UP Nagar Nikay Chunav 2023: यूपी की राजनीति में कहा जाता है कि पश्चिम के किले की जिस पार्टी ने भी किलेबंदी कर दी, उसकी यूपी में फतह हो जाती है. बात हम पश्चिमी यूपी की कर रहें हैं. यहां के तमाम नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों में कमल खिलाने के लिए बीजेपी (BJP) ने पूरी ताकत झोंक दी है. ऐसे में सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के कई मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. बीजेपी की इस किलेबंदी को तोड़ने के लिए सपा, आरएलडी, बीएसपी भी पूरी जान लगा रहे हैं.


कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर
यूपी निकाय चुनाव जीतने को बीजेपी के पश्चिम प्लान ने बड़े-बड़े दिग्गजों का इम्तिहान शुरू करा दिया है. पश्चिम यूपी के कई ऐसे जिले हैं, जहां केंद्रीय मंत्री और राज्य मंत्री के साथ संगठन के दिगज्जों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है. हम मुरादाबाद से बात शुरू करते हैं. 


प्रदेश अध्यक्ष का जनपद है मुरादाबाद 
मुरादाबाद में 11 नगर निकाय हैं. जिले में एक नगर निगम है. यह बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी गृह जनपद है. प्रदेश उपाध्यक्ष सत्यपाल सैनी भी यहीं से आते हैं. यानी यहां पर प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश उपाध्यक्ष के साथ एक विधायक की प्रतिष्ठा दांव पर है.


मेरठ में फूल खिलाना बड़ी चुनौती
मेरठ की बात करें तो यहां की फेहरिस्त बड़ी लंबी है. मेरठ में 16 नगर निकाय हैं. इनमें एक नगर निगम, दो नगरपालिका और 13 नगर पंचायतें हैं. यहां के नगर निगम पर फूल खिलाना बड़ी चुनौती है. यहां जीत हासिल कराने की जिम्मेदारी 11 दिग्गज नेताओं पर है. इनमे बीजेपी के चार सांसद, तीन विधायक और तीन एमएलसी हैं. इनमें दो राज्यमंत्री भी हैं. एक राज्य मंत्री दिनेश खटीक और दूसरे ऊर्जा राज्यमंत्री डॉक्टर सोमेंद्र तोमर. बीजेपी के फायर ब्रांड नेता संगीत सोम भी यहीं से हैं. यानी मेरठ में 11 बड़े नेताओं की अग्निपरीक्षा है


मुजफ्फरनगर से आते हैं केंद्रीय मंत्री  
मुजफ्फरनगर में 10 नगर निकाय हैं, यहां केंद्रीय राज्य मंत्री डॉक्टर संजीव बालियान और राज्य मंत्री कपिल देव अग्रवाल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. सहारनपुर में 12 नगर निकाय हैं. इनमें से एक नगर निगम भी शामिल है. यहां राज्य मंत्री कुंवर ब्रिजेश सिंह और राज्य मंत्री जसवंत सैनी सहित पांच विधायकों का कद तय होगा.


बागपत में सांसद और मंत्री की बड़ी परीक्षा
बागपत जिले में 9 नगर निकाय हैं. यहां पूर्व केंद्रीय मंत्री और मौजूदा सांसद डॉ सत्यपाल सिंह, राज्य मंत्री केपी मलिक और एक विधायक की बड़ी परीक्षा है.


शामली में सांसद का होन है इम्तिहान
शामली जिले में 10 नगर निकाय हैं. यहां पर बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष मोहित बेनीवाल और कैराना सांसद प्रदीप चौधरी का बड़ा इम्तिहान होना है. हालांकि, बीजेपी के नेताओं का कहना है कि यहां बीजेपी से किसी का कोई मुकाबला नहीं है. सब एक तरफा है.


गाजियाबाद केंद्रीय मंत्री समेत है बड़ी फौज
गाजियाबाद जिले में 9 नगर निकाय हैं. इनमें गाजियाबाद नगर निगम भी शामिल हैं. यहां केंद्रीय राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह, राज्यमंत्री नरेंद्र कश्यप, विधायक नंदकिशोर गुर्जर सहित पांच विधायकों पर जीत की बड़ी जिम्मेदारी है.


धर्मपाल सिंह का गृह जनपद है बिजनौर
बिजनौर की बात कर लेते हैं, यहां 18 नगर निकाय हैं. बिजनौर प्रदेश संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह का गृह जनपद है. पूर्व मंत्री अशोक कटारिया और चार विधायकों को भी निकाय चुनाव में अपने जनमत का प्रदर्शन करना है. 


बुलंदश्हर में भी तय अग्निपरीक्षा
बुलंदशहर जिले में 17 नगर निकाय हैं, यहां प्रदेश मंत्री डॉक्टर चंद्र मोहन, प्रदेश मंत्री अमित वाल्मीकि, पूर्व मंत्री अनिल शर्मा सहित सात विधायकों का कद नगर निकाय के चुनाव में तय होगा. यहां बीजेपी के नेता कह रहें हैं कि मोदी योगी के विकास और सुरक्षा मॉडल के आगे कोई नहीं टिकेगा और सपा का तो सूपड़ा ही साफ हो जाएगा. सभी नगर निकाय हम ही जीतेंगे.


विपक्षी पार्टियों ने किया यह दावा
हालांकि सपा, आरएलडी और बीएसपी भी पूरी मजबूती से निकाय चुनाव लड़ रही है. जयंत चौधरी और अखिलेश यादव का पश्चिम इलाके में नहीं आना बीजेपी को काफी राहत दे रहा है. यहां सपा और आरएलडी के नेता कई सीटों पर आमने सामने हैं. इतना सब कुछ होने के बावजूद आरएलडी नेताओं का कहना है गठबंधन ही जीतेगा. 


नतीजे तय करेंगे किसका किला
इन सबके बीच बीजेपी पूरी ताकत झोंक रही है. सपा और आरएलडी गठबंधन आपसी तकरार के बीच बीजेपी को घेरने में जुटा है. इधर, हाथी भी अपनी चाल बढ़ा रहा है. अब इसमें निकाय चुनाव के नतीजे ये तय करेंगे कि पश्चिम का किला आखिर किसका होगा.


नेताओं के कद और वजूद तय करेंगे नतीजे
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव के नतीजे बीजेपी के कई बड़े नेताओं के कद और वजूद तय करेंगे. इस इम्तिमाहन में कौन पास होगा और कौन फेल, उससे भी ये तस्वीर साफ हो जाएगी कि पश्चिम के किले की पहरेदारी में लगे योद्धा सियासत के अखाड़े में कितने मजबूत और कितने कमजोर हैं. सबसे बड़ी बात 2024 की फतह का रास्ता इसी पश्चिम के किले से होकर जाएगा.


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