UP Caste census: देश में जातीय जनगणना को लेकर छिड़े सियासी कोहराम के बीच यूपी में डोली उठाने, पानी भरने और सिंघाड़े की खेती करने वाले कहार समुदाय के लोग ओबीसी की लिस्ट से बाहर होना चाहते हैं. अपनी इस मांग को लेकर कहार समुदाय के लोगों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की है. इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्र और यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है. हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि कहार कोई जाति नहीं, बल्कि पेशा है. तकरीबन दर्जन भर जातियों और जनजातियों के लोग कहार का काम परंपरागत तौर पर करते आ रहे हैं. 


यह याचिका गोरखपुर के धूरिया जनजाति सेवा संस्थान के अध्यक्ष राम अवध गोंड की तरफ से दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया है कि कहार समुदाय को यूपी में केंद्र और राज्य सरकार दोनों की ही ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की लिस्ट में रखा गया है. उन्हें यह दर्जा अंग्रेजों के राज में 1881 से ही दिया गया है. याचिकाकर्ता के वकील राकेश कुमार गुप्ता ने कोर्ट में दलीलें पेश करते हुए कहा कि कहार कोई जाति नहीं है, बल्कि पेशेगत काम करने वालों का समूह है. कहार समुदाय के लोग डोली उठने, पानी भरने, सिंघाड़े की खेती करने और मछली पालन का काम करते हैं. 


ओबीसी लिस्ट में कहार समुदाय को चौथे नंबर पर रखा गया 
एडवोकेट राकेश कुमार गुप्ता के मुताबिक कहार के पेशे से जुड़े परंपरागत काम करने वाले लोगों में ज्यादातर ग्यारह जनजातीय यानी ट्राइब्स के लोग होते हैं. इन जनजातियों में मुख्य रूप से भोई, धीमर, धुरिया, गुरिया, गोंड, कलेनी, कमलेथर, हुर्का, मछेरा, महारा, पनभरा और सिंघाड़िया शामिल हैं. इन जातियों को कहीं एससी की कैटेगरी में रखा गया है तो कहीं एसटी की कैटेगरी में उत्तर प्रदेश में केंद्र और राज्य सरकार दोनों की ही ओबीसी लिस्ट में कहार समुदाय को चौथे नंबर पर रखा गया है. इस वजह से रेवेन्यू डिपार्टमेंट के लोग इन्हें ओबीसी केटेगरी का ही कास्ट सर्टिफिकेट देते हैं, जबकि इन्हें एससी या एसटी का जाति प्रमाण पत्र मिलना चाहिए.  


हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में कहा गया है कि डोली उठाने और पानी भरने जैसे परंपरागत काम को करने वाले कहार समुदाय के लोगों को इससे काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. उन्हें जो सुविधाएं और अधिकार मिलने चाहिए, वह उन्हें नहीं मिल पा रही हैं. याचिकाकर्ता के वकील राकेश कुमार गुप्ता के मुताबिक यही वजह है कि कहार समुदाय के लोग चाहते हैं कि उन्हें सबसे पहले ओबीसी की केंद्रीय और स्टेट दोनों ही लिस्ट से बाहर किया जाए. इसके बाद कहार के पेशे से जुड़ी जातियों और जनजातियों को एससी और एसटी की लिस्ट में शामिल किया जाए. 


15 अक्टूबर को होगी सुनवाई
हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस एमसी त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की डिवीजन बेंच में हुई. हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद इस मामले को गंभीर माना और केंद्र व यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है. अदालत में पांच अन्य पक्षकारों से भी चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. अदालत इस मामले की सुनवाई अब 15 अक्टूबर को करेगी.


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