Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी के अमृत महोत्सव में पूरा देश उन वीर योद्धाओं को याद कर रहा है, जिनके बलिदानों से आज हम आजाद हवा में सांस ले रहे हैं. यूपी एक आजमगढ़ का भी स्वतंत्रता के आंदोलन में अहम योगदान रहा है. 1857 की प्रथम क्रांति के समय इस जिले की जनता ने अपूर्व साहस, त्याग और बलिदान का परिचय दिया, जो देश के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण अक्षर में अंकित रहेगा. इस जिले के एक-एक इंच जमीन पर अधिकार के लिए अंग्रेजों को नाको चने चबाने पड़े थे. 81 दिनों तक ये जिला आजाद रहा जिसकी गवाही आज भी अंग्रेजों के जमाने की जेल और उसकी बैरकें दे रही हैं.
क्रांतिकारियों ने तोड़ दिए थे जेल के फाटक
मेरठ से उठने वाली प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लहर ने दिल्ली से आजमगढ़ तक को उद्वेलित कर दिया था. 3 जून 1857 में क्रांतिकारियों ने जेल के फाटक को तोड़ दिया. जग बंदन सिंह की गिरफ्तारी से नाराज राजा बलि ने अपने साथियों के साथ आजमगढ़ जेल पर हमला कर दिया जेल का फाटक तोड़कर बंद सभी साथियों को छुड़ा लिया. इस दौरान कई अंग्रेज मारे गए थे. यही नहीं उन्होंने कंपनी बाग जहां अग्रेजों के खाने थे उन्हें भी तहस नहस कर दिया था. इन सभी लोगों को विप्लवी सेना में शामिल कर लिया गया.
81 दिन तक आजाद रहा था आजमगढ़
ये लड़ाई मुख्य रूप से जिला मुख्यालय मंदुरी, अतरौलिया, कोयलसा, मेघई सहित जिले के कई हिस्सों में हुई. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने जिले को तीन बार 3 से 25 जून, 18 जुलाई से 26 अगस्त, और 25 मार्च 1858 से 15 अप्रैल 1858 तक आजाद कराया. इस तरह से कुल 81 दिन आजमगढ़ कंपनी राज से आजाद रहा. इसी से प्रभावित होकर वीर कुंवर ¨सह जनपद की आजादी की लड़ाई में आए थे. 1857 में जाति-धर्म, भाषा व क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग-ए-आजादी में देश के लोगों ने भाग लिया था.
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कांप उठी थी अंग्रेजी हुकूमत
भारतीयों की इस एकता से ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति की चूलें हिल गईं थीं और कंपनी राज की जगह ब्रिटिश राज भारत की सत्ता की कमान संभालनी पड़ी थी. फिर भी भविष्य में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बढ़ते आक्रोश ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. यही कारण है कि 1857 की क्रांति को जब यहां के लोग याद करते हैं तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. आजमगढ़ में आजादी की ये लड़ाई इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. आज आजमगढ़ की पुरानी जेल और शहीद पार्क इस बात की गवाही देता है.
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