(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
UP Madarsa Act: यूपी उपचुनाव पर पड़ सकता है मदरसा एक्ट को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के तकरीबन पचीस हजार मदरसों पर ताला लटकने का खतरा मंडराने लगा था. हाईकोर्ट के फैसले के बाद तमाम मदरसे बंद कर दिए गए थे.
UP Madarsa Act: सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2004 के यूपी मदरसा एक्ट को संवैधानिक करार दिए जाने और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द किए जाने पर सियासी पार्टियां भले ही सधी हुई प्रतिक्रिया दे रही हैं, लेकिन इसका असर सूबे में विधानसभा की नौ सीटों पर हो रहे उपचुनाव पर पड़ना तय है. सत्ता पक्ष इस मामले में जहां अदालत के फैसले का सम्मान करने की बात कह रहा है, वहीं समाजवादी पार्टी इस फैसले को लेकर तीखे तेवर दिखा रही है.
समाजवादी पार्टी का यह रवैया अनायास ही नहीं है, क्योंकि 2004 का यूपी मदरसा एक्ट तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के राज में पारित किया गया था. 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी के तमाम नेताओं ने सोशल मीडिया पर मुल्लाह मुलायम के एक्ट को असंवैधानिक घोषित किए जाने पर चुटकी लेते हुए समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा था. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के नेता खुलकर यह बयान दे रहे हैं कि हमारी सरकार में हुए कामों को लेकर बीजेपी के लोग जनता को गुमराह तो कर सकते हैं लेकिन कोर्ट हमारे सभी फैसलों पर मुहर लगाती जा रही हैं.
क्या बोले सपा नेता
सपा के प्रवक्ता और इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष अजीत यादव का साफ तौर पर कहना है कि बीजेपी के जो नेता सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को मुल्लाह बताते हुए सांप्रदायिकता फैलाने और तुष्टिकरण करने का काम करते हैं, उन्हें अब सार्वजनिक तौर पर माफी मांगना चाहिए. अजीत यादव के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह बताने के लिए काफी है कि सपा की लोकप्रिय सरकारों ने हमेशा वोट बैंक की लालच के बिना जाति धर्म के आधार पर भेदभाव किए बगैर सभी के हित में फैसले लिए हैं. उनके मुताबिक समाजवादियों ने कभी भी कोई असंवैधानिक काम नहीं किया है. कानून को ठेंगा दिखाकर समाज को टुकड़ों में बांटने का काम बीजेपीकरती है.
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में इसी साल 22 मार्च को जिस उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड एक्ट को असंवैधानिक घोषित किया था, वह साल 2004 में पारित किया गया था. यूपी में उस वक्त मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. इस एक्ट के बनने पर भी खूब सियासी बयानबाजियां हुई थी. एक्ट बनने के बाद यूपी के मदरसे मान्यता प्राप्त होने लगे थे. वहां सरकार की निगरानी में अलग परीक्षा की व्यवस्था की गई थी.
25 हजार मदरसों से जुड़ा था मामला
मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को धार्मिक और आधुनिक दोनों शिक्षा एक साथ दी जाने लगी थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद सूबे के तकरीबन पचीस हजार मदरसों पर ताला लटकने का खतरा मंडराने लगा था. हाईकोर्ट के फैसले के बाद तमाम मदरसे बंद कर दिए गए थे. जिन मदरसों को बंद किया जा रहा है, उनमें मानता और गैर मान्यता प्राप्त दोनों ही शामिल है.
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जबकि सुप्रीम कोर्ट से आज जो फैसला आया है, वह उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 9 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भी असर डाल सकता है. बीजेपी जहां इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखने की कोशिश करेगी, वहीं समाजवादी पार्टी सधे तरीके से इसके बहाने योगी सरकार पर हमलावर होगी. समाजवादी पार्टी उप चुनाव में वोटो के ध्रुवीकरण के डर की वजह से सीधे तौर पर इस मुद्दे को उठाने से बच सकती है, लेकिन इसे बैकग्राउंड बनाकर योगी सरकार पर निशाना साधने की कोशिश जरूर करेगी.
सपा जहां अल्पसंख्यक वोटरों को एकजुट रखने का प्रयास करती हुई नजर आ सकती है, वहीं इस मुद्दे पर योगी सरकार के रुख को सामने रखकर उसकी मंशा पर सवाल खड़े कर सकती है. प्रयागराज की फूलपुर और कानपुर की सीसामऊ समेत कुछ ऐसी सीटों पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इसलिए भी मुद्दा बन सकता है, क्योंकि यहां विपक्षी पार्टियों ने मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं.