Noida News: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की पहली स्ट्रक्चरल ऑडिट पॉलिसी (Structural Audit Policy) जल्द ही नोएडा (Noida) प्राधिकरण में लागू होगी. इसको लेकर बुधवार को प्राधिकरण ने क्रेडाई, आरडब्ल्यूए और नोफा से सुक्षाव लिए है. दरअसल ट्विन टावर (Twin Towers) के मामले के बाद प्रदेश सरकार आगे कोई भी भूल नहीं करना चाहती है. इसलिए नोएडा, ग्रेटर-नोएडा समेत पूरे गौतमबुद्ध नगर में बनी हाई राइज सोसाइटीज और बिल्डिंग्स का स्ट्रक्चरल ऑडिट करवाना जरूरी होने जा रहा है.


दो कैटेगरी में लागू हो पॉलिसी


बताया जा रहा है कि, इसके लिए क्रेडाई, आरडब्ल्यू और नोफा से कई सुझाव मांगे गए हैं. जिनमें नोएडा फेडरेशन अपार्टमेंट ऑनर एसोसिएशन के प्रेजिडेंट राजीवा सिंह के मुताबिक पॉलिसी दो कैटेगरी की हाईराइज सोसाइटी पर लागू होनी चाहिए. जिसमें 10 साल तक की बिल्डिंग के लिए पहली पॉलिसी और 10 साल से ज्यादा पुरानी बिल्डिंग के लिए दूसरी पॉलिसी बनाई जाए. इसके पहले दोनों तरह की बिल्डिंग्स का एक डाटा बेस बनाना चाहिए. सभी से मिले सुझाव के बाद ये माना जा रहा है कि इसी साल दिसंबर में होने वाली बोर्ड मीटिंग में पॉलिसी लागू करने पर फैसला लिया जाएगा.


बता दें कि, शहर में 400 सोसायटी हैं. इसमें 18 निमार्णाधीन हैं. इन सोसायटी में करीब 70 हजार फ्लैट बने हैं, जिनमें 2.5 लाख लोग रहते हैं. करीब 35 हजार फ्लैट निमार्णाधीन हैं.


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क्रेडई, आरडब्ल्यूए और नोफा ने दिए सुझाव


1- प्राधिकरण बिल्डर और बायर्स के बीच ट्राई समझौता करे.


2- बिल्डर हाईराइज सोसाइटी बनाने से पहले उसकी लाइफ बताएगा.


3- कंपलीशन सर्टिफिकेट जारी होने के बाद ऑडिट रिपोर्ट पांच नहीं, बल्कि 10 साल तक के लिए मान्य हो.


4- हाईराइज सोसाइटी के निर्माण के बाद थर्ड पार्टी ऑडिट कराया जाए. इसे सर्टिफिकेट जारी करने से पहले देखा जाए.


पुरानी हाईराइज (10 साल से अधिक) इमारतों के लिए ये रखे गए सुझाव


1- पहले से बनी सोसायटी का स्ट्रक्च रल ऑडिट नहीं, बल्कि सर्वे कराया जाए. सर्वे किसी सरकारी एजेंसी से ही कराया जाए. जैसे-सीबीआरआई, आईआईटी रुढ़की या आईआईटी दिल्ली.


2- सर्वे में जरूरत पड़ने पर ही स्ट्रक्चर ऑडिट कराया जाए. स्ट्रक्चर ऑडिट का खर्च एओए दे. अगर एओए पैसा ना दे तो प्राधिकरण दे. इसके बाद इस खर्च को बिल्डर देगा. वहीं अगर मरम्मत की जरूरत है तो इमारत खाली करवाकर बायर्स को विकल्प दिए जाए. प्राधिकरण और बिल्डर की ओर से उनका इंतजाम कराया जाए.


बता दें कि एक बार ऑडिट कराने का खर्चा करीब 12 लाख आता है. अगर प्रत्येक 10 साल में ऑडिट कराना पड़े तो इसका भार बायर्स पर पड़ेगा, इसे देखा जाए.


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