UP Nagar Nikay Chunav 2023: यूपी नगर निकाय चुनाव का बिगुल बज चुका है. पहले चरण के लिए नामांकन हो चुका है जबकि दूसरे चरण के लिए आज से नामांकन शुरू हो गया है. बीजेपी, समेत सभी राजनीतिक दल इस बार अपनी जीत का दम भर रहे हैं, लेकिन मेरठ की मेयर सीट पर जनता के मन को टटोल पाना बहुत मुश्किल काम है. इस सीट का इतिहास है ऐसा रहा है कि यहां की जनता सत्ता के खिलाफ वोट करके महापौर चुनती है. इस मिथक को अब तक तो मेरठ सीट पर कोई नहीं तोड़ पाया.

 

मेरठ की जनता अब तक ऐसा ही करती आई है, जिसकी सरकार होती है उसके खिलाफ ही यहां की जनता ललकार भरती है. लेकिन क्या इस बार ये तिलिस्म टूट पाए या इस बार जनता सत्ता विरोधी लहर में जाएगी इस बार तमाम राजनीतिक जानकारों की नजरें इस पर बनी हुई हैं. 

 

मेरठ मेयर सीट का तिलिस्म

मेरठ नगर निगम पश्चिमी उत्तर प्रदेश का वो नगर निगम जहां की आवाम हमेशा ही सत्ता के खिलाफ महापौर चुनती है. जिसकी भी सूबे में सत्ता रही मेरठ की महापौर सीट जीतने का उसका सपना हमेशा ही अधूरा रह गया. न सत्ता की हनक काम आई और न ही नेताओं की फौज, हालांकि इस बार बीजेपी को भरोसा है कि उनकी सरकार और उनके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सारे पुराने मिथक तोड़ रहे हैं और इस बार मेरठ में भी इस तिलिस्म को बीजेपी ही तोड़ेगी. इस बार मेरठ सीट पर महापौर उनका ही होगा.

 

अब आपको मेरठ नगर निगम की महापौर सीट का वो इतिहास समझाते हैं जिसके चक्रव्यूह में सता दल हमेशा ही फंसता आया है. 

- साल 1995 में मेरठ नगर निगम सीट अस्तित्व में आई और बीएसपी के अय्यूब अंसारी मेयर बने.

- साल 2000 में बीजेपी से राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे तब यहां बसपा के शाहिद अखलाक मेयर बने.

- साल 2006 में मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे तब बीजेपी की मधु गुर्जर मेयर बनीं.

- साल 2012 में सपा की सरकार थी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे तब बीजेपी से हरिकांत अहलूवालिया जीते

- 2017 में योगी आदित्यनाथ सीएम बने तो बीएसपी की सुनीता वर्मा महापौर बन गईं.

 

सपा ने किया जीत का दावा

ये आंकड़ें ही अपने आप में मेरठ महापौर सीट के इतिहास को बताने के लिए काफी हैं. हालांकि इस बार बसपा दावा कर रही है कि इस सीट पर चौथी बार भी बसपा की मेयर होंगी. मेरठ में अब तक मेयर सीट पर बीजेपी या फिर बीएसपी ही कब्जा जमाती आई है. जबकि सपा का मेरठ महापौर बनाने का सपना अभी तक सपना ही है. इस बार सपा ने यहां से सपा विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को मैदान में उतारकर गुर्जर कार्ड खेला है. सपा नेताओं का कहना है इस बार ना भाजपा न बसपा इस बार सपा का महापौर बनेगा. 

 

क्या बीजेपी तोड़ पाएगी मिथक?

मेरठ में सत्ता के खिलाफ महापौर सीट पर जनमत देने के पीछे की वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन चर्चा हमेशा यही रहती है कि जिसकी सत्ता उसका मेयर बन हो नहीं सकता. अब इस तिलिस्म को क्या बीजेपी तोड़ पाएगी या फिर इस बार भी बाजी उसके हाथ से निकलकर किसी दूसरे दल के खेमे में चली जाएगी, ये देखने वाली बात होगी.