उत्तर प्रदेश के चंदौली में छठ का पर्व बड़े धूम धाम से मनाया जाता है. हर साल की भाति इस साल भी मुगलसराय के मानसरोवर तालाब पर छठ का आयोजन किया जा रहा है. कहा जाता है कि यहां सूर्य देव की सवारी अश्व (घोडा ) नगर भ्रमण करता है और उन लोगो के घर जाता है जहा छठ पूजा होती है. ऐसी मान्यता है की अश्व (घोडा ) की पूजा करने से सुख समृद्धि आती है इसलिए व्रती महिलाये हर साल अश्वों का छठ त्योहार शुरू होने के साथ इंतजार करती रहती है. लौकी भात खाने से लेकर छठ के दिन तक यह घोड़े नगर भ्रमण करते रहते हैं.


कोरोना की लहर कमजोर होने से छठ का उत्साह दोगुना

बता दें कि पिछले साल 2020 में कोरोना के कारण छठ पर्व घर पर ही मनाना पड़ा था. इस साल जिले में कोरोना मरीजों की संख्या शून्य है और एक भी एक्टिव केस नही है. इस कारण छठ पूजा करने के लिए घाट पर जिला प्रशासन ने अनुमति दी है. वहीं व्रत करने वाली महिलाएं छठ की पूजा की अनुमति मिलने से बहुत खुश है क्योंकि इस बार वे घाट पर ही छठ पूजा कर सकेंगी.


व्रती महिलाओं ने देश और दुनिया की शांति की कामना की
बहरहाल कोरोना काल के बाद इस बार का छठ पर्व काफी उत्साह से मनाया जा रहा है. वहीं व्रती महिलाओं का कहना है कि देश और दुनिया मे शांति रहे लोग खुशहाल रहे यही मनोकामना लेकर ब्रत कर रहे हैं. छठ पूजा को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि राजा प्रियंवद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थीमहर्षि कश्यप के कहने पर दंपति ने यज्ञ किया जिसके बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन दुर्भाग्य से उनका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. इस वियोग में राजा-रानी ने प्राण त्याग का प्रण किया और ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई. उन्होंने कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से पैदा हुई हूं इसलिए षष्ठी कहलाती हूं और उनके पूजन से संतान की प्राप्ति होगी. इसके बाद राजा-रानी ने षष्टी का व्रत किया और फिर उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. तभी से छठ व्रत परिवार की सुख समृद्धि और संतान की सलामती के लिए रखा जाता है.


 


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