Independence Day Monuments: वीरों की गाथा का गवाह है ये बाग, 500 क्रांतिवीरों को लटकाया गया था सूली पर
UP News: मुजफ्फरनगर में आजादी के 75 साल पर लोग सूली वाला बाग के क्रांतिकारियों को याद कर रहे हैं. बता दें सूली वाला बाग में करीब 500 क्रांतिकारियों को सूली पर लटका कर फांसी दी गई थी.
Muzaffarnagar News: वर्ष 1857 में जब भारत को आजाद कराने के लिए पूरा देश आंदोलन में कूद पड़ा था. तब आंदोलन की चिंगारी मेरठ से सुलगाकर जनपद मुजफ्फरनगर में पहुंची थी. जनपद के लोगों ने उसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. कस्बा पुरकाजी का गौरवशाली इतिहास रहा है. जानकारों के अनुसार सूली वाला बाग में करीब 500 क्रांतिकारियों को सूली पर लटका कर फांसी दी गई थी. शहीद वीरों की गाथा का उक्त बाग आज भी गवाह है. जनपद के क्रांतिकारियों ने अंग्रेज शासकों का डटकर मुकाबला कर उन्हें नाकों चने चबवा कर उल्टे पैरों भागने पर मजबूर किया था. इसके साथ ही कलेक्टर मिस्टर वरफोर्ट की हत्या कर दी थी.
शहीद स्मारक बनाने की कर रहे मांग
इस घटना के बाद आए नए कलेक्टर मिस्टर एडवर्ड ने क्रांतिकारियों को रोकने के लिए सेना को बुलाया था. सेना ने लोगों पर जमकर अत्याचार किए और लोगों को बंधक बनाकर सूली पर लटका कर फांसी दे दी थी. जिस पेड़ पर क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया था वो पेड़ आज भी सूली वाला बाग में है. बाग में एक मजार भी है, जहां पर काफी लोग जाकर प्रसाद आदि चढ़ाते हैं. कस्बेवासियों का दर्द है कि सूली वाला बाग और शहीद स्मारक शासन प्रशासन द्वारा की जा रही अनदेखी के चलते अपनी पहचान खोता जा रहा है. हालांकि कस्बे के लोग इसे शहीद स्मारक का दर्जा देने की मांग को लेकर आंदोलन करते रहे हैं.
पेंड आज भी है मौजूद
वरिष्ठ पत्रकार ऋषि राज राही कि माने तो जलियांवाला बाग के बाद अगर हिंदुस्तान के आजादी के इतिहास में कोई अंग्रेजी जुल्मों सितम का काला अध्याय है तो वह सूली वाला बाग है. अंग्रेज कलेक्टर वर फोर्ड की हत्या के बाद एडवर्ड ने नए कलेक्टर के रूप में यहां पदभार ग्रहण किया और उसके बाद जो जुल्मों सितम की दास्तान यहां शुरू हुई है उसका गवाह सूली वाला बाग माना जाता है. बताया जाता है कि आसपास के तमाम इलाकों से करीब 5 सौ लोगों को अंग्रेजी प्रशासन ने अंग्रेजी राज के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद करने वाले चेहरों के रूप में चुना. बाद में इन लोगों को सूली वाला बाग में ले जाकर फांसी पर चढ़ा दिया गया. सूली वाला बाग में वह आज भी इसकी निशानियां मौजूद हैं. वे पेड़ जिन पर लोगों को फांसी दी गई थी आज भी इसके खामोश गवाह हैं.
Tiranga Yatra: पीलीभीत डीएम ने निकाली मैराथन तिरंगा यात्रा, कहा- उत्साह के साथ मनाए देश का त्योहार