Independence Day: मंगल पांडे की आवाज पर देश पर मर-मिटने को तैयार हो गए थे अमरोहावासी, 18 सपूतों ने दी थी शहादत
उत्तर प्रदेश के अमरोहा में 1857 की क्रांति के दौरान 18 वीरों ने हंसते हुए बलिदान दे दिया था. उन्हें जेल में सूली पर चढ़ा दिया गया था.
UP News: 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा.' जब-जब आजादी के किस्से लिखे जाएंगे तब-तब अमरोहा के नौगावां सादात कस्बे का नाम भी जरूर लिखा जाएगा. पैरों में जकड़ी गुलामी की जंजीरे तोड़ने के लिए हथियार उठाने वाले यहां के वीर सपूतों ने भी अंग्रेजी फौज के दांत खट्टे किए थे. 1857 की क्रांति में बगावत के इल्जाम में गिरफ्तार किए गए 18 क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने मुरादाबाद की दमदमा कोठी में सूली पर चढ़ा दिया था.
आजादी के लिए सिर पर कफन बांध लिया था
इन सभी की मौत का डेथ वारंट नौगावां सादात के गांव पीपली तगा की पीलीकोठी में लिखा गया था. बात तब की है जब मेरठ से मंगल पांडे ने आजादी का बिगुल फूंका था तो नौगावां सादात के लोगों ने भी आजादी का ख्वाब देखकर अपने सिर पर कफन बांध लिया था. उस वक्त नवाब मज्जू खां मुरादाबाद मंडल के हाकिम थे. दिल्ली की गद्दी पर बहादुर शाह जफर का कब्जा था. इसी दौरान देश में पहले गदर की शुरुआत हुई थी. क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी फौज के पैर लड़खड़ा दिए थे. 1857 में हुए इस गदर के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने क्रांतिकारियों पर जुल्म ज्यादती में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी थी. मुरादाबाद की दमदमा कोठी इस बात की आज भी गवाह है. जहां पर नौगावां सादात के 18 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया था.
1857 के गदर से बौखलाई अंग्रेजी फौज क्रांतिकारियों की तलाश में जगह-जगह छापामारी कर रही थी. इस दौरान बस्ती के मोहल्ला शाह फरीद में एक घर में छापा मारकर 18 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया था. जिसमें वजीर अली, नजर अली, खादम अली, चिराग अली, असगर अली, बाबर अली, आगामीर, नियाज अली, उमराव अली, जवाहर अली, रहीम उल्ला, वजीरा, करीम उल्ला, इनायत अली, हिदायत अली, सज्जाद अली, बदर अली और फरहत अली शामिल थे.
फांसी के बाद गड्ढे में नमक डालकर दफ्नाया गया था शव
अमरोहा के इतिहासकार इकराम हैदर बताते हैं कि बगावत के इल्जाम में गिरफ्तार किए गए इन 18 क्रांतिकारियों का मुकदमा नौगावां सादात में धनौरा रोड पर सटे गांव पीपली तगा की पीलीकोठी (ब्रिटिश हुकूमत की अदालत) में चला था. मुकदमा नंबर 683 की सुनवाई तीन महीने तक चली थी. इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत के जज ने इन 18 क्रांतिकारियों को सजा-ए-मौत सुनाकर डेथ वारंट पर मुहर लगाई थी. उस खूनी अदालत के निशां गांव में आज भी मौजूद हैं. इतिहासकार ने बताया कि 18 वीरों को यहां से उठाकर मुरादाबाद की दमदमा कोठी ले जाया गया और इन्हें सूली पर चढ़ा कर एक गहरे गड्ढे में 18 वीरों के शवों को डालकर उसके ऊपर नमक डाला गया. परिजनों को शव नहीं सौंपे गए थे.
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