लखनऊ: यूपी विधानसभा सचिवालय में हाल में हुई भर्तियां अब सवालों के घेरे में आ गई हैं. दरअसल बीते साल दिसंबर महीने में विधानसभा सचिवालय में अलग अलग पदों के लिए कुल 87 भर्तियां निकाली गई थी, जिनमें पहले प्री और फिर मेन्स एग्जाम कराए गए और कुछ पदों के लिए तो शार्ट हैंड टाइमिंग की भी परीक्षा ली गई. इसके बाद सफल अभयर्थियों को ज्वाइन भी करा दिया गया. लेकिन इन नियुक्तियों में अब धांधली की बात सामने आ रही है.
खास तौर से सहायक समीक्षा अधिकारी पद पर हुई भर्तियों में गड़बड़झाले के आरोप लग रहे हैं. कुछ अभ्यर्थियों ने इन नियुक्तियों में हुए घोटाले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी है. जिसपर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है. अब मामले की अगली सुनवाई 28 जून को होनी है. लेकिन भर्तियों में धांधली केवल विधानसभा सचिवालय में हुई नियुक्तियों में नहीं हुई है बल्कि इसी साल विधानपरिषद में भी जो नियुक्तियां हुई हैं उनमें भी घोटाले की बात सामले आ रही है और वो मामले भी कोर्ट में है. आज हम आपको बताएंगे कि कैसे इन नियुक्तियों में रसूख वालों ने अपने चहेतों को बिना योग्यता के नौकरियों की रेवड़ियां बांट दी और एक बार फिर योग्यता धरी की धरी रह गई.
विधानसभा सचिवालय में हुई भर्तियों पर उठे सवाल
उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय से 7 दिसंबर 2020 को कुल 87 पदों के लिए भर्ती निकाली गई थी. जिसमें सहायक समीक्षा अधिकारी के 53 पद थे और समीक्षा अधिकारी के 13 पद थे. इसमें प्री और मेंस परीक्षा का प्रावधान रखा गय़ा. हर परीक्षा के लिए अलग-अलग बार प्री ली गई. इस परीक्षा में प्री क्वालीफाई करने वालों को मेन्स और फिर मेन्स क्वालीफाई करने वालों को कुछ पदों में शार्ट हैंड और टाइपिंग का टेस्ट लेकर सफल घोषित कर उन्हें नियुक्ति प्रदान कर दी गई. लेकिन इस पूरी परीक्षा पर ही अब सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि कुछ अभ्यर्थियों ने कोर्ट में याचिक दायर कर इस पूरी परीक्षा में धांधली का आरोप लगाया है.
कोर्ट ने 10 दिन में सरकार से जवाब मांगा है
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 10 दिन में सरकार से जवाब मांगा है. अपने हलफनामे में छात्रों ने परीक्षा में कुछ छात्रों की ओएमआर को सबूत के साथ पेश किया गया है, जिसमें साफ पता चल रहा कि किसी को महज सात अंक मिलने पर भी प्री परीक्षा में पास घोषित करके मेन्स में बैठने का मौका दिया गया तो किसी को महज 10 अंक हासिल करने पर ही मेंन्स के लिए क्वालीफाई करार दे दिया गया. इतना ही नहीं जिसे मेन्स परीक्षा में 190 अंक मिले उसे आगे टाइपिंग की परीक्षा में डिसक्वालीफाई घोषित कर दिया गया.
इतना ही नहीं इस परीक्षा में शामिल छात्रों ने तो यहां तक आरोप लगाए हैं कि कई छात्रों ने तो पहले प्री और फिर मेन्स परीक्षा में अपनी ओएमआर शीट पूरी तरह से खाली छोड़ दी और उसके बाद भी उन्हें अगले राउंड में क्वालीफाई घोषित किया गया. इन छात्रों ने इसकी शिकायत उसी समय सक्षम अधिकारियों से लिखित रूप में की थी लेकिन तब इनसे कहा गया कि आप अपनी परीक्षा दीजिए दूसरों पर ध्यान मत दीजिए. ऐसे ही एक शिकायतकर्ता नरेश कुमार ने तो दिसंबर महीने में ही इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक से की. इन्होंने तो बकायदा रोल नंबर तक लिखकर शिकायत की कि किन छात्रों ने अपनी ओएमआर शीट खाली छोड़ी हैं और परीक्षा का सेंटर कौन सा था. लेकिन उसपर कोई कार्रवाई कहीं से नहीं हुई. नरेश कुमार तब और चौंक गए जब टाइपिंग की परीक्षा के दौरान उन्हें वही छात्र फिर मिल गए जिन्होंने अपनी ओएमआर शीट खाली छोड़ दी थी तो तुरंत उन्होंने इसकी शिकायत विधानसभा के सक्षम अधिकारी से की लेकिन अधिकारी भला कहां सुनने वाले थे.
भर्तियों में बड़ा लंबा खेल हुआ है
दरअसल, इन भर्तियों में बड़ा लंबा खेल हुआ है और इसमें रसूखदार लोग शामिल हैं, जिसमें कई विधानसभा में काम कर चुके अधिकारी भी शामिल हैं, जिन्होंने अपने रसूख का फायदा उठाते हुए अपनों को यहां फिट कर दिया. योग्य छात्र केवल अपनी किस्मत को कोसता रहा वो भी ये सोचकर कि शायद उसकी मेहनत में कुछ कमी रह गई. उसे ये नहीं मालूम है कि कमी उसकी मेहनत में नहीं बल्कि उसके जुगाड़ में रह गया क्योंकि यहां तो ज्यादातर जुगाड़ के सहारे ही नौकरी हासिल करने में कामयाब रहे हैं.
वहीं याचिकाकर्ता के वकील का भी कहना है कि कोर्ट ने भी पहली नजर में उनकी प्ली को माना है और राज्य सरकार से 10 दिन के भीतर जवाब तलब किया है. उनका कहना है कि इस परीक्षा में संदेह कई वजहों से होता है. एक तो इसका रिजल्ट किसी भी जगह प्रकाशित नहीं किया गया, दूसरा ना ही कहीं इस रिजल्ट को चस्पा किया गया. इसमें केवल अभ्यर्थी अपने रोल नंबर के आधार पर अपने मोबाइल पर ही रिजल्ट के बारे में जान सकता था. इसलिए इसमें और भी शक पैदा होता है क्योंकि अगर जिस चीज में ट्रान्सपैरेंसी होगी तो उसमें रिजल्ट को छुपाया नहीं जाएगा. इसके अलावा जो परीक्षा की गाइडलाइन जारी की गई थी उसके मुताबिक सामान्य कैटेगरी के अभ्यर्थी को एआरओ पद के लिए 78 फीसदी कटऑफ तय किया गया था लेकिन कई अभ्यर्थियों को तो केवल सात और 10 अंक मिलने पर ही अगली परीक्षा के लिए क्वालीफाई घोषित कर दिया गया. उनका कहना है कि इसमें साफ तौर पर ये प्रतीत होता है कि अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए इसमें घोटाला किय़ा गया है. अब मामले की अगली सुनवाई 28 जून को होनी है जब सरकार को अपना काउंटर एफिडेविट दाखिल करना है.
विधानपरिषद में भी नौकरियों में हुआ खेल
ये तो हुई विधानसभा सचिवालय में हुई गड़बडियों की बात अब जरा आपको विधानपरिषद में हुई नियुक्ति में धांधली से भी अवगत कराया जाए. दरअसल विधानपरिषद में सितंबर 2020 में भर्ती के विज्ञापन निकाले गए, जिसमें कुल 73 पद के लिए आवेदन मांगे गए. तब इसमें एआरओ पद के लिए आवेदन नहीं मांगे गए. फिर 27 सितंबर को विज्ञापन को संशोधित करते हुए एआरओ के 23 पदों के लिए भी आवेदन मांगे गए. इस तरह फिर कुल 96 पदों के लिए भर्ती निकाली गई, फिर अपने को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में तमाम संशोधन किये गए और इसमें तेजी इसलिए भी दिखाई गई क्योंकि तबके विधानपरिषद के सभापति रमेश यादव का कार्यकाल भी 30 जनवरी 2021 को खत्म हो रहा था. सारी भर्ती उसके पहले उनके रहते ही करनी थी इसलिए नियमों को बार बार बदल कर डेट को भी आगे पीछे किया गया. इतना ही इसमें एलाइड आईएएस के समकक्ष ओएसडी का भी पद शामिल किया गया.
अब जब इन नियुक्तियों में धांधली की बात सामने आ रही है तो जाहिर है कि विपक्ष इसे लेकर सरकार को घेरेगा भी. कांग्रेस कह रही है कि इस सरकार में हर नियुक्ति में घोटाला ही हुआ है. ये सरकार नौकरी देने के मामले में फेल साबित हुई है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू का कहना है कि सरकार के नाक के नीचे घोटाला हो रहा है. विधानसभा और विधानपरिषद में अपने चहेतों को लोगों ने नौकरी दिलवा दी. ये बड़ा घोटाला है और आने वाले सत्र में कांग्रेस इस मुद्दे को सदन में उठाएगी. वहीं इस भर्ती घोटाले पर विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित का कहना है कि उनकी जानकारी में ये मामला नहीं है और अगर हाईकोर्ट ने जवाब तलब किया है तो सरकार उसका जवाब देगी. वहीं उनके करीबी को नौकरी मिलने के कांग्रेस के आरोप पर उनका कहना है कि कांग्रेस के पास आरोप लगाने के सिवा अब कोई काम नहीं है.
जुगाड़ और रसूख कब तक आड़े आता रहेगा?
जाहिर है कि जिस तरह से सत्ता के केंद्र कहे जाने वाले विधानसभा में नियुक्तियों में अब धांधली के आरोप लग रहे हैं और कोर्ट ने भी इसपर सरकार से जवाब तलब किया है ऐसे में विपक्ष को बैठे बिठाए सरकार को घेरने का एक अच्छा मौका मिल गया है. लेकिन ये एक बार फिर सोचने पर मजबूर भी करता है कि आखिर टैलेंट के आगे जुगाड़ और रसूख कब तक आड़े आता रहेगा.
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