UP Politics: बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चाओं को फिलहाल भले ही विराम दे दिया हो, लेकिन फूलपुर की ऐतिहासिक सीट ने न सिर्फ पंडित जवाहरलाल नेहरू, वीपी सिंह और केशव प्रसाद मौर्य समेत तमाम सियासी दिग्गजों को देश की सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचाया है, बल्कि कई बड़े और चर्चित नाम वालों को ज़ोर का सियासी झटका भी दिया है. देश में समाजवाद का पुरोधा कहे जाने वाले डॉ राम मनोहर लोहिया से लेकर बीएसपी संस्थापक कांशीराम, और अपना दल की स्थापना करने वाले डॉ सोनेलाल पटेल से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र व इंटरनेशनल क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को यहां करारी हार का सामना करना पड़ा है.


चर्चित संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी की मां कमला बहुगुणा, पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रजीत यादव, माफिया डॉन अतीक अहमद, इंदिरा गांधी के सलाहकार रहे जेएन मिश्र, बॉलीवुड डायरेक्टर रोमेश शर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री राम पूजन पटेल और खुद को संजय गांधी की बेटी बताने वाली प्रिया सिंह पाल की दाल भी फूलपुर में नहीं गल सकी. 


आसान नहीं हैं फूलपुर सीट से चुनाव जीतना


फूलपुर में बाहरी बनाम लोकल का मुद्दा चुनाव के वक़्त खूब ज़ोर पकड़ता है. डॉ लोहिया से लेकर बीएसपी संस्थापक कांशीराम और पूर्व केंद्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र से लेकर अपना दल के डॉ सोनेलाल पटेल को समीकरण पक्ष में होने के बावजूद सिर्फ बाहरी का ठप्पा लगने की वजह से यहां हार का सामना करना पड़ा था. माना यह जा रहा है कि इस बेहद अहम फैक्टर और समाजवादी पार्टी व कांग्रेस की तरफ से कोई ख़ास रिस्पॉस नहीं दिए जाने की वजह से नीतीश बाबू ने फूलपुर से चुनाव लड़ने की चर्चा को फिलहाल ठंडे बस्ते में डालकर सियासी कयासों को विराम दे दिया है.   


समाजवादी पुरोधा राम मनोहर लोहिया को भी मिली हार


फूलपुर सीट पर सबसे चौंकाने वाली हार समाजवाद के पुरोधा कहे जाने वाले डा० राम मनोहर लोहिया की रही है. 1962 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस के टिकट पर यहां से लगातार तीसरी बार मैदान में थे. विपक्ष ने उनके खिलाफ सोशलिस्ट पार्टी के डॉ. राम मनोहर लोहिया को उम्मीदवार बनाया था. लोहिया की गिनती उस वक़्त विपक्ष के बेहद मजबूत नेताओं में होती थी, लेकिन पंडित नेहरू के मुकाबले उन्हें आधे वोट भी नहीं मिल सके और करीब 65 हज़ार वोटों से करारी हार का सामना करना पड़ा. पंडित नेहरू को इस चुनाव में 118931 वोट मिले थे, जबकि लोहिया सिर्फ 54360 वोटों पर सिमट गए थे.   


कांशीराम को भी मिली चेले के हाथ पटखनी


बीएसपी संस्थापक कांशीराम 1996 में फूलपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े थे. उनके सियासी चेले जंग बहादुर पटेल को मुलायम सिंह यादव ने तोड़कर अपनी समाजवादी पार्टी से फूलपुर से उम्मीदवार बना दिया था. कांशीराम को चेले की यह बगावत कतई पसंद नहीं आई. चेले को सियासी पटखनी देने की नीयत से कांशीराम खुद बीएसपी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ने आ गए. उन्होंने फूलपुर में जमकर पसीना भी बहाया, लेकिन चेले ने कांशीराम को हराकर यहां से इतिहास रच दिया. कांशीराम को करीब सोलह हज़ार वोटों से हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के जंग बहादुर पटेल को 162844 वोट मिले और कांशीराम को 146823 वोटों से ही संतोष करना पड़ा.    


जनेश्वर मिश्र की भी दाल नहीं गली  
 छोटे लोहिया के नाम से मशहूर पूर्व केंद्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र ने भी यहां से दो बार किस्मत आजमाई थी, लेकिन बाहरी बनाम लोकल के नारे के चलते उन्हें दोनों बार यहां से करारी हार का सामना करना पड़ा था. जनेश्वर मिश्र यहां से पहला चुनाव 1967 में लड़े थे. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बुआ विजय लक्ष्मी पंडित को उम्मीदवार बनाया था, जबकि जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट पार्टी  के टिकट पर मैदान में थे. विजय लक्ष्मी पंडित 95306 वोट पाकर सांसद बनी थीं, जबकि जनेश्वर मिश्र को 59123 वोट हासिल हुए थे. जनेश्वर मिश्र 1971 में यहां से दोबारा चुनाव लड़े, इस चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे. वीपी सिंह ने 123095 वोट पाकर जीत हासिल की थी, जबकि सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र को सिर्फ 28760 वोट मिले और वो तीसरे स्थान रहे.   


अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल 5 बारे हारे


केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के पिता और अपना दल के संस्थापक डॉ. सोनेलाल पटेल ने फूलपुर को अपनी सियासी कर्मभूमि बनाई. वो इस सीट से 1996 से लेकर 2009 तक लगातार पांच चुनाव लड़े, लेकिन कभी जीत नहीं हासिल कर सके. सोनेलाल पटेल को 1996 के चुनाव में 2426 वोट, 1998 में 42152, 1999 में 127780 वोट, 2004 के चुनाव में 80388 वोट और 2009 के चुनाव में 76699 वोट मिले थे.   


पं जवाहरलाल नेहरू की सीट रही है फूलपुर


गोरक्षा को लेकर आंदोलन चलाने वाले देश के चर्चित संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने भी 1952 में हुए पहले आम चुनाव में फूलपुर सीट से चुनाव लड़कर संसद पहुंचने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था. 1952 के पहले आम चुनाव में पंडित जवाहर लाल नेहरू यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे. पंडित नेहरू 233571 वोट पाकर न सिर्फ सांसद चुने गए, बल्कि देश के पहले प्रधानमंत्री भी बने थे. निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे प्रभुदत्त ब्रह्मचारी 56718 वोटों के साथ चौथे नंबर पर थे. 


कई दिग्गजों को यहां हार का सामना करना पड़ा  


पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रजीत यादव 1989 में फूलपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें तैंतीस हज़ार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में जनता दल के रामपूजन पटेल 198266 वोट पाकर केंद्र की वीपी सिंह सरकार में मंत्री बने थे, जबकि चंद्रजीत यादव को 165765 वोट ही हासिल हुए थे. पूर्व केंद्रीय मंत्री राम पूजन पटेल भले ही फूलपुर सीट से तीन बार सांसद रहे हों, लेकिन 1977 के चुनाव में उन्हें यहां से हार का सामना करना पड़ा था. इमरजेंसी के बाद हुए इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी के राम पूजन पटेल को लोकदल की नेता कमला बहुगुणा के सामने हार झेलनी पड़ी थी.     


रीता बहुगुणा जोशी की मां को भी मिली हार
बीजेपी सांसद डा० रीता बहुगुणा जोशी की मां और यूपी के पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी कमला बहुगुणा को भी फूलपुर के एक चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. कमला बहुगुणा 1977 में यहां से सांसद चुनी गईं थीं, लेकिन 1980 में हुए आम चुनाव में पाला बदलकर वो कांग्रेस के टिकट पर मैदान में आ गईं. इंदिरा लहर के बावजूद कांग्रेस की कमला बहुगुणा को हार का सामना करना पड़ा. उन्हें जनता पार्टी के बीड़ी सिंह ने अड़तीस हज़ार वोटों के बड़े अंतर से हराया. इस चुनाव में बीड़ी सिंह को 145820 और कमला बहुगुणा को 107032 वोट मिले थे.   


जमानत तक नहीं बचा सके रोमेश शर्मा
अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के करीबी होने के तौर पर बदनाम बॉलीवुड के चर्चित डायरेक्टर व राइटर रोमेश शर्मा भी साल 1996 का लोकसभा चुनाव फूलपुर से लड़े थे. रोमेश शर्मा ने इस चुनाव में फूलपुर में खूब हेलीकाप्टर उड़ाया. पैसा पानी की तरह बहाया, लेकिन हवा-हवाई ही साबित हुए और सिर्फ 3623 वोटों पर सिमटकर रह गए. निर्दलीय रोमेश शर्मा एक फीसदी वोट भी नहीं मिले. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सलाहकार रहे पूर्व नौकरशाह जेएन मिश्र ने 1998 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन 19382 वोटों पर सिमटकर न सिर्फ अपनी जमानत भी नहीं बचा सके, बल्कि पांचवें नंबर पर अटक गए.     


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केशव मौर्य ने मोहम्मद कैफ को हराया


इंटरनेशनल क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने भी फूलपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़कर सियासी पारी खेलनी चाही, लेकिन पहले ही कदम पर उन्हें मुंह की खानी पड़ी. कैफ ने 2014 का लोकसभा चुनाव यहां से कांग्रेस के टिकट पर लड़ा, लेकिन सिर्फ छह फीसदी वोट ही हासिल कर सके और उनकी जमानत जब्त हो गई. इस चुनाव में यहां से बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य ने पहली बार कमल खिलाया था. केशव मौर्य को इस चुनाव में पांच लाख से ज़्यादा वोट मिले, जबकि क्रिकेटर मोहम्मद कैफ साठ हज़ार वोट भी नहीं पा सके थे. मोहम्मद कैफ इस चुनाव में बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य से चार लाख पैंतालीस हज़ार वोटों से पीछे थे. 


 बाहरी बनाम लोकल नारे का दिखा असर


केशव मौर्य के डिप्टी सीएम बनने के बाद फूलपुर सीट पर हुए उपचुनाव में बाहरी बनाम लोकल का नारा खूब गूंजा. बीजेपी ने वाराणसी के कौशलेन्द्र पटेल को उम्मीदवार बनाया तो समाजवादी पार्टी ने स्थानीय नागेंद्र पटेल को. नागेंद्र ने खुद को लोकल बताकर करीब साठ हज़ार वोटों के अंतर से चुनाव जीतकर खूब सियासी सुर्खियां बटोरीं. फूलपुर में लगने वाले बाहरी बनाम लोकल के नारे को इस चुनाव नतीजे से बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. 


बाहुबली अतीक अहमद को भी जनता ने नकारा 


 माफिया डॉन के तौर पर बदनाम पांच बार के विधायक और पूर्व सांसद अतीक अहमद को भी एक चुनाव में फूलपुर में हार का सामना करना पड़ा है. 2018 के उपचुनाव में अतीक अहमद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और अपनी जमानत जब्त करा बैठे. इस चुनाव में अतीक पचास हज़ार वोट भी नहीं पा सके. खुद को संजय गांधी की बेटी बताने वाली भारत सरकार की पूर्व डायरेक्टर जनरल प्रिया सिंह पाल उर्फ़ प्रियदर्शिनी गांधी  2019 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर से किस्मत आजमाने उतरीं, लेकिन उन्हें दो हज़ार वोट भी नहीं मिल सके.  प्रिया सिंह पाल मीडिया व फिल्म इंडस्ट्री से भी जुडी हुई हैं.        


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