Lucknow News: उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के चयन को लेकर योगी कैबिनेट के फैसले पर सियासत गरमाई हुई है. इसी बीच अब उत्तर प्रदेश में डीजीपी बनाने के कैबिनेट के फैसले पर पूर्व डीजीपी और हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सुलखान सिंह का बयान चर्चा का विषय बना हुआ है. यूपी के डीजीपी रह चुके सुलखान सिंह माना है कि डीजीपी पद पर उनकी नियुक्ति भी यूपीएससी के पैनल के माध्यम से नहीं हुई थी.
पूर्व डीजीपी रहे सुलखान सिंह ने एबीपी लाइव से बातचीत करते हुए दावा किया कि उनकी खुद की नियुक्ति भी यूपीएससी के पैनल के माध्यम से नहीं हुई थी. एक तरफ अखिलेश यादव जो मौजूदा सरकार पर केंद्र और राज्य के बीच के द्वंद्व की चर्चाएं पर कटाक्ष करते हुए डीजीपी के नियुक्ति पर तमाम सवाल खड़े करते रहे. वहीं अब सुलखान सिंह ने अखिलेश यादव के कार्यकाल पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.
सुलखान सिंह ने बताया कि अखिलेश यादव के समय पर भी नियुक्ति यूपीएससी से नहीं होती थी. अखिलेश यादव अपने हिसाब से मनचाहे लोगों को डीजीपी बनाते थे. उनसे पहले जगमोहन यादव को भी 14 लोगों को सुपरसीड कर डीजीपी बनाया गया था. हालांकि सुलखान सिंह ने अपने बारे में बात करते हुए कहा कि जब वह डीजीपी बने तब सीनियर मोस्ट अफसर थे, तो अगर यूपीएससी पैनल जाता भी तब भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती. सुलखान सिंह ने कहा कि अधिकतर सरकार है बिना यूपीएससी के पैनल के अपना डीजीपी बनाये हैं. उन्होंने कहा की लंबे समय बाद उत्तर प्रदेश में हितेश चंद्र अवस्थी सही तरीके से पैनल से डीजीपी बनाए गए थे.
बता दें कि 1980 बैच के आईपीएस अफसर सुलखान सिंह उत्तर प्रदेश में 37 साल की सेवा के बाद 31 दिसंबर 2017 को पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश के पद से सेवानिवृत हुए.
क्या है नई नियमावली
योगी सरकार ने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) पद पर तैनाती के लिए नई नियमावली तैयार की है और कैबिनेट ने इस पर मुहर भी लगा दी है. इस नई नियमावली के अनुसार डीजीपी के चयन और नियुक्ति के लिए हाई कोर्ट के एक रिटायर न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी. इसमें प्रदेश के मुख्य सचिव के साथ-साथ संघ लोक सेवा आयोग द्वारा नामित एक प्रतिनिधि, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या एक नामित प्रतिनिधि, गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव और राज्य के एक सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक सदस्य होंगे.
जानें क्या कहती है पुरानी नियमावली
अभी तक यूपी में डीजीपी चयन के लिए प्रदेश की सरकार पुलिस सेवा में 30 साल पूरा करने वाले अफसरों का नाम यूपीएससी को भेजती थी. ये वह अफसर होते थे जिनका कम से कम छह महीने का कार्यकाल शेष बचा हो. इसके बाद यूपीएससी इन नामों पर चर्चा करके प्रदेश सरकार को तीन अफसरों के नाम का पैनल भेजा करती था, फिर सरकार किसी एक अफसर को डीजीपी बनाती थी.