UP Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं नेताओं का पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी को ज्वाइन करना भी तेज हो गया है. लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के बड़ा झटका लगा है. एटा और कासगंज के कद्दावर सपा नेता और दो बार एटा लोकसभा सीट से सांसद रहे देवेंद्र सिंह यादव ने बीजेपी का दामन थाम लिया है.
लखनऊ स्थित कार्यालय में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की उपस्थिति में बीजेपी ज्वाइन की है. जिस पर समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता उदर सिंह ने कहा कि जितने भी लोगों को ईडी और सीबीआई से डर लग रहा है, वो बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. आइए जानते हैं देवेंद्र सिंह यादव के बारे में.
कौन हैं देवेंद्र सिंह यादव?
पूर्व में एटा जनपद और वर्तमान में कासगंज जनपद की सोरों विकास खंड के अलीपुर बरवारा में जन्मे देवेंद्र सिंह यादव ने पहली बार 13 साल की उम्र में अपने पिता दाता राम यादव को प्रधानी का चुनाव जितवाया था और उसके बाद 1981 में उनकी मौत के बाद 1982 में पहली बार सक्रिय राजनीति में उन्होंने कदम रखा था. देवेंद्र यादव गांव के प्रधान बने. 1983 में देवेंद्र सिंह यादव ने अपनी दबंग छवि के जरिए ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में जीत हासिल की. 1984 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के टिकट पर बदायूं से चुनाव लड़ने पहुंचे इलाहाबाद के उद्योगपति सलीम शेरवानी से देवेंद्र सिंह यादव की मुलाकात हुई और यह मुलाकात गहरे ताल्लुकात में तब्दील हो गई.
सलीम शेरवानी के जरिए देवेंद्र सिंह यादव राजीव गांधी से मिले और 1989 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर पटियाली विधानसभा से चुनाव लड़े और जीते भी. 1989 के बाद में लगातार पटियाली विधानसभा से विधायक बनने के बाद अयोध्या कांड के बाद लगातार दो बार चुनाव हारे भी.1996 में समाजवादी पार्टी की ज्वाइन की और सपा के टिकट पर उन्हें एक बार फिर से पटियाली विधानसभा से विधायक चुना गया.
इस दौरान देवेंद्र सिंह यादव का राजनीतिक पकड़ लगातार बढ़ती चली गई और वह मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी और भरोसेमंद सिपाहियों में गिने जाने लगे. मुलायम सिंह यादव ने कुंवर देवेंद्र सिंह यादव पर 1999 में एटा लोकसभा से टिकट देकर दांव लगा दिया और देवेंद्र ने उनके भरोसे को परवाज देते हुए एटा लोकसभा पर जीत हासिल की. देवेंद्र यादव की यह जीत इसलिए अहम थी क्योंकि उन्होंने पांच बार से बीजेपी के सांसद महादीपक सिंह शाक्य को चुनाव हराया था.
एक बार फिर बने सांसद
देवेंद्र सिंह यादव 2004 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर समाजवादी पार्टी के टिकट पर एटा लोकसभा से पुनः सांसद बने. देवेंद्र सिंह यादव मुलायम सिंह यादव को अपना राजनीतिक पिता मानते हैं. वह कहते हैं कि 1999 में लोकसभा की टिकट देकर मुझे मुलायम सिंह यादव ने देश भर में पहचान दिलाई. मेरे पिता ने मुझे जन्म दिया, लेकिन राजनीतिक तौर पर मुलायम सिंह मेरे पिता हैं.
देवेंद्र यादव ने राशिद अल्वी को मारा था धक्का
देवेंद्र सिंह यादव का मुलायम सिंह के प्रति लगाव इतना था कि उन्होंने लोकसभा की कार्यवाही के दौरान जब कांग्रेस के नेता राशिद अल्वी मुलायम सिंह पर कोई टिप्पणी कर रहे थे तो देवेंद्र सिंह यादव राशिद अल्वी की मुलायम सिंह के प्रति की गई टिप्पणी को लेकर इतने आहत हुए कि उन्होंने भरी संसद में कार्रवाई के दौरान अपनी सीट से उठकर राशिद अल्वी को पीछे से धक्का मार दिया. इसके बाद संसद में मौजूद सांसदों ने संसद में इस तरह के व्यवहार के प्रति देवेंद्र सिंह यादव की जमकर आलोचना और विरोध किया था. उनके खिलाफ संसदीय नियमों के तहत कार्यवाही भी की गई थी. 2004 में समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से देवेंद्र सिंह यादव को एटा से प्रत्याशी बनाया और वह चुनाव जीते.
2009 में देवेंद्र सिंह यादव ने की मुलायम सिंह से बगावत
2008 के परिसीमन के बाद 2009 में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से बागी हुए कल्याण सिंह को अपना समर्थन दिया और देवेंद्र सिंह यादव की टिकट काट दी गई. देवेंद्र सिंह यादव ने टिकट कटने के बाद अपने राजनीतिक पिता मुलायम सिंह से बगावत कर दी और बसपा का दामन थाम लिया. 2009 का लोकसभा चुनाव उन्होंने बसपा के टिकट पर कल्याण सिंह के खिलाफ लड़ा लेकिन वे चुनाव हार गए.
2012 में पुराने साथी सलीम शेरवानी के साथ कांग्रेस ज्वाइन
2012 में उन्होंने सलीम शेरवानी के साथ एक बार फिर से कांग्रेस ज्वाइन की और पटियाली विधानसभा से अपनी बेटी वासु यादव को चुनाव लड़वाया, लेकिन बसु यह चुनाव बड़े अंतर से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी नजीबा खान जीनत से हार गईं.
2014 में फिर सपा में शामिल हुए देवेंद्र
2012 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी और 2014 के आम चुनाव से पहले एक बार फिर देवेंद्र यादव ने अपने राजनीतिक पिता मुलायम सिंह का रुख किया और नेताजी मुलायम सिंह यादव ने भी अपने इस बेटे को समाजवादी पार्टी में शामिल करा कर 2014 में लोकसभा एटा से एक बार फिर टिकट दे दी.
2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते राजवीर सिंह ने देवेंद्र सिंह यादव को करारी शिकस्त दी और यह सिलसिला 2019 के चुनाव में बदस्तूर जारी रहा. जब समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से अपना दांव देवेंद्र सिंह पर लगाया लेकिन बीजेपी प्रत्याशी राजवीर सिंह ने उन्हें फिर हरा दिया.
2024 के आम चुनाव से पहले देवेंद्र सिंह यादव ने अपने राजनीतिक पिता मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और उनके बेटे का साथ छोड़ अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी रहे कल्याण सिंह और उनके बेटे राजवीर सिंह का साथ आने का फैसला किया है और उन्होंने बीते रविवार लखनऊ में बीजेपी ज्वाइन कर ली.
'' सीएम योगी और पीएम मोदी से हूं प्रभावित''
बीजेपी में शामिल होने के बाद देवेंद्र सिंह यादव कहते हैं कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कल्याणकारी योजनाओं से प्रभावित हैं. इन दोनों नेताओं के नेतृत्व में देश की अलग पहचान बनी है और विकास की ओर अग्रसर है, इसलिए वह बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. उन्होंने समाजवादी पार्टी छोड़ने के सवाल पर कहा कि समाजवादी पार्टी में अभी नए-नए लोग पहुंच रहे हैं, जो कि पुराने नेताओं का सम्मान नहीं कर रहे. उन्हें अखिलेश यादव से कोई शिकायत नहीं है और मुलायम सिंह के बारे में जब उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव मेरे राजनीतिक पिता और गुरु थे और हमेशा रहेंगे. मैं उनका सदैव सम्मान करता हूं मेरी समाजवादी पार्टी से भी कोई नाराजगी नहीं है.
पूर्व सांसद के जाने से सपा को होगा फायदा
कुंवर देवेंद्र सिंह यादव के समाजवादी पार्टी छोड़ने पर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व विधायक और मंत्री मनपाल सिंह का कहना है कि स्वार्थ की राजनीति करने वालों का जहां स्वार्थ सिद्ध होता है, वह वहां चले जाते हैं. सांसद देवेंद्र सिंह यादव को अपनी संपत्ति बचानी है तो बीजेपी में शामिल होना ही पड़ेगा और सांसद राजवीर सिंह के साथ आज से नहीं हैं, बल्कि उनके कई कारोबार जो गंगा के किनारे होते हैं वह राजवीर के साथ काफी दिनों से चल रहे हैं. उनका बीजेपी में जाना एक औपचारिकता है इससे समाजवादी पार्टी को नुकसान कम और फायदा ज्यादा होगा. क्योंकि उनके रहते जो लोग समाजवादी पार्टी से बचते थे वह आप खुलकर सपा में अपना काम और योगदान कर सकेंगे. देवेंद्र सिंह यादव अपनी मनमानी करते थे अगर उनके मन की पार्टी नहीं करती तो वह हमेशा भीतर घाट करके समाजवादी प्रत्याशियों का नुकसान करते रहे हैं. यह जग जाहिर है.
(रंजीत गुप्ता की रिपोर्ट)
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