UP Nagar Nikay Chunav 2023: यूपी नगर निकाय की तारीखों का ऐलान हो चुका है. लखनऊ (Lucknow) में पहले फेज के अंतर्गत 4 मई को मतदान होगा. बात राजधानी लखनऊ में महापौर पद की करें तो यह रिकॉर्ड रहा है कि जब से यहां महापौर का पद बना हमेशा कमल ही खिला है. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि इस बार क्या विपक्षी दल भाजपा के चक्रव्यूह को तोड़ पाएंगे? आज हम आपको राजधानी लखनऊ के महापौर पद से जुड़ी कुछ खास बातें बताते हैं.
लखनऊ में पहले नगर प्रमुख का पद हुआ करता था. इसके तहत 1995 तक कभी कांग्रेस तो कभी जनसंघ से समर्थित महापौर बनते रहे, लेकिन 1995 के बाद ये सिलसिला टूट गया और एकछत्र यहां से अब कमल ही खिलता आ रहा है. तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी के इस किले को विपक्षी दल भेद नहीं पाए हैं.
बीजेपी का किला भेद पाएंगे विरोधी दल
1 दिसंबर 1995 को डॉक्टर एससी राय भाजपा के टिकट पर लखनऊ के नगर प्रमुख बने. इसके बाद वह लगातार दो बार 20 नवंबर 2002 तक यहां नगर प्रमुख रहे. बाद में नगर प्रमुख के पद का नाम बदलकर महापौर कर दिया गया. तब 21 नवंबर 2002 से लेकर 13 फरवरी 2006 तक डॉक्टर एस सी राय यहां के महापौर रहे. फिर बारी आई डॉ. दिनेश शर्मा की जिन्होंने राजधानी लखनऊ में महापौर का अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल बिताया. डॉ दिनेश शर्मा 14 नवंबर 2006 से लेकर 19 मार्च 2017 तक लखनऊ के महापौर रहे. 2017 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद डॉ दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया जिसके बाद उन्होंने ने महापौर के पद से इस्तीफा दे दिया.
दिनेश शर्मा के इस्तीफा देने के बाद हुए चुनाव में लखनऊ महापौर की सीट महिला कर दी गई. तब भाजपा ने संयुक्ता भाटिया को अपना प्रत्याशी बनाया. संयुक्ता भाटिया 12 दिसंबर 2017 को लखनऊ की महापौर बन गई. इस बार फिर से राजधानी लखनऊ की महापौर पद की सीट महिला आरक्षित है. आखिर ऐसी क्या बात है कि विपक्ष लखनऊ महापौर का पद बीजेपी से छीन नहीं पा रहा है. इसे लेकर पूर्व मेयर व पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने एबीपी गंगा से खुलकर बात की.
1995 के बाद कभी नहीं हारी बीजेपी
डॉ दिनेश शर्मा ने कहा कि जब एससी राय या संयुक्ता भाटिया रहे तो भाजपा की सरकार थी, लेकिन मैं जो लगभग 11 साल महापौर रहा तब प्रदेश में मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव 3-3 मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में मेयर बना. फिर भी सबसे ज्यादा करीब 1 लाख 72 हज़ार वोट से जीतने का मेरा रिकॉर्ड बना. असल में भाजपा का जो सुशासन है, जो कार्य करने की शैली है और जो अपने कार्यकाल में काम किया चाहे बाबू राजकुमार रहे हो, रामप्रकाश गुप्ता या बाकी जो लोग रहे हो तो डेवलपमेंट प्रोसेस कभी रुका नहीं. बीजेपी ने जाति, धर्म, क्षेत्र, अपना, पराया यह सब नहीं देखा.
भाजपा के प्रत्याशी चयन को लेकर दिनेश शर्मा ने कहा की भाजपा में किसी व्यक्ति विशेष की भूमिका नहीं होती. यह कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं है. यहां सामूहिक निर्णय होते हैं. सब की योग्यता के अनुसार कार्यकर्ताओं की उपयोगिता को सिद्ध करती है. जब तक प्रत्याशी तय नहीं होता सब अपनी बात रखते हैं, लेकिन जिस दिन प्रत्याशी तय हो गया तो फिर जिसको टिकट मिलता है सब उसके साथ खड़े हो जाते हैं. ये कैडर बेस पार्टी है और यही भाजपा को अन्य दलों से अलग करता है.
संयुक्ता भाटिया ने फिर से ठोंकी दावेदारी
निवर्तमान महापौर संयुक्ता भाटिया का कहना है कि भाजपा कार्यकर्ता जमीन पर उतर कर काम करते हैं. नगर निगम का चुनाव ऐसा चुनाव है जो पब्लिक के बीच में रहने वाला व्यक्ति ही जीत सकता है. यह सबसे छोटा चुनाव है. हमारे पास जमीन पर उतर कर काम करने वाले कार्यकर्ता हैं. जनता के बीच में रहते हैं इसी का फायदा मिलता है. वैसे लखनऊ की सीट एक बार फिर महिला आरक्षित होने पर संयुक्ता भाटिया ने अपनी दावेदारी पार्टी के सामने रखी है. उन्होंने कहा कि जब डॉ. एससी राय और डॉ. दिनेश शर्मा को पूर्व में दो-दो बार मौका दिया गया तो महिला को भी दूसरा मौका मिलना चाहिए.
लखनऊ में कई बार नगर प्रमुख देने वाली कांग्रेस भी इस बार फिर अपनी किस्मत आजमाने में लगी है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी कहते हैं कि 2014 से जब से भाजपा की सरकार देश में बनी जितने भी छोटे बड़े चुनाव हुए झूठ के दम पर, लॉलीपॉप देकर मतदाता को भ्रमित करके अपना उल्लू सीधा किया. लेकिन देश की जनता अब इस बात को जान चुकी है की भाजपा के पास झूठ के अलावा और कुछ नहीं है. अब लोग फिर से कांग्रेस की चर्चा करने लगे हैं. इस बार लखनऊ से महापौर के पद पर कांग्रेस की महिला उम्मीदवार जीतेगी.
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