नई दिल्ली, एबीपी गंगा। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के एक फैसले को लेकर केंद्र सरकार ने असहमति जताई है। केंद्र में मोदी सरकार ने राज्य सरकार के उस फैसले को गैर-कानूनी बताया है जिसके तहत 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला किया है। राज्यसभा में केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि वे यूपी सरकार से इस निर्णय को वापस लेने की मांग की है, क्योंकि ये कानून के लिहाज से सही नहीं है। गहलोत ने कहा कि यह असंवैधानिक है क्योंकि यह संसद का विशेषाधिकार है और यह किसी भी न्यायालय में स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि हम यूपी सरकार से इस फैसले को वापस लेने को कहेंगे।
केंद्रीय मंत्री थवरचंद गहलोत ने कहा कि किसी जाति को किसी अन्य जाति के वर्ग में डालने का काम संसद का है। अगर यूपी सरकार ने इन जातियों को ओबीसी से एससी में लाना चाहती है तो उसके लिए प्रक्रिया है और राज्य सरकार ऐसा कोई प्रस्ताव भेजेगी तो हम उस पर विचार करेंगे। लेकिन अभी जो आदेश जारी किया है वह संवैधानिक नहीं है, क्योंकि अगर कोई कोर्ट में जाएगा तो वह आदेश निरस्त होगा।
मायावती ने भी उठाए सवाल
बता दें कि योगी सरकार के इस फैसले को बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने धोखा करार देते हुए इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक कहा था। सोमवार को मायावती ने कहा कि ये राजनीति से प्रेरित फैसला है। मायावती से पहले कभी बीजेपी के सहयोगी रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भी इस फैसले को लेकर योगी सरकार का घेराव किया था। योगी सरकार का घेराव करते हुए मायावती ने कहा कि योगी सरकार इन 17 पिछड़ी जातियों के लोगों के साथ धोखा कर रही है। इन्हें किसी भी श्रेणी का लाभ नहीं मिल पाएगा। योगी सरकार इन्हें OBC नहीं मानेंगी और अनुसूचित जाति की श्रेणी का लाभ इन्हें मिलेगा नहीं, क्योंकि राज्य सरकार अपने आदेश के अनुसार न तो इन्हें किसी श्रेणी में डाल सकती है और न ही हटा सकती है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 341 के भाग दो का जिक्र करते हुए कहा कि इसके मुताबिक अधिसूचना को बदलने का अधिकार केवल संसद को है।
इन OBC जातियों में SC श्रेणी में डाला
योगी सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए 17 अति- पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करने का आदेश जारी किया है। जिन 17 अति- पिछड़ी जातियों को ये फायदा पहुंचेगा वो हैं- कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी व मछुआ। यूपी सरकार के इस फैसले पर अब सियासत शुरू हो गई है।
इस मामले में अबतक क्या हुआ
गौरतलब है कि दिसंबर 2016 में तत्कालीन सपा सरकार ने ओबीसी की 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से संबंधित एक आदेश जारी किया गया था। जिसके खिलाफ डॉ. बीआर आंबेडकर ग्रंथालय एवं जनकल्याण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसपर कोर्ट ने अग्रिम आदेश तक स्टे लगा दिया था। इसके बाद 29 मार्च, 2017 को हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकार के इस फैसले के तहत कोई भी जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, तो वह कोर्ट के अंतिम फैसले के अधीन होगा।