Election climate of western Uttar Pradesh: पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh), जिसके एक हिस्से में गुरुवार यानी आज मतदान (vote) जारी है. यहां पर जाट (Jat) और किसानों (Farmers) के वोट अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, जो इन चुनावों में सत्ता में वापसी के लिए ठोस प्रयास कर रहे हैं. हालांकि जाटों की आबादी केवल 2 फीसदी से अधिक है. यह समुदाय न केवल पश्चिमी यूपी की राजनीति (Western UP Politics) पर हावी है, बल्कि दूसरे समुदायों के किसानों पर भी हावी है.
- पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुल 136 सीटें हैं, जिनमें 58 सीटों पर आज मतदान हो रहे हैं. वर्तमान में प्रदेश में सत्तासीन बीजेपी (Ruling BJP) ने 2017 में 109 सीटें जीती थीं.
- बीजेपी 2014 से जाटों के समर्थन को सूचीबद्ध कर रही है. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों (Muzaffarnagar Riots) ने क्षेत्र में जाटों और मुसलमानों (Muslims) के बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी थी. जिसके बाद, 2017 में हुए चुनावों में, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण (Communal Polarization) के कारण बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ था.
लखीमपुर (Lakhimpur) में एक केंद्रीय मंत्री (Central Minister) के स्वामित्व वाली एक एसयूवी कार (SUV Car) के जरिये चार किसानों को कुचलने के बाद, साल भर चलने वाले किसान आंदोलन (Peasant Movement) ने बीजेपी के खिलाफ जमकर विरोध (Protest) किया है. वहीं इस बार के चुनाव में मुस्लिम-जाट (Muslim-Jat) विभाजन भी एक हद तक भर गया है, क्योंकि बड़ी संख्या में किसान मुसलमान (Farmer Muslim) भी होते हैं.
सपा (SP) की इस बार रालोद (RLD) के साथ मिलकर, फायेदा उठाने की कोशिश
समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने 2017 में इस क्षेत्र में खराब प्रदर्शन किया था, जहां पहले चरण में केवल दो सीटें ही जीत सकी थी. परिदृश्यों में बदलाव के साथ, अखिलेश अब इस क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा फायेदा उठाना चाहते हैं, जिससे बीजेपी को अधिकतम नुकसान होगा. उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के साथ मिलकर काम किया है, जो किसानों के साथ फिर से जुड़ने के लिए ओवरटाइम काम कर रहे हैं.
समाजवादी पार्टी और रालोद बार-बार जाटों को कृषि संकट (Agrarian Crisis) की याद दिलाते रहे हैं, जिससे कि वह अपना वोट बदल लें. जेल में बंद सपा सांसद मोहम्मद आजम खान (MP Mohammad Azam Khan) की गैरमौजूदगी भी सपा के लिए वरदान बनकर आई है. ऐसा माना जाता है कि, मुजफ्फरनगर दंगों (Muzaffarnagar Riots) के दौरान उन्होंने खुले तौर पर मुसलमानों की रक्षा की थी. राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) जैसे किसान नेताओं (Farmer Leaders) का मौन समर्थन, जिन्होंने अपने समुदाय से 'बीजेपी को हराने और दंडित करने' की अपील की है, वह भी सपा-रालोद गठबंधन (SP-RLD Alliance) की मदद कर रहे हैं.
सपा ने इलाके के किसानों के लिए किया है बड़ा वादा
अखिलेश अपने भाषणों में किसानों को उच्च एमएसपी (High MSP) से लेकर मुफ्त बिजली (Free Electricity) तक, आंदोलन (Agitation) के दौरान मारे गए किसानों के लिए मुआवजा और उनके लिए एक स्मारक बनवाने का वादा करते रहे हैं. दूसरी ओर, बीजेपी सांप्रदायिक दंगों और सपा के सत्ता में लौटने पर कानून-व्यवस्था (Law and order) के बिगड़ने का खतरा बढ़ा रही है. इसने जाटों को मुस्लिम किसानों से अलग करने के लिए 'हिंदू फर्स्ट' (Hindu First) कार्ड भी खेला है.
अखिलेश जानते हैं कि, चुनाव के इस पहले चरण में जहां जाटों का दबदबे है, वहां की सीटें महत्वपूर्ण है. यहां की सफलता उन्हें राज्य विधानसभा में बहुमत के निशान तक पहुंचने की दौड़ में एक अहम कारण बनेगी. पश्चिमी यूपी में कुल सीटों का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा है और यहां राजनीतिक मिजाज जाटों का है.
अखिलेश ने कहा, "यह पश्चिम है जहां सूरज डूबता है और इस बार, पश्चिम में बीजेपी का सूरज डूब जाएगा. उन्होंने 2017 में पिछली बार यहां से नेतृत्व किया और फिर आंदोलन के दौरान किसानों को धोखा दिया. हमने वादे किए हैं और हम उन्हें पूरा करेंगे."
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