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Lucknow News: वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड खंगालने पर हो रहा बवाल, शिया और सुन्नी बोर्ड ने कहा- पहले हो जानी चाहिए थी जांच

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वक्त संपत्तियों के रिकॉर्ड खंगालने के निर्देश दिए गए हैं. इन निर्देश के बाद शिया और सुन्नी वक्त बोर्ड ने कहा कि इस आदेश में विवाद जैसी कोई बात नहीं है.

UP News: उत्तर प्रदेश में मदरसों के सर्वे को लेकर चल रहा विवाद अभी थमा भी नहीं कि अब अब सरकार ने वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड खंगालने के निर्देश दिए हैं. इसके चलते एक बार फिर से बयानबाजी तेज हो गई है. वही शिया वक्फ बोर्ड और सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष का कहना है के इसमें विवाद जैसी कोई बात नहीं बल्कि यह एक अच्छा कदम है जहां भी गलत तरीके से कोई जमीन वक्त में शामिल हुई है उसका भी पता चलेगा.

कांग्रेस सरकार ने लाया था यह आदेश
प्रदेश सरकार ने 1989 का एक आदेश रद्द करते हुए वक्त में दर्ज सरकारी जमीनों का परीक्षण करने के निर्देश दिए हैं. परीक्षण में अगर कोई सरकारी जमीन वक्त ने दर्ज मिलती है तो उसे रद्द कर दिया जाएगा. ऐसी जमीन को राजस्व विभाग में दर्ज किया जाएगा. मालूम हो कि 7 अप्रैल 1989 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक आदेश जारी किया था. जिसमें कहा गया था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर बीटा उसर भूमि का इस्तेमाल वक्त के रूप में किया जा रहा है तो उसे वक्त संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए. इस आदेश के बाद प्रदेश में लाखों हेक्टेयर बंजर बीटा ऊसर भूमि को वक्त की संपत्ति के रूप में दर्ज कर ली गई.

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सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ज़ुफर फारुकी ने क्या कहा?
उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ज़ुफर फारुकी का कहना है कि यह सर्वे स्टेट्यूटरी रिक्वायरमेंट है और इसको बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था. ज़ुफार फारूकी ने बताया कि यूपी वक्फ बोर्ड में करीब 1,18,000 वक्फ पंजीकृत है, लेकिन इनमें 95 फीसदी कब्रिस्तान या मस्जिद है. इनके क्षेत्रफल की जानकारी फिलहाल बोर्ड पास नहीं है.

क्या कहा शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अली जैदी ने ?
यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अली जैदी ने बताया की संपत्तियों के संरक्षण और निगरानी के लिए समय-समय पर दिशा निर्देश होते हैं. बंजर, ऊसर ऐसी जगह जो पब्लिक यूज की है, अगर किसी ने गलत तरीके से अपने नाम चढ़ा ली है तो सही हो. 1989 का शासनादेश बंजर, ऊसर भूमि को वक्फ संपत्ति में दर्ज करने से जुड़ा था, लेकिन उस शासनादेश में कुछ लचीलापन था सही प्रक्रिया नहीं बताई थी. 

शिया वक्फ बोर्ड में 8500 से अधिक वक्फ रजिस्टर्ड हैं. जिनमे कई प्रॉपर्टी हैं. जैसे कर्बला अब्बास बाग एक वक्फ जिसमें कई प्रॉपर्टी होंगी. यह पब्लिक की दान की संपत्तियां है. लोगों ने अपने निजी संपत्ति पब्लिक यूज के लिए दान की. इसमें वक्फनामा यानी एक डीड किया जाता है. ज्यादातर वक्फ में धार्मिक क्रियाकलाप, मोहर्रम के लिए इस्तेमाल होते हैं. कई जगह काशिकारी की जमीन होती है जहां खेती हो रही हो उससे आय होती है. बोर्ड का काम सिर्फ इनकी प्रशासनिक व्यवस्था को देखना है. कोई विवाद ना हो, हम बस यह देख रहे हैं कि मुतवल्ली, केयरटेकर है वह सही से कर रहे हैं या नहीं. अगर कहीं कोई कब्जा हो जाता तो हम डीएम पर निर्भर होते जो अपर सर्वे अधिकारी कहलाते हैं.

जमीन पर किया गया है कब्जा
अली ज़ैदी ने कहा की पिछली सरकारे एक ऐसा मिशन चला रही थी कि अल्पसंख्यकों का लैंड बैंक डिस्ट्रॉय हो जाए, लेकिन वर्तमान में केंद्र और प्रदेश सरकार ग्रास रूट लेवल पर अल्पसंख्यकों के लिए काम कर रही है सिर्फ दिखावा नहीं किया जा रहा. पहले भ्रष्टाचार चरम पर था कोई पूछताछ नहीं थी. कुछ सरकारों ने इस प्रॉपर्टी पर कोई भी ध्यान नहीं दिया. लखनऊ में कर्बला अब्बास बाग की लीज खत्म हो गई फिर भी लोग नहीं छोड़ रहे. हुसैनाबाद में घंटाघर के पीछे मोती मस्जिद इसी तरह की है. प्रयागराज में छोटी कर्बला है जिस पर भू माफियाओं ने कब्जा किया है. लखनऊ में शहीद पथ के पास औरंगाबाद जागीर है जिस पर कब्जा है.

अली जैदी ने कहा की हम सिर्फ इन जमीनों के एडमिनिस्ट्रेटर और केयरटेकर हैं. हमारा कोई भी आदेश अंतिम नहीं होता. हमारे ऊपर एक ट्रिब्यूनल है. हमारे पास किसी जमीन का कोई मालिकाना हक नहीं है. यह भ्रम फैलाया जा रहा कि बोर्ड किसी भी प्राइवेट प्रॉपर्टी को अपना बता देता है. हम एक फीट जगह के भी मालिक नहीं है. हमारा अपना कार्यालय तक सरकारी दफ्तर में चलता है.

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