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UP MLC Election 2022: बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है एमएलसी का चुनाव, विधान परिषद में बहुमत में नहीं पार्टी, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

2022 की विधानसभा में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी फिलहाल विधान परिषद में प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी से काफी पीछे है.

UP MLC Election: विधान परिषद चुनाव की घंटी बज गई है और बीजेपी के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल भी बन गया है. 2022 की विधानसभा में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी फिलहाल विधान परिषद में प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी से काफी पीछे है. चूंकि, विधान परिषद का चुनाव सत्ताधारी दल का माना जाता है, इसलिए बीजेपी ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने पाले में करने के लिए पुख्ता रणनीति तैयार कर रही है. हालांकि समाजवादी पार्टी भी विधान परिषद में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए जोर आजमाइश में जुटी है.

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में 100 सीटें हैं जिसमें समाजवादी पार्टी के पास 48 सीटें हैं जबकि बीजेपी 36 सीटों पर है. हालांकि, विधानसभा चुनाव के दौरान ही सपा के 8 और बसपा का एक एमएलसी बीजेपी के खेमे में जा चुका है. बीजेपी और सपा दोनों ही विधान परिषद में बहुमत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं. भारतीय जनता पार्टी के सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी से टूट कर आए एमएलसी को टिकट दिया जा सकता है जबकि समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद अपने कई वर्तमान एमएलसी की जगह दूसरों को मौका दे सकती है. फिलहाल दोनों ही पार्टियां बैठक और इंटरव्यू के माध्यम से एमएलसी के चेहरों पर मंथन कर रही हैं.

विधायक के बराबर होता है एमएलसी का दर्जा

विधान परिषद को उच्च सदन कहते हैं और एमएलसी का दर्जा विधायक के बराबर होता है. विधान परिषद में विधानसभा के एक तिहाई सदस्य होते हैं. यूपी में 403 विधानसभा सदस्य हैं तो इस आधार पर विधान परिषद में अधिकतम 134 सदस्य और कम से कम 40 सदस्य होने चाहिए. विधान परिषद के सदस्य का कार्यकाल 6 साल के लिए होता है. चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार की उम्र 30 साल से अधिक होनी चाहिए.

गांव और शहर की सरकार चुनती है एमएलसी

उत्तर प्रदेश विधान परिषद  की 100 सीटों में से 38 सदस्यों को विधायक चुनते हैं जबकि 36 सदस्यों को स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र के तहत सांसद, विधायक, नगर निगम, कैंट बोर्ड, नगर पालिका, जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य के निर्वाचित प्रतिनिधि और ग्राम प्रधान चुनते हैं. 10 मनोनीत सदस्य भी होते हैं जिन्हें राज्यपाल नामित करते हैं. इसके अलावा 8 सीटें शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती हैं जिन्हें शिक्षक और 8 सीटें स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती हैं जिन्हें रजिस्टर्ड स्नातक चुनते हैं. उच्च सदन को सत्ताधारी पार्टी का चुनाव माना जाता है. यहां किसका वर्चस्व रहेगा, यह विधानसभा में राजनीतिक दलों के विधायकों की संख्या पर निर्भर करता है.

एमएलसी चुनाव में खुलकर होता है धन-बल का प्रयोग

उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय कोटे की विधान परिषद की 35 सीटें हैं जिनके लिए चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. मथुरा, एटा और मैनपुरी सीट से 2 प्रतिनिधि चुने जाते हैं. यानि 35 सीटों पर 36 सदस्यों का चयन होता है. एमएलसी के सदस्यों का चयन सांसद, विधायक, नगर निगम, नगर पालिका, कैंट बोर्ड, जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत सदस्य और ग्राम प्रधान मतदान के जरिए करते हैं. मतदान अमूमन जिला पंचायत भवनों में होता है. मतदान बैलट पेपर के जरिए किया जाता है. इस चुनाव में जीतने के लिए धन-बल का खुलकर प्रयोग होता है.

विधानसभा से पास बिल विधायक निरस्त कर सकती है विधान परिषद

विधान परिषद को विधायी कार्य संबंधी शक्तियां दी गई हैं. इसके तहत विधान परिषद, विधानसभा के साथ मिलकर कानून बनाती है. संविधान में संशोधन के लिए विधानसभा के साथ विधान परिषद संयुक्त भूमिका में रहती है. विधानसभा में बहुमत होने पर राजनीतिक दल अक्सर मनमाने तरीके से काम करते हैं जिस पर विधान परिषद अंकुश लगाती है. विधान परिषद मंत्रियों से विभिन्न माध्यमों से सवाल पूछ सकती है. प्रशासन के कामों पर आलोचना भी कर सकती है. विधानसभा को महत्वपूर्ण विषयों पर सलाह भी दे सकती है.

विधान परिषद को कार्यकारी शक्तियां दी गई हैं. विधानसभा कोई बिल या विधेयक लाती है तो उसे पास करने के लिए विधान परिषद के पास भेजा जाता है. विधान परिषद उसे पास या रद्द कर सकती है या संशोधन कर सकती है. विधान परिषद अगर विधानसभा से भेजे गए बिल या विधेयक पर 3 महीने तक कोई कार्रवाई न करें तो  विधानसभा उसे पास कराने के लिए दोबारा विधान परिषद के पास भेजती है. दूसरी बार भी विधान परिषद चाहे तो 1 महीने तक कोई कार्यवाही न करे या बिल-विधेयक रद्द कर दे या उसमें संशोधन कर सकती है. ऐसे में विधानसभा का बिल या विधेयक लंबे समय तक अटका रहता है.

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