UP Madarsa Act: सुप्रीम कोर्ट ने 'उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004' की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर यूपी की राजधानी लखनऊ की ईदगाह के इमाम और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि इस फैसले से मदरसा से जुड़े लोगों में खुशी की लहर है. यूपी मदरसा अधिनियम का मसौदा यूपी सरकार ने ही बनाया था. सरकार द्वारा बनाया गया अधिनियम असंवैधानिक कैसे हो सकता है? हमने पहले भी कहा है कि हम मदरसों में इस्लामी शिक्षा के अलावा आधुनिक शिक्षा भी देते हैं.'
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अधिवक्ता अनस तनवीर ने कहा कि 'सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया था कि मदरसा बोर्ड अधिनियम संविधान द्वारा निर्धारित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिनियम संवैधानिक है. जहां तक कामिल और फाजिल डिग्री का सवाल है, ये उच्च डिग्री हैं - सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बोर्ड इसे ये नहीं कर सकता लेकिन 10वीं और 12वीं के समकक्ष अन्य डिग्रियां मान्य होंगी.यह एक बड़ी राहत है."
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क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच नवंबर को फैसला सुनाया जिसके तहत मदरसों पर उत्तर प्रदेश के वर्ष 2004 के कानून को असंवैधानिक करार दिया गया था. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जज जस्टिस जेबी पारदीवाला और जज जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ दायर अंजुम कादरी की मुख्य याचिका सहित आठ याचिकाओं पर अपना फैसला 22 अक्टूबर को सुरक्षित रख लिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 22 मार्च को ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम-2004’ को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाला बताते हुए उसे “असंवैधानिक” करार दिया था.
हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य के विभिन्न मदरसों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में शामिल करने का निर्देश दिया था. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम-2004’ को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर पांच अप्रैल को अंतरिम रोक लगाकर करीब 17 लाख मदरसा छात्रों को राहत दी थी.