Varanasi News: धर्मनगरी काशी को परंपराओं का शहर कहा जाता है. दशकों पुराने परंपराओं रीति रिवाज को यहां के लोगों द्वारा आज भी पूरे विधि विधान से संपन्न कराया जाता है. इसी कड़ी में आज वाराणसी के नाटी इमली मैदान पर विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप लीला का आयोजन किया गया. इस दौरान लाखों के संख्या में श्रद्धालु इस छोटे से मैदान से लेकर यहाँ के छतो पर टकटकी लगाए देखे गए. काशी में यह मेला 450 से भी अधिक वर्ष प्राचीन है जिसमें रावण का वध करने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और लक्ष्मण का मिलन उनके छोटे भाई भरत और शत्रुघ्न से होता है. वाराणसी के सांसद प्रधानमंत्री मोदी ने भी आज इस प्राचीन मेले का जिक्र अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर किया है जिसमें उन्होंने इस भरत मिलाप को सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बताया है और कहा है कि काशी का सांसद होने के नाते उन्हें इस परंपरा को लेकर विशेष गर्व की अनुभूति हो रही है.


चारो भाइयों के मिलन को देख जब भावुक हुए श्रद्धालु


विजयदशमी के ठीक 1 दिन बाद काशी के नाटी इमली मैदान में भरत मिलाप का आयोजन होता है और विश्व प्रसिद्ध इस लीला में अनेक कड़ियां जुड़ी होती हैं. परंपरा के अनुसार आज नाटी इमली मैदान के पूर्व और पश्चिम की ओर दो मंच सजाए गए थे जिसमें एक छोर पर भगवान राम लक्ष्मण व मां सीता और दूसरे छोर पर भरत और शत्रुघ्न खड़े थे. सूर्य की किरणों के साथ यानी सूर्यास्त होने के कुछ ही समय पहले जैसे ही दोनों तरफ से चारों भाई एक दूसरे से मिलने के लिए दौड़ पड़ते हैं. यह मैदान सियावर रामचंद्र की जय के उद्घोष के साथ गूंज पड़ता है. कुछ मिनट के इस ऐतिहासिक लम्हे को देखने के लिए इस मंच के चारों तरफ ओर छतों पर लाखों की संख्या में भीड़ मौजूद रही. इतना ही नहीं चारों भाइयों के मिलन को देखकर आज श्रद्धालुओं की आंखें भी नम हो गई.


सूर्यास्त तक ही दिया था राजा भरत ने समय


हिंदू प्राचीन धर्म ग्रंथ श्री रामचरितमानस के अनुसार राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न चारों भाइयों में अटूट प्रेम था. वनवास सुनिश्चित होने के बाद भरत ने अपने बड़े भाई श्री राम को वचन दिया था कि 14 वर्ष पूर्ण होने के ठीक बाद सूर्यास्त होने पर वह अपने प्राण त्याग देंगे और उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए आज सूर्यास्त के कुछ मिनट पहले चारों भाइयों का मिलन होता है. सबसे खास बात की इस ऐतिहासिक भरत मिलाप लीला का आकाशवाणी पर भी लाइव टेलीकास्ट किया जाता है.


यदुवंशी देते हैं रथ को सहारा


परंपरा के अनुसार काशी के नाटी इमली मैदान पर प्रभु राम का विशेष रथ तैयार किया गया. जिस पर चारों भाई और जगत जननी मां जानकी सवार हुई. विशेष विमान स्वरूप इस रथ को यादव बंधु अपने कंधे पर रखकर अगले लीला स्थल तक ले जाते दिखे. इस दौरान यादव बंधु पूरे परंपरागत तरीके से वस्त्र पहने और आंखों में काजल लगाकर व सर पर लाल पगड़ी बांधकर रथ को अपने कंधे पर रखते दिखाई दिए. बीते 3 सालों से इस लीला के दौरान रथ को अपने कंधे पर रखने वाले अमन यादव ने भी एबीपी लाइव से बातचीत के दौरान कहा कि हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि सनातन संस्कृति के इस प्राचीन परंपरा का हम साक्षी बन रहे हैं. भगवान श्री राम का व्यक्तित्व हम सभी के लिए अनुकरणीय है. विश्व प्रसिद्ध इस मेले में काशी नरेश भी अपनी सवारी के साथ लीला स्थल तक पहुंचने की परंपरा निभाते हैं और उसी के अनुसार आज काशी नरेश अनंत नारायण सिंह भी लीला स्थल पर पहुंचे. जहां मौजूद लीला प्रेमियों ने हर हर महादेव के उद्घोष के साथ उनका अभिनंदन किया. लीला समाप्त होने के बाद श्रद्धालुओं में तुलसी दल प्रसाद के रूप में वितरण किया गया.


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