UP Nagar Nikay Chunav 2023 Date: मेरठ नगर निगम में बड़ा सियासी घमासान होने जा रहा हैं. इस सियासी घमासान में बड़े बड़े योद्धा मैदान में हैं. सबके अपने अपने दावे हैं और अपने-अपने मुद्दे हैं. 1995 में मेरठ नगर निगम वजूद में आया था और तब से लेकर अब तक यहां बीजेपी या बीएसपी के इर्द गिर्द ही जीत घूम रही हैं, जबकि सपा को आज तक इस सीट पर जीत हासिल नहीं हुई. हालांकि इस बार ये संग्राम और बड़ा होने जा रहा है और सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि मेरठ में निकाय का नायक कौन होगा. 


मेरठ नगर निगम महापौर की कुर्सी कब्जाने को हर दल पूरी ताकत के साथ मैदान में डटा है. बीजेपी को छोड़कर बाकी दल अपने प्रत्याशी घोषित कर चुके हैं और ये प्रत्याशी पूरी ताकत और दम खम दिखा रहें हैं. सपा ने यहां से विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को प्रत्याशी बनाया है. आम आदमी पार्टी की ओर से समाजसेवी ऋचा सिंह मैदान में हैं. बसपा ने यहां से मुस्लिम कार्ड खेला है. बसपा ने मेरठ मेयर सीट के लिए हसमत मलिक को प्रत्याशी बनाया है, जबकि कांग्रेस ने नसीम कुरैशी पर दांव चला है. सभी प्रत्याशी अपनी अपनी जीत का दावा करते हुए एक दूसरे पर जुबानी हमले कर रहे हैं. 


मेरठ मेयर सीट का इतिहास


- 1995 में मेरठ नगर निगम अस्तित्व में आया और बीएसपी से अय्यूब अंसारी मेयर बने
- 2002 में फिर बीएसपी ने बाजी मारी और हाजी शाहिद अखलाक मेयर बने
- 2006 में बाजी पलटी और बीजेपी की मधु गुर्जर मेयर बन गई
- 2012 में बीजेपी ने मेरठ महापौर सीट फिर जीती और हरिकांत अहलूवालिया मेयर चुने गए
- 2017 में बीएसपी की सुनीता वर्मा मेयर बनीं 


मेरठ नगर निगम में 90 वार्ड हैं. यहां की सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक जाम की है. यहां मल्टीलेवल पार्किंग बनाने की बात तो हुई लेकिन ये आज तक सिर्फ एक सपना ही बना हुआ है. जगह-जगह कूड़े के ढेर हैं. कूड़ा निस्तारण आज भी यहां की एक बड़ी समस्या है. यहां पर कुछ प्लांट लगे लेकिन वो ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहें हैं. शहर के कई वार्डो के जलभराव समस्या है. टूटी सड़कें और गड्ढे आज भी विकास को मुंह चिढ़ाते हैं. ज्यादातर नाले खुले हैं और अक्सर बड़े हादसों की वजह बन जाते हैं. 


मेरठ सीट का जातीय समीकरण 


- मेरठ में सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, जिनकी संख्या 4 लाख से ज्यादा हैं
- मेरठ में वैश्य वोटर 2 लाख से ज्यादा हैं
- एससी वोटर की संख्या डेढ़ लाख है
- पंजाबी वोटर एक लाख जबकि..
- ब्राह्मणों की संख्या 85 हजार से ज्यादा हैं. इनके अलावा गुर्जर 30 हजार से 40 हजार के करीब हैं.


मेरठ की जनता कई जगह मुद्दों को लेकर और कई जगह प्रत्याशी और पार्टी को देखकर वोट करती है. इस बार जनता का मिजाज कितना बदला है ये चुनाव के नतीजे तय करेंगे और ये भी तस्वीर साफ हो जाएगी की जनता का असली नायक और असली हीरो कौन है. 


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