UP Assembly Election 2022: देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत गरमाती जा रही है. सभी छोटे बड़े दल अपने चुनावी वादों से जनता को लुभाने की कोशिश में लगे हैं. वहीं वामदलों के कार्यालय न सिर्फ धूल फांक रहे हैं बल्कि इनपर ताला भी लटका हुआ नजर आ रहा है. उत्तर प्रदेश में वामदलों का वैसे तो कोई बड़ा आधार नहीं रहा लेकिन मिल और मजदूरों के शहर के नाम से पहचाने जाने वाले कानपुर शहर में वामदलों का अस्तित्व खत्म होता नजर आ रहा है.


पूरब का मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर महानगर को कभी सूबे में औद्योगिक राजधानी का दर्जा मिला हुआ था. मिल और मजदूर इस शहर की आन बान और शान हुआ करते थे और इन्हीं मिल और मजदूरों से ट्रेड यूनियन और वामदलों की सियासत चमका करती थी. आलम ये था कि कानपुर की मिलो में वामदलों की ट्रेड यूनियन राज किया करती थी. लेकिन वक्त के साथ-साथ ना सिर्फ मिल और कारखाने बंद होते गए, मजदूर बदहाल होते गए बल्कि महानगर से औद्योगिक राजधानी का दर्जा भी छीनता चला गया और खत्म होता गया वामदलों का साम्राज्य.


इन चुनावों में होगा निर्णायक फैसला- सुभाषिनी अली


कानपुर महानगर में स्थित सीपीएम के जिला कार्यालय के दरवाजे पर अब ताला लटका हुआ नजर आता है, जो बता रहा था कि गरीब मजदूरों के हक की बात करने का दावा करने वाले वामदल अब हार मान चुके हैं. हालांकि दोपहर के 12 बजे सीपीएम कार्यालय में एकमात्र मौजूद ओमप्रकाश जो कि SITU के पदाधिकारी भी हैं, से जब हमने बात की तो उनके जवाब ने हमें उनकी हार ना मानने वाली प्रवृति से मिलवाया. वहीं कानपुर में मुखर आवाज रही सीपीएम की बड़ी नेता और कानपुर से 1989 में सांसद रही सुभाषिनी अली से जब उनकी चुनावी रणनीति और वामदलों की तैयारी के बारे में पूछा गया तो वो विपक्ष के रूप में समाजवादी पार्टी को समर्थन करती दिखाई पड़ी और संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी पर संविधान की अवहेलना और मनुस्मृति को जनता पर लादने के आरोप लगाते दिखीं. सुभाषिनी अली की मानें तो इन चुनावों में बहुत ही निर्णायक फैसला होने जा रहा है. इसके साथ ही सुभाषिनी मानती हैं कि पूर्वांचल के कुछ हिस्सों में वाराणसी के आसपास लेफ्ट पार्टियों की एक ताकत थी जो विधानसभा में भी हमेशा दिखाई देती थी.


प्रदेश की राजनीति जातीय आकांक्षाओं पर केंद्रित है - सुभाषिनी


सुभाषिनी अली की मानें तो ट्रेड यूनियन आंदोलन में पूरे देश में जातिवाद के प्रहारों से बिखराव आया है. सरकार की नीतियों के चलते पब्लिक सेक्टर का बड़ा हिस्सा अस्तित्व में ही नहीं है. सरकारी क्षेत्र के कारखाने उद्योग निजी क्षेत्र में डाला जा रहा है. वहीं स्थाई मजदूर की संख्या खत्म हो रही है उन्हें संविदा पर लगाया जा रहा है. यही नहीं पिछले 20-25 सालों से हमारे प्रदेश में जो राजनीति चल रही है उसका वर्ग से वर्गीय मतों से या आर्थिक मुद्दों से कम लेना-देना है और वो जातीय आकांक्षाओं को लेकर केंद्रित हो गई है. एक तरफ जात पर आधारित राजनीति है और दूसरी तरफ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति है.


हमारी लड़ाई बहुत लंबी है - सुभाषिनी अली


उन्होंने कहा कि इन दोनों के बीच लेफ्ट का बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है. ना हम जाति की राजनीति करते हैं ना हम सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के प्रति नरम रवैया अपना सकते हैं. इसलिए हमें भी समझ में आ रहा है कि हमारी लड़ाई लंबी है लेकिन हम मूल सिद्धांतों को नहीं छोड़ सकते हैं. सुभाषिनी अली ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने धर्म के आधार पर लोगों को बांटा और जातियों के बीच खाई पैदा करने की कोशिश की. उनका मानना है कि राजनीतिक दल के रूप में हम थे हैं और रहेंगे. हमारा काम किसी पार्टी के मंच पर चढ़कर पुछल्ला बनाने का नहीं है.


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