UP Nagar Nikay Chunav 2023: निकाय चुनाव में सपा अपने एम-वाई फैक्टर से इतर होकर चुनाव लडने मैदान में उतरी है, लेकिन इस नए प्रयोग में मुस्लिमों की अनदेखी हो रही है. उदाहरण मेरठ महापौर सीट का दिया जा रहा है, जहां चार लाख से ज्यादा मुस्लिम वोट होने के बावजूद गुर्जर को टिकट दे दिया गया. मुस्लिम अंदर ही अंदर नाराज हैं और बसपा के लिए ये दाव खुला मैदान छोड़ने जैसा है. अब ये सवाल उठ रहा है कि मुस्लिम आखिर सपा या बसपा की तरफ कदम बढ़ाएंगे, क्योंकि मुस्लिम वोटर पर अब जंग और तेज हो गई है.
मुस्लिमों को लेकर जंग, मुस्लिम किसके हैं संग, सपा में मुस्लिमों की बड़ी भागीदारी, फिर क्यों नहीं मिल रही हिस्सेदारी. इन बातों का शोर यूपी की सियासत में हर तरफ सुनाई दे रहा है, क्योंकि अखिलेश यादव ने निकाय चुनाव में अपनी रणनीति बदली है और अपने एम वाई फेक्टर से अलग हटकर टिकट बांट रहें हैं. इसकी झलक निकाय चुनाव में सपा की पहली महापौर प्रत्याशियों की लिस्ट में भी दिखती है, जिसमे मुस्लिमों की हिस्सेदारी बेहद कम है. सबसे चौंकाने वाला नाम मेरठ नगर निगम में सामने आया, जहां मुस्लिमों की बेहद बड़ी आबादी होने के बावजूद यहां सपा विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को टिकट दे दिया गया.
अखिलेश का चौंकाने वाला फैसला
अखिलेश का ये फैसला बेहद चौंकाने वाला है. अब अखिलेश के फैसलों पर बसपा खुद के पक्ष में बड़ी उम्मीद लगा रही है. बसपा पहले ही पश्चिम में इमरान मसूद के भाई की पत्नी खदीजा मसूद को सहारनपुर से मैदान में उतरकर मुस्लिमों का बड़ा हितैषी होने का बड़ा दाव चल चुकी है. बसपा नेताओं का कहना है कि सपा मुस्लिमों को वहां टिकट देगी जहां वे हारेंगे और इसलिए मुस्लिम बसपा को वोट देंगे क्योंकि सपा को वोट देना गड्ढे में वोट डालने जैसा है.
मेरठ निगम पर किसका कितना वोट
पश्चिमी यूपी की अहम सीट मेरठ नगर निगम की बात करते हैं. यहां मुस्लिम करीब 4 लाख से ज्यादा हैं. इनमें भी एक लाख से ज्यादा अंसारी बिरादरी का वोट है, जबकि गुर्जर करीब 30 से 40 हजार हैं. एससी वोट डेढ़ लाख, जाट 70 हजार, वैश्य दो लाख से ज्यादा, पंजाबी एक लाख के करीब, 85 हजार से ज्यादा ब्राह्मण, 1 लाख अन्य वोट हैं, लेकिन मुस्लिमों की आबादी इतनी बड़ी होने के बावजूद गुर्जर प्रत्याशी सीमा प्रधान को सपा का टिकट चौंकाने वाला है. यहां सपा से दूसरी बार चुनाव जीते सपा विधायक हाजी रफीक अंसारी अपनी पत्नी खुर्शीदा अंसारी के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन उनकी जगह सीमा प्रधान के टिकट पर मुहर लगा दी गई.
यही बात मुस्लिमों को नागवार गुजर रही कि जब बात भागीदारी और हिस्सेदारी की आती है तो मुस्लिमों को सपा पीछे कर देती है. दूसरी बड़ी बात यह भी है कि मेरठ की 7 विधानसभा सीटों में सपा के दो शाहिद मंजूर और रफीक अंसारी और आरएलडी का एक गुलाम मुहम्मद विधायक हैं. यानी गठबंधन के तीन मुस्लिम विधायक फिर भी टिकट गुर्जर को. इस मसले पर जब सपा विधायक रफीक अंसारी से बात की गई तो उन्होंने बस इतना कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का निर्णय है, हम सपा के सिपाही है. हालांकि मुस्लिम सपा या बसपा के साथ हैं के सवाल पर उन्होंने बसपा को निशाने पर लिया.
क्यों लिया अखिलेश ने ये फैसला
अब इस बात को भी समझते हैं कि आखिर अखिलेश ने ऐसा फैसला क्यों लिया. अखिलेश यादव मेरठ में किसी मुस्लिम को टिकट देते तो यहां ध्रुवीकरण पर चुनाव हो जाता. गुर्जर को टिकट देकर अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ये प्रयोग किया है कि बसपा के मैदान में उतरने पर मुस्लिमों से इतर किसी दूसरी बिरादरी को टिकट देने पर मुस्लिम कितना साथ आते हैं. अगर अखिलेश का ये प्रयोग असफल रहा तो मुस्लिमों की नाराजगी का पता चल जाएगा, लेकिन सफल रहा तो 2024 में बहुत कुछ बदल जाएगा. अब सपा के इस गुर्जर दाव के बाद मेरठ का मैदान बसपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम के लिए खाली पड़ा है और ये पार्टी मुस्लिम को टिकट देकर मुस्लिमों का बड़ा हितैषी होने का दंभ भरेंगी. हालांकि सपा की प्रत्याशी सीमा प्रधान को भरोसा है कि मुस्लिम सपा के साथ ही रहेंगे, कहीं नहीं जाएंगे.
सपा-बसपा में छिड़ी हुई है जंग
चूंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की आबादी काफी है और कई सीट पर वे जीत हार को प्रभावित रखने की कूवत रखते हैं. अब इसमें मुस्लिमों पर सबकी पैनी नजर है और मुस्लिमों का दिल, सपा, बसपा में से कौन जीतेगा ये बेहद अहम है. यूपी निकाय चुनाव के नतीजे ये तस्वीर साफ कर जाएगी कि मुस्लिमों को साइकिल की सवारी पसंद है या फिर हाथी की चिंघाड़. इतना भी साफ है कि मुस्लिम वोटों को लेकर सपा बसपा में बड़ी जंग छिड़ी हुई है और इस जंग को जो भी जीतेगा उसके लिए 2024 में न सिर्फ बड़े रास्ते खुलेंगे बल्कि नए समीकरण बनेंगे, लेकिन मुस्लिमों के दिल में क्या है ये बात अभी कोई नहीं जानता.