UP Election 2022 Prediction: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है. सभी पार्टियां मैदान में कूद पड़ी हैं. हर अपनी अपनी जीत के दावे कर रही है और अपने हिसाब से समीकरण बनाने और दूसरे का बिगाड़ने में लगी हुई हैं. इस बीच जनता की जुबान पर एक ही सवाल है कि आखिर यूपी विधानसभा चुनाव-2022 का विजेता कौन होगा, किस पार्टी की जीत होगी, किसकी झोली में हार जाएगी. कौन नेता बाज़ीगर माना जाएगा, किसकी जमीन खिसक जाएगी? ऐसे अनेक सवाल हैं, लेकिन इन सवालों का जवाब जानने के लिए आइए यूपी विधानसभा चुनाव-2022 को समझते हैं. याद रहे इसका जवाब इतना आसान भी नहीं है.


किसी भी चुनाव में किसी पार्टी की जीत/हार के लिए उसके पक्ष-विपक्ष में लहर या गर्म मुद्दे का होना अहम माना जाता है. बीते दो तीन महीने की चुनावी सरगर्मी को देखें तो किसी नतीजे पर पहुंचना इतना आसान नहीं है. साफ दिख रही है कि किसी एक पार्टी के पक्ष में कोई लहर नहीं है, लेकिन किसी पार्टी के विरोध में भी कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जो उसे इस सत्ता की दौड़ से बाहर कर दे. 


चुनाव में जीत-हार से जुड़ी दिक्कत ये है जैसे-जैसे चुनाव के दिन करीब होते जाते हैं मुद्दे बदल भी जाते हैं और कभी-कभी तो अचानक ऐसे गर्म मुद्दे की दस्तक हो जाती है कि सभी पुराने गिले शिकवे दूर हो जाते हैं और किसी एक पार्टी के पक्ष में लहर तैयार हो जाती है और उसका जीतना तय हो जाता है. 


राज्य में किसान आंदोलन का मुद्दा खत्म हो गया है, लेकिन इस आंदोलन से पनपे मुद्दे और नाराजगी क्या रंग खिलाएंगे, किसी को भी पता नहीं है या इसका आकलन आसान नहीं है. लेकिन बेरोज़गागी, महंगाई, कोराना की दूसरी लहर की बदइंतजामी, राम मंदिर और मुसलमानों की सरकार से नाराज़गी अभी भी बड़े मुद्दे हैं.


फैक्टर क्या है?


जनता के मुद्दे और चुनावी फैक्टर में कुछ फर्क होता है. लंबे समय से देश में किसान आंदोलन जारी रहा, पेट्रोल, डीजल और एलपीजी के दाम चरम पर हैं, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकार की नाकामी से भी गुस्सा है लेकिन चुनाव में वोटिंग सिर्फ इन्हीं मुद्दों पर नहीं होती. बल्कि सामाजिक और धार्मिक फैक्टर का बड़ा दखल होता है. यही वजह है कि सूबे में अलग-अलग जातियों को लुभाने के लिए सभी पार्टियां अपनी अपनी कोशिश में लगी हुई हैं. सांप्रदायिक और धार्मिक मुद्दों को भी उछाला जा रहा है. ऐसे में चुनाव मुद्दों के बजाय फैक्टर के सहारे जीत-हार के गणित में बदल जाता है. जिन्ना का जिन्न एक बार फिर चुनाव में बड़ा मुद्दा बन गया है. हिंदूत्व भी एक बड़ा मुद्दा बन रहा है.


किस पार्टी को जीत मिलेगी?


ये बड़ा सवाल है. लेकिन मजाक के तौर पर इसका जवाब भी बहुत ही आसान है. जनता जिसे पसंद करेगी, वो पार्टी जीतेगी. अब सवाल है कि जनता किसे पसंद करेगी. इसे समझने के लिए ये याद रखना होगा कि इस वक्त हवा के रुख को भांपना होगा, विभिन्न सर्वे का सहारा लेना होगा, हालांकि, सर्वे के नतीजे हर बार सही नहीं होते हैं और जिसे लहर बताया जाता है वो भी पिट जाते हैं. फिर भी जो एक मोटी तस्वीर उभरकर आ रही है उसमें साफ दिख रहा है कि बीजेपी, सपा, बसपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम के अलावा कई छोटी पार्टियां इस चुनाव में जोरआजमाइश कर रही हैं. सब के अपने अपने दावे हैं, लेकिन चुनावी तस्वीर साफ होने में अभी और वक्त लगेगा. वैसे सच तो ये है कि कोई विश्लेषण किसी भी पार्टी की जीत या हार का सही आकलन नहीं कर सकता. क्योंकि जनता के मन में क्या है, ये सिर्फ चुनाव नतीजों से ही पता चलेगा.


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