Martyr Major Ranbir Singh Dwar: 'भारत माता की जय...शहीद मेजर रणबीर सिंह...अमर रहें-अमर रहें...' यूपी (UP) के बागपत (Baghpat) जिले का नांगल गांव (Nangal Village) 57 साल बाद एक बार फिर इन नारों से गूंज उठा. शहीद मेजर रणबीर सिंह (Ranbir Singh) की पत्नी सुरेंद्र कुमारी ने भी उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित करते हुए पति की शहादत को नमन किया. साथ ही उस वक्त को भी याद किया, जब सन 1965 की लड़ाई में पति मेजर रणबीर सिंह पाकिस्तान (Pakistan) से सटे हाजी पीर (Haji Peer) और उरी (Uri) सेक्टर में लड़ते हुए शहीद हो गए थे.


दरअसल, रविवार को नांगल गांव के बाहर मेजर रणबीर सिंह के सम्मान में शहीद द्वार का उद्घाटन किया गया तो हर कोई उनकी बहादुरी के किस्से सुनाने लगा. इस सराहनीय कार्य में गांव के लोगों के जज्बे और योगदान की भी तारीफ करने होगी कि उन्होंने सरकार से एक भी पैसा नहीं लिया और गांव में ही 12.50 लाख रुपये एकत्र कर एक साल में शहीद द्वार का निर्माण करा दिया.


1938 को हुआ था मेजर रणबीर सिंह का जन्म


बागपत के नांगल गांव में सुबेदार मेजर राम सिंह के घर 30 अगस्त 1938 को जन्मे रणबीर सिंह का राष्ट्रीय रक्षा अकादमी खड़कवासला, पुणे से प्रशिक्षण के बाद 14 दिसंबर 1958 को कमीशन मिला और 9वीं पंजाब रेजीमेंट में उनकी नियुक्ति हुई. सन 1962 में चीनी हमले में उनके अदम्य साहस और बहादुरी के लिए उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया. सन 1965 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में 21 सितंबर को गिटियान चौकी क्षेत्र के हाजी पीर और उरी सेक्टर में उनके हाथ-पैर में गोलियां लगी थीं, लेकिन जान की परवाह न करते हुए वह चौकी पर कब्जा होने तक सैनिकों का नेतृत्व करते रहे.


क्षेत्र में सुनाए जाते हैं मेजर रणबीर सिंह की बहादुरी के किस्से


उसी समय एलएमजी की गाेलियों से वह वीरगति को प्राप्त हो गए. उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया. नांगल गांव के रहने वाले मेजर रणबीर सिंह की बहादुरी के किस्से आज भी क्षेत्र में सुनाए जाते हैं. उनकी पत्नी सुरेंद्र कुमारी अपने बेटे डॉ. राजीव सिंह के साथ मेरठ में रहती हैं. गांव के लोगों ने उनकी स्मृति में लगभग 12.50 लाख रुपये एकत्र कर शहीद द्वार का निर्माण कराया, जिस पर उनकी प्रतिमा भी लगाई गई है. यह कार्य रिटायर्ड फौजी जगपाल सिंह की देख-रेख और सहयोग से हुआ है. रविवार को इसी द्वार का उद्घाटन किया गया, जिसमें शहीद के परिवार के अलावा काफी लोग जुटे और उन्हें नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी.


'ग्राम प्रधान को जाता है द्वार निर्माण का श्रेय'


शहीद मेजर रणबीर सिंह के बेटे डॉ. राजीव सिंह ने कहा कि गांव के लोगों ने अपने सहयोग से बलिदानी द्वार बनाया है. ग्राम प्रधान को द्वार निर्माण का श्रेय जाता है. ग्रामीणों ने इस द्वार काे कड़ी मेहनत, योगदान, सहयोग और अपने खर्चे से बनवाया है. मेजर रणबीर सिंह सन 1965 की लड़ाई में हाजी पीर और उरी सेक्टर से पाकिस्तानियों से लड़ते बलिदानी हुए थे. मेरी माता यानी बलिदानी रणबीर सिंह की पत्नी ने द्वार का उद्घाटन किया है.


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शहीद मेजर रणबीर सिंह की पत्नी बोली- मुझे गर्व हो रहा है


वहीं शहीद मेजर रणबीर सिंह की पत्नी सुरेंद्र कुमारी ने कहा कि 1965 की लड़ाई में उन्होंने देश की खातिर अपना बलिदान दे दिया था. वह बहादुर थे और वह ही नहीं बल्कि लाेग भी उनकी बहादुरी पर गर्व करते हैं. नांगल गांव के प्रधान और लोगों ने मेजर रणबीर संह की स्मृति में जिस द्वार का निर्माण कराया है, वह उसका स्वागत करती है. पति के बलिदान और गांव के लोगों के इस कार्य पर मुझे गर्व हो रहा है.


'शहीद मेजर रणबीर सिंह ने देश को कैद होने से बचाया'


ग्राम प्रधान पति जगपाल सिंह ने कहा कि सन 1965 की लड़ाई में शहीद हुए मेजर रणबीर सिंह की याद में पूरे गांव के मन में उत्साह था कि उनके नाम की कोई ऐसी प्रतिमा और द्वार बनाया जाए. इससे हमारे क्षेत्र का और गांव का नाम रोशन हो. हमारी आने वाली पीढ़ी यानी जो बच्चे हैं, उनको उनके बारे में पता चल सके. इन बच्चों के अंदर एक नई सीख मिले. हमारे गांव के बच्चों को नई ऊर्जा मिले कि यहां एक ऐसा योद्धा हुआ है, जिसने हमारे देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और हमारे देश को कैद होने से बचाया.


गांव वासियों में है हर्षोल्लास


उन्होंने कहा कि सन 1965 की लड़ाई में मेजर रणबीर सिंह शहीद हो गए थे. उनकी याद में पूरे गांव के सहयोग से द्वार बनाया है और इसका उद्घाटन उनकी पत्नी ने किया है. गांव वासियों में हर्षोल्लास है और यहां सभी लोग आए हुए हैं. सभी ने श्रद्धा सुमन और श्रद्धांजलि अर्पित की है. इसमें सरकार का कोई सहयोग नहीं है. पूरे ग्राम वासियों के सहयोग से बना है और आगे भी ऐसी कभी कोई भी जरूरत पड़ेगी तो प्रतिमा आदि बनाते रहेंगे.


द्वार के लिए बेटे ने किया था निवेदन


ग्रामीण राकेश कुमार ने कहा कि मेजर रणबीर सिंह नाम से एक शहीद द्वार का उद्घाटन किया गया है, जो सन 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में शहीद हो गए थे. इनका एक बेटा है, इन्होंने गांव के लोगों के सामने द्वार के लिए निवेदन किया था. प्रधान और गांव के सहयोग से द्वार बनवाया गया है और इसका आज उद्घाटन हुआ है. मूर्ति का अनावरण भी किया गया है.