UP News: यूपी मदरसा बोर्ड और UPSCPCR में गैर मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई को लेकर बढ़ा विवाद, जानें पूरा मामला
Madarsa News: यूपी के बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने मदरसा बोर्ड के बयान पर तल्ख टिप्पणी की है. शुचिता ने गैर-मुस्लिम बच्चों के मदरसे में पढ़ने को अनुचित ठहराया है.
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Child Protection News: मदरसों में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम बच्चों को वहां से निकलकर अन्य स्कूल में दाखिला कराने पर विवाद बढ़ता जा रहा है. इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) और यूपी मदरसा बोर्ड (UP Madarsa Board) आमने-सामने आ गए हैं. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने 8 दिसंबर को सभी राज्यों को निर्देश दिए थे कि मदरसों की जांच कराकर गैर मुस्लिम बच्चों को वहां से निकलकर अन्य स्कूलों में दाखिला कराया जाए. हाल ही में हुई यूपी मदरसा बोर्ड की बैठक के बाद चेयरमैन इफ्तिखार अहमद ने कहा था कि यूपी में ऐसी कोई जांच नहीं कराएंगे. अब मदरसा बोर्ड के चेयरमैन के बयान को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के चेयरमैन ने मूर्खतापूर्ण बताया है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के चेयरमैन प्रियंक कानूनगो ने अपने ट्वीट में लिखा कि मदरसे प्राथमिक रूप से इस्लामिक धार्मिक शिक्षा सिखाते हैं. हिंदू या दूसरे ग़ैर इस्लामिक बच्चों का वहां कोई काम नहीं है. उनका स्कूलों में प्रवेश करवाना राज्य सरकार का दायित्व है. बोर्ड सरकारी पैसे से हिंदू बच्चों मुस्लिम मज़हबी शिक्षा देने की ज़िद कर रहा है. ये ग़ैर क़ानूनी है,बच्चों को पढ़ाना हैं तो स्कूल बनाएं. इस पूरे मामले में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने कहा कि ऐसा लगता है मदरसा बोर्ड चेयरमैन कुछ गलतफहमी में है.यह पत्र उनके नाम से है ही नहीं, ना मदरसा बोर्ड को यह जिम्मेदारी राष्ट्रीय आयोग ने दी है. जब उनको कोई जिम्मेदारी दी ही नहीं गई तो यह बयान बाजी क्यों कर रहे कि वह यह काम नहीं करेंगे.
मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष पर बिफरीं शुचिता चतुर्वेदी
शुचिता चतुर्वेदी ने कहा, 'यह काम अल्पसंख्यक कल्याण विभाग को दिया गया है. मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष इफ्तिखार भाई को थोड़ा स्टडी करने की जरूरत है.' शुचिता चतुर्वेदी ने कहा, 'ऐसा लगता है कि मदरसा बोर्ड को समझ नहीं है. अभी उनको लगता है यह सब मदरसे का प्रश्न है, लेकिन यह सिर्फ मदरसे का प्रश्न नहीं है, ना उसकी अस्मिता का. यह सवाल है उन बच्चों का जो समाज में शिक्षा के अधिकार से किसी वजह से वंचित रह रहे हैं. जानबूझकर बच्चों को मदरसे में लाना और उसके बाद उनको किसी और धर्म की शिक्षा देना. अगर वह बच्चे का भविष्य संवारने के लिए लाते तो सवाल ना होता. लेकिन मदरसों की स्थिति स्वयं देखी गई है, वहां गैर मुस्लिम बच्चा क्यों पढ़ेगा? क्यों केवल एक धर्म की शिक्षा लेने के लिए आएगा? इस चीज को राष्ट्रीय आयोग ने बड़ी संवेदनशीलता से लिया है.मदरसा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिखार अहमद को अपनी समझ बढ़ानी चाहिए, यह कोई लड़ाई नहीं है.'
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