UP Nagar Nikay Chunav 2023: यूपी निकाय चुनाव में ताल ठोक रही कांग्रेस (Congress) के पास अभी तक अपना संगठन नहीं है. बृजलाल खाबरी के साथ प्रांतीय अध्यक्षों की नियुक्ति को 6 माह से ज्यादा का वक्त हो गया है, लेकिन अभी तक प्रदेश कार्यकारिणी और शहरों की इकाइयों का गठन नहीं हो सका है. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि एक महीने पहले ही प्रदेश और शहरों की इकाइयों के गठन के लिए नाम दिल्ली भेजे गए थे, लेकिन वहां से हरी झंडी नहीं मिल सकी है. ऐसे में कांग्रेस कितनी मजबूती से निकाय चुनाव लड़ेगी, ये सवाल उठने लगा है. कांग्रेस के भीतर मूल कांग्रेसी और बाहर से आए नेताओं के बीच तालमेल को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. मूल कांग्रेसी चुनाव या पार्टी की अन्य गतिविधियों में किनारे रहते हैं जबकि बाहर से आए नेता सक्रिय भूमिका में दिख रहे हैं. इसका भी असर निकाय चुनाव में पड़ना तय माना जा रहा है.


यूपी की राजधानी में निकाय चुनाव में कांग्रेस का गौरवशाली प्रदर्शन रहा है. 1960 में जब लखनऊ नगर पालिका परिषद हुआ करती थी और परिषद का नगर प्रमुख चुना जाता था तो सबसे पहले नगर प्रमुख कांग्रेस के राज कुमार श्रीवास्तव बने थे. राजकुमार श्रीवास्तव 1 फरवरी 1960 से 1 फरवरी 1961 तक नगर प्रमुख रहे.


उस समय नगर प्रमुख का चुनाव पार्षद किया करते थे. उनके बाद गिरिराज रस्तोगी करीब सवा साल (2 फरवरी 1961 से 1 मई 1962) तक नगर प्रमुख रहे. कांग्रेस के ही डॉक्टर पुरुषोत्तम दास कपूर 2 साल (2 मई 1962 से 1 मई 1963 और 2 मई 1963 से 1 मई 1964) तक नगर प्रमुख रहे. उनके बाद कप्तान वीआर मोहन (2 मई 1964 से 1 मई 1965) एक साल, ओम नारायण बंसल (2 मई 1965 से 30 जून 1966) 14 महीने, डॉक्टर मदन मोहन सिंह सिद्धू (4 जुलाई 1968 से 30 जून 1969) एक साल, बालकराम वैश्य (1 जुलाई 1969 से 30 जून 1970) एक साल और बेनी प्रसाद हलवासिया (1 जुलाई 1970 से 30 जून 1971) भी एक साल तक नगर प्रमुख रहे.


लगातार आठ कांग्रेसी नेताओं के बाद 5 जुलाई 1971 में निर्दलीय प्रत्याशी डॉक्टर दाऊजी गुप्ता नगर प्रमुख बने. लगभग एक साल बाद वो दोबारा एक साल के लिए निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नगर प्रमुख चुने गए. तीसरी बार दाऊजी गुप्ता फिर नगर प्रमुख चुने गए लेकिन इस बार उन्हें कांग्रेस की तरफ से प्रमुखी मिली. दाऊ जी गुप्ता को नारायण दत्त तिवारी ने पार्टी का प्रत्याशी बनाया था. उनका तीसरा कार्यकाल पौने 3 साल तक रहा. दाऊजी गुप्ता के बाद 13 मई 1993 को अखिलेश दास नगर प्रमुख बने. उनका कार्यकाल 2 साल 201 दिन रहा.


1995 में लखनऊ की कमान भाजपा के हाथों में आ गई
अखिलेश दास के बाद से लखनऊ की कमान भाजपा के हाथों में आ गई और 1 दिसंबर 1995 को डॉक्टर एससी राय नगर प्रमुख चुने गए. डॉक्टर एससी राय 5 साल तक नगर प्रमुख रहे. 1 दिसंबर 2000 को डॉक्टर एससी राय दोबारा नगर प्रमुख चुने गए. इस बार उनका कार्यकाल लगभग 2 साल रहा. इस वक्त तक डॉक्टर एस सी राय के अलावा किसी ने भी 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया. दरअसल, पार्षद द्वारा चुने जाने की वजह से अक्सर अविश्वास प्रस्ताव आता था और नगर प्रमुख बदल दिए जाते थे.


डॉक्टर एससी राय को जनता ने लखनऊ का पहला महापौर चुना
डॉक्टर एससी राय के कार्यकाल के दौरान ही लखनऊ नगर पालिका परिषद की जगह नगर निगम बना दिया गया. चुनाव का तरीका भी बदला. जो पार्षद महापौर चुनते थे, अब सीधे जनता के हाथों में यह चुनाव आ गया. डॉक्टर एससी राय को जनता ने लखनऊ का पहला महापौर चुना.


21 नवंबर 2002 से 13 फरवरी 2006 तक डॉक्टर एससी राय महापौर रहे. डॉक्टर एससी राय के बाद 14 नवंबर 2006 से 23 फरवरी 2011 तक डॉ दिनेश शर्मा लखनऊ के महापौर रहे बीच में करीब 17 महीने तक प्रशासक अवधि चली. 14 जुलाई 2012 को डॉ दिनेश शर्मा फिर से महापौर चुने गए. 2017 में जब योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तब दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया. उनकी जगह पर 140 दिन के लिए सुरेश चंद्र अवस्थी ने महापौर की कुर्सी संभाली. 12 दिसंबर 2017 को संयुक्ता भाटिया ने शहर की पहली महिला मेयर के तौर पर कुर्सी संभाली उनका कार्यकाल 5 साल 38 दिन का रहा.


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कांग्रेस का पूरा जोर 17 नगर निगमों में महापौर के पद पर जीत हासिल करने पर है. इसके लिए एक स्क्रीनिंग कमेटी बनाई गई है. सभी नगर निगमों से दावेदारों के नाम मंगा लिए गए हैं. इन नामों को शॉर्टलिस्ट करके प्रदेश अध्यक्ष के पास भेजा जाएगा. प्रदेश अध्यक्ष केंद्रीय नेतृत्व से चर्चा करने के बाद नामों की सूची जारी करेंगे.