Agra Nikay Chunav 2023: भारतीय जनता पार्टी पिछले कई दशकों से आगरा नगर निगम (Agra Municipal Corporation) पर काबिज रही है. साल 1989 में आगरा के नगर निगम बनने के बाद पहली बार बीजेपी (BJP) के रमेशकांत वालिया (Rameshkant Walia) मेयर बने थे, उसके बाद से लगातार बीजेपी के ही मेयर चुनते आ रहे हैं, लेकिन इस बार बीएसपी (BSP) ने जो दांव चला है, उससे बीजेपी की राहें मुश्किल हो गई है. हालांकि, बीजेपी संगठन दावा कर रहा है कि इस बार भी बीजेपी का ही मेयर चुना जाएगा.


बीजेपी का वोट बैंक रहा है वाल्मीकि समाज

दरअसल, बीएसपी ने आगरा से मेयर पद पर वाल्मीकि समाज की प्रत्याशी को उतारा है. उसके पीछे पार्टी की रणनीति है कि परंपरागत जाटव समाज के वोट के साथ ही वाल्मीकि समाज के वोट भी हासिल किए जाए, क्योंकि आगरा में वाल्मीकि समाज की जनसंख्या एक लाख से ज्यादा है. लिहाजा, बीएसपी की कोशिश वाल्मीकि समाज को अपने से जोड़ने की है. दरअसल, वाल्मीकि समाज परंपरागत तरीके से बीजेपी को वोट करता आया है. ऐसे में बाकी जातियों के वोट बैंक से कुछ हिस्सा पार्टी को मिलता है और इन दोनों जातियों का बहुतायत में वोट मिलता है तो बीजेपी को इस चुनाव में पटकनी दी जा सकती है.  

बीजेपी से ये समाज भी है नाराज

वहीं, दूसरी तरफ खटीक और महार समाज जो बीजेपी से अपने समाज का नेता उतारने के लिए आग्रह कर रहा था. वह भी इस बार थोड़ा रूठा हुआ है, क्योंकि बीजेपी ने धोबी समाज से आने वाली और पूर्व विधायक हेमलता दिवाकर को प्रत्याशी बनाया है. वहीं, बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में दोनों सीटों पर जाटव समाज से आने वाले नेताओं को टिकट देकर विधायक बना रखा है. ऐसे में बीएसपी सामाजिक समीकरण के सहारे एक नया जातिगत समीकरण तैयार कर रही है.

बीएसपी ने ठोका जीत का दावा

एबीपी गंगा से बातचीत में डॉ. लता वाल्मीकि ने कहा कि बदलाव की बयार है. 1989 से लगातार बीजेपी का शहर पर कब्जा है, लेकिन शहर कई सारी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है. बीएसपी सर्व समाज की पार्टी है, भाईचारे का संदेश देती है और हरेक समाज बीएसपी के साथ है, क्योंकि बीएसपी प्रत्याशी डॉ. लता वाल्मीकि और उनके समर्थकों का कहना है कि बीजेपी ने जनता को ठगा है.

बीजेपी को मुख्यमंत्री के दौरे से हैं उम्मीदें

बीएसपी से मिल रही चुनौती पर बीजेपी मेयर प्रत्याशी हेमलता दिवाकर का कहना है कि बीजेपी ऐसा दल है, जो जातिगत आंकड़ों को लेकर चुनाव नहीं लड़ती. बीजेपी सबका साथ, सबका विकास के साथ आगे बढ़ती है. बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग पर उन्होंने कहा कि उनके पास कुछ मुद्दा नहीं है. वहीं, खटीक और बाकी जातियों में आक्रोश को लेकर उनका कहना है कि ये सब चीजें प्रोपेगेंडा है. उन्होंने दावा किया कि मुख्यमंत्री के आने से माहौल और बदलेगा. सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए बीजेपी नए कमल खिलाएगी.

बीएसपी ने बीजेपी की राहें कर दी मुश्किल

वहीं, इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा कहते हैं कि बीएसपी सोशल इंजीनियरिंग के पुराने फॉर्मूले को दोहरा रही है, इसलिए वाल्मीकि प्रत्याशी उतारकर बीजेपी के लिए चुनावी राहों में कांटे बिछा दिए हैं और चुनाव को आमने सामने खड़ा कर दिया है. ऐसे में बीएसपी ने जातिगत चक्रव्यूह रचा है, उससे चुनाव रोचक होता जा रहा है.

पहले भी वाल्मीकि समाज पर रहा है फोकस

हालांकि, ये पहली बार नहीं है, जब वाल्मीकि समाज पर राजनीतिक दलों ने विशेष फोकस किया है. साल 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान अरुण वाल्मीकि की जब पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी, तब कांग्रेस ने इस समाज को संदेश देने की कोशिश की थी और आगरा की 2 में से एक सुरक्षित सीट पर वाल्मीकि प्रत्याशी उतारा था.