रुख को भांपना होगा, विभिन्न सर्वे का सहारा लेना होगा, हालांकि, सर्वे के नतीजे हर बार सही नहीं होते हैं और जिसे लहर बताया जाता है वो भी पिट जाते हैं. फिर भी जो एक मोटी तस्वीर उभरकर आ रही है उसमें साफ दिख रहा है कि बीजेपी, सपा, बसपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम के अलावा कई छोटी पार्टियां इस चुनाव में जोरआजमाइश कर रही हैं. सब के अपने अपने दावे हैं, लेकिन चुनावी तस्वीर साफ होने में अभी और वक्त लगेगा. वैसे सच तो ये है कि कोई विश्लेषण किसी भी पार्टी की जीत या हार का सही आकलन नहीं कर सकता. क्योंकि जनता के मन में क्या है, ये सिर्फ चुनाव नतीजों से ही पता चलेगा.
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