Muzaffarnagar News: मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पश्चिमी यूपी की हॉट सीट में शामिल है. दो बार से लगातार सांसद और मंत्री बने संजीव बालयान चुनाव हार गए. सपा कांग्रेस के प्रत्याशी हरेंद्र मलिक ने न सिर्फ केंद्रीय राज्यमंत्री डॉक्टर संजीव बालयान की हैट्रिक रोक दी बल्कि लंबे से राजनीति में चल रहे अपने सूखे को भी खत्म कर दिया. हरेंद्र मलिक 24672 मतों के अंतर से चुनाव जीत गए.


पश्चिमी यूपी की धरती पर एक ऐसा तूफान उठा जिससे बीजेपी अनजान थी. ठाकुरों ने बीजेपी के खिलाफ हुंकार भरनी शुरू कर दी. सरधना की ठाकुर चौबीसी में कई पंचायत हुई जहां संजीव बालयान के विरोध की ज्वाला धधकने लगी. ये ज्वाला सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना और गाजियाबाद तक पहुंच गई. निशाने पर सबसे ज्यादा संजीव बालयान रहे. बीजेपी के फायर ब्रांड नेता संगीत सोम से संजीव बालयान का छत्तीस का आंकड़ा किसी से नहीं छिपा. संगीत सोम न तो संजीव बालयान के प्रचार में गए और न ही उनका समर्थन किया.


संगीत सोम का ये बयान भी खुल वायरल हुआ कि संजीव बालयान का स्तर नहीं है मेरे से बात करने या नाराजगी जताने का. इस बयान ने बता दिया की तल्खी कितनी अंदर तक है. सियासी गलियारों में चर्चा आम थी संगीत सोम नाराज हैं और वो इस बार बालयान की कहानी पलट देंगे. ठाकुरों ने लोटे में नमक कर दिया और संजीव बालयान का बहिष्कार और हरेंद्र मलिक का समर्थन कर दिया. ठाकुर चौबीसी से उठे विरोध के स्वर मुजफ्फनगर में धधकने लगे. मुजफ्फरनगर के एक गांव में संजीव बालयान के काफिले पर पथराव होना भी एक बड़ी कहानी की तरफ इशारा कर गया. इसके बाद कई जगह ब्राह्मण समाज, त्यागी समाज और गुर्जरों ने भी संजीव बालयान के खिलाफ हुंकार भरी.


बीजेपी की दिग्गजों का हर दाव गया बेकार
डॉक्टर संजीव बालयान जाटों के बड़े नेता हैं, पश्चिमी यूपी में उनकी मजबूत पकड़ है. आरएलडी मुखिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे चौधरी अजीत सिंह को बालयान ने चुनाव हराया था. इसके बाद उनका कद प्रदेश ही नहीं देश में पहचाना जाने लगा. 2014 और 2019 में संजीव बालयान लगातार जीते. 2024 में बालयान को जिताने के लिए गृह मंत्री अमित शाह, सीएम योगी सहित कई बड़े नेता प्रचार में आए, लेकिन सबकी मेहनत पर पानी फिर गया और संजीव बालयान हार गए. चर्चा है कि चुनावी रणनीति फेल साबित हुई.


विरोध बढ़ रहा था, डैमेज कंट्रोल से चूक गए बालयान
मुजफ्फरनगर में डॉक्टर संजीव बालयान के खिलाफ विरोध बढ़ रहा था. जानकारी के बावजूद पूरी ताकत से डैमेज कंट्रोल की कोशिश नहीं की गई. ठाकुर चौबीसी में तो पूरी ताकत लगाई गई, सबका फोकस सरधना हो गया लेकिन बाकी जगह जो अंदर ही अंदर विरोध की आग उठ रही थी उसकी तपिश कम करने का इंतजाम ही नहीं किया गया. नतीजा संजीव बालयान जैसे कद्दावर नेता को भी हार का मुंह देखना पड़ा. सांसद बने हरेंद्र मलिक को 470721 वोट मिली जबकि डॉक्टर संजीव बालयान को 446049 मत हासिल हुए और बालयान 24672 से हार गए.


रास नहीं आया आरएलडी से गठबंधन, बिना जयंत के जीते थे दो चुनाव
बीजेपी और आरएलडी ने जिस उम्मीद के साथ गठबंधन किया वो उम्मीद अधूरी रह गई. आरएलडी सुप्रीमो जयंत चौधरी ने डॉक्टर संजीव बालयान के लिए पूरी ताकत झोंकी लेकिन बात नहीं बनी. चर्चा होती रही कि राजनीति की भी क्या परिभाषा है, जिस शख्स ने चौधरी अजीत सिंह को चुनाव हराया आज अजीत सिंह के बेटे उन्हें ही जिताने की अपील कर रहे हैं. 2014 और 2019 में बिना गठबंधन के अपने दम पर बालयान चुनाव जीते थे जबकि इस बार आरएलडी से गठबंधन के बावजूद हार गए. यानि दल मिले लेकिन दिल मिलना बाकी रह गए.


सपा का आरएलडी से गठबंधन टूट गया. जयंत एनडीए के साथ चले गए. चर्चा हुई कि हरेंद्र मलिक की वजह से ऐसा हुआ है कि वो मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने पर अड़े थे और जयंत यहां आरएलडी से किसी को चुनाव लड़ाना चाहते थे. इस पर हरेंद्र मलिक ने हमेशा कहा ये बात झूठ है मैं चौधरी साहब के लिए सीट छोड़ने को तैयार था. हरेंद्र मलिक ने थोड़ी रणनीति बदली और ये कहना शुरू कर दिया चौधरी अजीत सिंह को हराने वाले को मैं हराऊंगा और सब मेरा साथ देना, जबकि संजीव बालयान इसकी काट नहीं ढूंढ पाए. मुस्लिमों का सपा को पूरी तरीके से वोट देना, जाटों में सेंध और बीजेपी के अन्य वोटर्स में हरेंद्र मलिक ने जो सेंध लगाई उसे संजीव बालयान नहीं रोक पाए. बसपा प्रत्याशी दारा सिंह प्रजापति ने भी संजीव बालयान के सामने हाथी लाकर खड़ा कर दिया, जिसका नुकसान हरेंद्र को कम और बालयान को ज्यादा हुआ.


बीजेपी नेताओं की नाराजगी भारी पड़ी
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद भारद्वाज ने कहा कि बड़ी संख्या में आम बीजेपी कार्यकर्ता संजीव बालयान से नाराज था. मीनाक्षी स्वरूप को सपा से लाकर चुनाव लड़ाया जिससे नगर पालिका चेयरमैन की तैयारी कर रहे नेता खिलाफ हो गए. मंत्री कपिल देव को लगा मेरा विकल्प तैयार किया जा रहा है. बीकेयू का हरेंद्र मलिक को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर रहा. बालयान की जीत में आरएलडी से गठबंधन भी बड़ी बाधा बना, क्योंकि आरएलडी साथ आई तो ओबीसी और अन्य वोटर खिसक गया. आरएलडी और बीजेपी में जब भी गठबंधन हुआ आरएलडी को ज्यादा फायदा हुआ है बीजेपी को कम. इस बार भी यही हुआ कि गठबंधन की नाव पर बैठकर चले संजीव बालयान भवर में फंस गए और हार गए.


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