UP Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव सर पर है, जिसको लेकर प्रत्याशी कमर कस चुके हैं और लगातार चुनाव प्रचार कर रहे हैं. राजनीतिक दलों के लिए लोकसभा चुनाव किसी जंग से कम नी है. देश की सत्ता पर विराजमान होने की कवायत करते पार्टी और नेता नए-नए दांव लगाकर अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती है, लेकिन इस बार चुनाव में जीत का खेल प्रत्याशी ,पार्टी या जातीय मेल कौन करेगा खेल ये समझना जरूरी है.
कानपुर सीट कई मायनों में अहम है औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले कानपुर शहर की कानपुर लोकसभा सीट 1952 में अपने वजूद में आई थी. यहां वैसे तो ये सीट कांग्रेस का गढ़ रही है, लेकिन 2009 के बाद या बीजेपी के खाते में चली गई और अभी तक उसी के पाले में हैं.
बीजेपी-कांग्रेस किसे मिलेगा फायदा?
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में सपा कांग्रेस ने गठबंधन किया हुआ है, जिसके चलते कानपुर लोकसभा की सीट कांग्रेस के खाते में है, लेकिन सपा अपने गठबंधन के प्रत्याशी आलोक मिश्रा को बराबर सपोर्ट देने के लिए तैयार है. वहीं बीजेपी ने इस सीट पर वर्तमान सांसद सत्यदेव पचौरी की जगह भ्रमण प्रत्याशी रमेश अवस्थी को मैदान में उतरकर नया चेहरा जनता के बीच खड़ा कर दिया है. अब कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने इस सीट अपर अपने ब्राह्मण प्रत्याशी को उतार दिया है, लेकिन इस बार पार्टियों की ये चाल समझ से कुछ अलग है.
इस बार ब्राह्मण मतदाता पर दोनो दलों की नजर टिकी हुई है. क्योंकि इस सीट पर ब्राह्मण मतदाता की संख्या भी बहुत है. जिसके चलते दोनों दलों के प्रत्याशी ब्राह्मण होने के चलते इस ब्राह्मण वोटर्स को अपने खेमे में लेने की कोशिश में हैं, लेकिन इसका फायदा बीजेपी के नए चेहरे को कितना मिलेगा ये विषय है. आलोक मिश्रा कांग्रेस के पुराने नेताओं में शुमार हैं और उनका जनता को बीच अपनी एक पकड़ भी बनी हुई है, क्योंकि आलोक की पत्नी मेयर के चुनाव में प्रत्याशी भी रह चुकी हैं, जिसका आलोक को एडवांटेज मिलेगा.
पार्टी में दिख रही अंदरुनी कलह
हर पार्टी में चुने गए प्रत्याशी को लेकर कहीं ना कहीं आपसी द्वेष बना रहता है, जिसको लेकर कानपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी से लेकर सपा कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी आलोक मिश्रा और वर्तमान में बीजेपी से घोषित हुए प्रत्याशी रमेश अवस्थी को भी पार्टी में अंदर घाट चल रहे द्वेष को झेलना पड़ेगा, जहां एक और कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए अजय कपूर की अपनी फैन फॉलोइंग है जो उनके लिए एक बड़े मतदाता का रूप लेते हैं बीजेपी में शामिल हो गए हैं, जिसके चलते उनके फिक्स मतदाता उनके कहने पर बीजेपी को वोट कर सकते हैं तो वहीं बीजेपी के वर्तमान सांसद सत्यदेव पचौरी का और मौके पर चुनाव न लड़ने की बात सामने आने पर भी अंदरुनी कलह दिखाई दे रही है.
भले ही पचौरी ने चुनाव न लड़ने के लिए शीर्ष नेतृत्व को पत्र भेजा हो, लेकिन पचौरी के चुनाव न लड़ने से बीजेपी का एक बड़ा गुट वर्तमान बीजेपी प्रत्याशी के लिए घातक साबित हो सकता है और यही समीकरण कांग्रेस प्रत्याशी आलोक मिश्रा के लिए भी लागू होता है. क्योंकि कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए अजय कपूर के कहने पर जो मतदाता कांग्रेस को वोट करते थे उन मतदाताओं की एक बड़ी संख्या अब कांग्रेस के लिए भी समस्या खड़ी कर सकती है.
मतदाता किसे करेंगे वोट?
यादव ,मुस्लिम, सपा का वोट और कांग्रेस का अपना वोट और कहीं हद तक ब्राह्मण वोट के साथ कुशवाहा और पाल, गठबंधन के प्रत्याशी आलोक मिश्रा के लिए लाभकारी साबित हो सकते हैं. वहीं बीजेपी के ब्राह्मण प्रत्याशी रमेश अवस्थी को बीजेपी का पार्टी वोट तो मिलेगा, ब्राह्मण वोटर भी कुछ हद तक बीजेपी के साथ जायेगा, व्यापारी वर्ग का कुछ हिस्सा बीजेपी के साथ दिख रहा है, लेकिन बजाय में जीएसटी में कमी न होने के चलते व्यापारी वर्ग भी बीजेपी से दूरी बना सकता है. पहली बार मतदान करने वाले युवा सरकार की परीक्षा नीति और पेपर लीक से खासा नाराज हुआ था, जिसे मनाने की कवायत शहर के बीजेपी प्रत्याशी को करनी पड़ेगी क्योंकि कानपुर में बड़ी संख्या में पहली बार मतदान करने वाले युवा छात्र और छात्राएं हैं.
सपा-कांग्रेस का खेल बिगाड़ेगी बसपा?
वहीं कानपुर सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने क्षत्रिय प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. ऐसे में बसपा का प्रत्याशी पेशे से अधिवक्ता है और क्षत्रिय होने के चलते अधिवक्ताओं और क्षेत्रीय वोटरों में सेंधमारी कर बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशी के वोट काट सकता है. इस बार कानपुर सीट पर जनता कई मुद्दों को ध्यान में रखकर वोट कर सकती है.
युवा अपने भविष्य को लेकर और वर्तमान सरकार की परीक्षा और शिक्षा नीति से कितना खुश है. मतदाता पार्टी को देखकर वोट करेंगे या प्रत्याशी को या फिर इस बार मतदाता किसी दल के शीर्ष नेतृत्व का चेहरा देखकर वोटिंग करतेंगे ये चुनाव की तारीख से लेकर परिणाम की तारीख तक फैसला हो जाएगा, लेकिन इस बार जनता का मूड कुछ अलग है.
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