Dussehra 2022: पीलीभीत (Pilibhit) में हर साल होने वाली रामलीला (Ramlila) को आम मंचन नहीं बल्कि सच्ची रामलीला कहा जाता है और इसके पीछे की वजह खास है. दरअसल इस रामलीला में रावण की भूमिका अदा करने वाले तीन पात्रों की अब तक दशहरा (Dussehra) के दिन रावण वध के दौरान ही मौत हो चुकी है. जिसके बाद से अब यहां की रामलीला एतिहासिक हो गई है. लोग इस सच्ची रामलीला कहते हैं. इस रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं.

  


पीलीभीत की 'सच्ची रामलीला'
दरअसल पीलीभीत की रामलीला में सबसे पहले साल 1962 में रावण की भूमिका निभाने वाले मंशी छेदा लाल की दशहरा के दिन ही रावण वध के दौरान मौत हो गई थी. इसके बाद साल 1978 में दशहरा वाले दिन एक बार फिर से मोती महाराज की रावण वध की लीला के समय मौत हो गई और फिर साल 1987 में कल्लू मल ने भी रावण वध लीला के दौरान ही अपने प्राण त्याग दिए. जब कल्लू मल रावण बनाकर राम से युद्ध कर रहे थे, तभी उनकी मौत हो गई थी. इस मृत्यु के गवाह तत्कालीन डीएम, एसपी और लाखों लोगों की भीड़ भी बनी थी. रावण वध के दौरान तीन मौत होने के बाद से यहां दशहरा के दिन रावण वध नहीं होता है. 


लंकेश बने तीन किरदारों की हो चुकी है मौत


कल्लू मल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दिनेश रस्तोगी रावण की भूमिका निभा रहे हैं. दिनेश ने कहा कि उनके बाद भाई संजीव रावण बनेंगे. कल्लू मल की मौत के बाद उनके परिवार के सभी सदस्य अपने नाम के साथ रावण उपनाम लगाते हैं. यही नहीं उन्होंने अपनी दुकान का नाम भी लंकेश ज्वैलर्स रखा है. दिनेश रस्तोगी कहते हैं कि अगर उनसे कोई राम-राम कहता तो वो उसे बुरा मान जाते हैं क्योंकि वो खुद को रावण के परिवार से मानते हैं. रामलीला मैदान में कल्लू मल रावण की मूर्ति लगी है और पत्थर पर उस दिन की कहानी भी लिखी है जब दशहरा के दिन उनकी मौत हो गई थी और यहां की रामलीला को सच्ची रामलीला कहा जाने लगा. 


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यहां रावण वध के दिन सहम जाते हैं लोग


दिनेश रस्तोगी ने बताया कि उस दिन के बाद से यहां जब भी रावण वध होता है तो लोग सहम जाते हैं, जब तक रावण का पात्र उठ नहीं जाता तब तक न कोई जयकारा लगाया जाता और न ही कोई शोर करता है. रावण पात्र के उठते ही उद्घोष होने लगता है और लोग जयकारे लगाने लगते हैं. दिनेश रावण ने बताया कि यहां पर रावण का रोल हमेशा उनके परिवार के सदस्य ही करते आ रहे हैं. 1987 में मेरे पिता जी कल्लू मल की रावण वध के दौरान मौत हो गई थी, तभी से हमारी दुकानों का नाम रावण और लंकेश के नाम से है. रावण उपनाम हमें विरासत में मिला है और हमें इस पर गर्व है. 


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