UP Lok Sabha Election 2024: Meerut में टीवी के राम के लिए होंगी ये चुनौतियां, जातीय समीकरण साध पाएंगे अरुण गोविल?
Meerut Lok Sabha Seat पर बीजेपी ने अरुण गोविल को उम्मीदवार बनाया है. वहीं AIMIM ने भी इस सीट से कैंडिडेट खड़ा किया है. आईए जानते हैं कि इस सीट पर टीवी के राम के लिए राहें आसान हैं या मुश्किल-
UP Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में 400 सीट जीतने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत लगा दी है. बीजेपी मेरठ से इस बार अरुण गोविल को चुनावी मैदान में उतारकर बड़ा संदेश दिया है.तो सवाल है कि क्या रामायण के 'राम' को चुनावी मैदान में उतारने से क्या असर पड़ेगा? इसे संयोग कहिए या पॉलिटिकल प्रयोग समझिए, मगर त्रेतायुग में राक्षसों का संहार करने के लिए जिस धरा पर कौशलान्यानंदन पहुंचे थे, वहां इस बार सियासी शत्रुओं का सामना करने लिए BJP ने राम का काल्पनिक किरदार निभाने वाले उस शख्स को चुनावी मैदान में उतार दिया, जिसमें देश की एक बड़ी आबादी भगवान की छवि देखता है.
अरुण गोविल अब चुनावी रणक्षेत्र में उतरे हैं. वोट-युद्ध में विजय का आशीर्वाद लेने के लिए अपनों के बीच करबद्ध खड़े हैं. अरुण गोविल के आसरे जाटलैंड पर विजय पताका बरकरार रखने के लिए बीजेपी ने औपचारिक शंखनाद कर दिया है. 66 बरस की उम्र में चुनावी राजनीति में नई पारी शुरू करने वाले अरुण गोविल बेहद उत्साहित हैं. मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को कल्पनाओं से सुनहरे पर्दे पर उतारकर लोकप्रिय हुए गोविल इस बार रामनामी पार्टी का झंडा थामकर सियासी संग्राम में जीत को लेकर आश्वस्त हैं.
जिस मेरठ से अरुण गोविल को चुनावी मैदान में बीजेपी उतारा है वो अभेद्य किला सा रहा है. पिछले आठ चुनावों में छह बार बीजेपी ने जीत हासिल की है. हालांकि गोविल की राह इतनी आसान नहीं है.
आइए हम कुछ सवालों के जवाब जानते हैं-
'राम' के चुनावी मैदान में उतरने से क्या असर पड़ेगा?
क्या मेरठ के जरिए पश्चिमी यूपी को साधने की कोशिश है?
'INDIA' में कैंडिडेट को लेकर कंफ्यूजन से नुकसान होगा?
श्रीराम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल को जाटलैंड से मैदान में उतारकर हिंदुत्व का संदेश दिया है, वहीं पर INDIA गठबंधन में उम्मीदवार को घनघोर दुविधा है.-मेरठ लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में है.
अखिलेश यादव ने यहां से भानु प्रताप सिंह को टिकट दिया. मगर अचानक ख़बर आई कि अखिलेश यादव अपना कैंडिडेट बदलना चाहते हैं. बदलाव को लेकर लखनऊ में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई. हालांकि टिकट बदलने को लेकर अब तक कुछ साफ नहीं है. लेकिन इस सब के बीच बीजेपी नेता चौथी बार बड़ी जीत का दावा कर रहे हैं.
परंपरागत तौर पर बीजेपी यहां मजबूत मानी जाती है. मेरठ में 2009 से लगातार केसरिया ध्वजा लहराता रहा है. इस बार टिकट बदलने के बाद लोगों का मूड क्या है.वो सुन लीजिए. समूचे देश में विख्यात रहे अरुण गोविल मूलतह मेरठ के ही रहने वाले हैं. दूसरी बड़ी बात ये है कि सियासी तौर पर बीजेपी का गढ़ रहे मेरठ में जातीय समीकरण के हिसाब से गोविल फिट हैं.
क्या है मेरठ का जातीय समीकरण?
मेरठ में मुस्लिम वोटर सबसे ज्यादा हैं. इनकी आबादी करीब साढ़े पांच लाख है. दूसरे नंबर पर दलित हैं. इनकी संख्या करीब तीन लाख है. तीसरे नंबर पर वैश्य हैं. इनकी आबादी करीब ढाई लाख है. चौथे नंबर पर ब्राह्मण हैं. जिनकी आबादी करीब डेढ़ लाख है. पांचवें नंबर पर जाट वोटर हैं जिनकी आबादी करीब एक लाख है. अन्य जातियों जिनमें ठाकुर, त्यागी, गुर्जर, पंजाबी वगैरह शामिल हैं, इनकी तादाद करीब 5 लाख चालीस हजार है. वैश्य समाज से ताल्लुक रखने वाले अरुण गोविल के जरिए बड़े वोटबैंक को साधने की कोशिश में है.
गोविल के पक्ष में लोगों को गोलबंद करने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ ने मोर्माचबंदी शुरू कर दी है. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के नेताजी सुभाषचंद्र बोस प्रेक्षागृह में बीजेपी के प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में शिरकत की. 31 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी मेरठ से चुनावी रैलियों की शुरुआत करेंगे. ऐसे में बीजेपी समर्थक बेहत उत्साहित हैं.
इस बार क्या कहते हैं समीकरण?
2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी और आरएलडी ने ये सीट बीएसपी को दी थी. बीएसपी के हाजी याकूब कुरैशी चुनावी मैदान में उतरे थे. करीब चार हजार वोट से कुरैशी ये चुनाव हार गए थे. तब अलग रहे रही कांग्रेस के कैंडिडेट को करीब 35 हजार वोट मिले थे. मगर इस बार समीकरण उल्टा है.
इस बार बीएसपी अलग चुनाव लड़ रही है जबकि कांग्रेस और एसपी साथ है.बीएसपी ने देववृत त्यागी को चुनावी मैदान में उतारा है.सपा की ओर से अब तक भानु प्रताप सिंह हैं. जबकि AIMIM ने मोहम्मद अनस को टिकट दिया है.
मेरठ में दूसरे चरण में 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है. अयोध्या में राम मंदिर बनाने के बाद मेरठ से रामायण सीरियल के राम को उतारकर बीजेपी ने बड़ा संदेश दिया है. जबकि मोदी विरोधी गठबंधन में अब तक कंफ्यूज़न है. हालांकि अगले तीस दिनों में वोटर का मूड कितना बदलता है, ये अहम है.